“क्या आपको पता है आपके आवेदन का हश्र?, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में संशोधन चाहने वाले अधिवक्ता को आगाह करते हुए पूछा
LiveLaw News Network
1 Jan 2018 7:56 PM IST
सुप्रीम कोर्ट के अवकाशकालीन पीठ के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए एक एडवोकेट को आगाह किया। एडवोकेट विशेष अनुमति याचिका द्वारा 15 दिसंबर को दिए गए एक आदेश में संशोधन के लिए याचिका दायर करने वाले की पैरवी कर रहा था। कोर्ट ने इस विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 16 नवंबर को रिव्यु के बाद फैसला सुनाया। अपने फैसले में हाई कोर्ट ने वर्तमान याचिकाकर्ता के आवेदन को सीपीसी के आदेश VIII के नियम 10 के तहत एसएलपी को खारिज करने को सही ठहरा था। याचिकाकर्ता ने लिखित बयान को इस आधार पर रद्द किये जाने का अनुरोध किया था कि इसे निर्धारित 90 दिन की अवधि के बाद पेश किया गया था।
हाई कोर्ट इस बारे में Salem Advocate Bar Association T.N. v. UOI [(2005) 6 SCC 344] मामले में दिए गए फैसले का सहारा लिया जिसमें उसने कहा था, “...आदेश 8 के रूल 10 के तहत कोर्ट को यह अधिकार होगा और वह प्रतिवादी को निर्धारित 90 दिन की अवधि के बीत जाने के बाद भी लिखित बयान दाखिल करने की इजाजत दे सकता है। नियम में इस तरह का प्रावधान नहीं है कि अवधि के बीत जाने के बाद आगे और समय नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट को अपने विवेक के अनुसार इस तरह की छूट देने का अधिकार है। इससे स्पष्ट है कि आदेश 8 के नियम एक के तहत बयान दाखिल करने के लिए 90 दिन की अवधि देने का प्रावधान निर्देशात्मक है।”
पीठ ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, “क्या आपको यह नहीं पता कि इस तरह के आवेदनों का हश्र क्या होता है? यह कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग है”।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतानागौदर ने 15 दिसंबर को एसएलपी को खारिज करते हुए कहा, “विवादित फैसले के साथ छेड़छाड़ का कोई मामला नहीं बनता है। इस तरह, विशेष अनुमति याचिका को खारिज किया जाता है”।
एक ही परिवार के लोगों के बीच यह विवाद मृत पिता द्वारा छोड़े गए वसीयत को लेकर है जिसमें कहा गया है कि पहले संपत्ति उनकी पत्नी को मिलेगी और उसके बाद उनके सबसे बड़े बेटे को।