सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका पर खर्च होने वाली राशि क्राउडफंडिंग से जुटाकर एक रचनात्मक शुरुआत कर रहा है सीजेएआर
LiveLaw News Network
29 Dec 2017 2:09 PM IST
प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले को लेकर इन दिनों काफी बहस चल रही है। इस मामले में न्यायपालिका के शीर्ष सदस्यों, जिसमें उड़ीसा हाई कोर्ट के जज इशरत मसरूर कुद्दुसी भी शामिल हैं, के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इस प्रकरण में उस समय जबरदस्त मोड़ आया जब 1 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जज आरके अग्रवाल की अगुवाई में अरुण मिश्रा और एएम खानविल्कर की पीठ ने कैम्पेन फॉर ज्यूडीशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) नामक एनजीओ की याचिका रद्द कर दी। एनजीओ ने कोर्ट की निगरानी में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने का आग्रह किया था ताकि घूस देने के आरोपों की जांच की जा सके। पीठ ने एनजीओ की याचिका खारिज करने के साथ साथ उस पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।
इस मामले ने कई तरह के कानूनी सवाल उठाए हैं। इनमें एक सवाल यह भी है कि कोई व्यक्ति अपने ही कारण से जज हो सकता है या नहीं और अगर सरकार की नियंत्रण वाली सीबीआई जैसी कोई संस्था भ्रष्टाचार जैसे किसी मामले की जांच करती है जिसमें न्यायपालिका के शीर्ष पर बैठे लोगों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी शामिल हैं तो उस स्थिति में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर चोट होती है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने और मामले को और आगे ले जाने के लिए एनजीओ सीजेआर ने इस पर आने वाली खर्च की राशि क्राउडफंडिंग से जुटाने का आह्वान किया है।
एडवोकेट प्रशांत भूषण जो कि सीजेएआर के संयोजक होने के साथ साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ भी सक्रिय हैं, ने इस मामले के महत्त्व के बारे में बताया। भूषण के अनुसार, “सुप्रीम कोर्ट से मनोनुकूल फैसले प्राप्त करने के लिए षड्यंत्र रचने, योजना बनाने और धूस देने की तैयारी के आरोप में सीबीआई ने एक एफआईआर दर्ज किया। सीजेएआर ने एक याचिका दायर कर इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी गठित करने की अपील की। आरोपों की गंभीरता पर गौर करने और न्यायपालिका की विश्वसनीयता को पुनर्स्थापित करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने इस एनजीओ पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया ताकि उसको न्यायिक भ्रष्टाचार के मामलों को उठाने से वह रोक सके।”
सीजेएआर की ओर से प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार की अपील करने का फैसला किया है। अपने तरह के एक अकेले प्रयास में, भूषण इस मामले पर आने वाले खर्च को पूरा करने के लिए क्राउडफंडिंग का सहारा ले रहे हैं। क्राउडफंडिंग को हम इस तरह से समझ सकते हैं – यह भारी संख्या में लोगों से छोटी छोटी राशि प्राप्त करने का तरीका है विशेषकर ऑनलाइन समुदाय से।
इस मामले में सीजेएआर ने बिटगिविंगडॉटकॉम नामक प्लेटफार्म की मदद से ऐसा करने का फैसला किया है। यह वेबसाइट इस तरह के संगठनों को फंड इकट्ठा करने के लिए एक साथ आने और अपनी कहानी साझा करने को कहती है। इससे पहले इस प्लेटफार्म से एसिड हमले और नेपाल में आए भूकंप के प्रभावितों की मदद के लिए फंड जमा किए जा चुके हैं।
बिटगिविंग की सीईओ इशिता आनंद ने लाइवलॉ को बताया, “हम प्रशांत भूषण के अभियान से जुड़कर गर्व का अनुभव करते हैं। यह देखना बहुत ही सुखद है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग इस तरह के अभियान का समर्थन करते हैं। इससे यह साबित होता है कि हमेशा से ऐसे समुदाय रहे हैं जिनकी इच्छा रहती है कि उनकी पुकार को कोई सुने। यह अभियान इस बात को सही ठहराता है कि क्राउडफंडिंग एक पारदर्शी तरीका है और यह समाज में बदलाव लाने के लिए उसकी विभिन्न धाराओं के लोगों को एक साथ लाता है।”
सीजेएआर का सुप्रीम कोर्ट के फैसले, उसकी याचिका को खारिज करने और उस पर भारी जुर्माना लगाने के खिलाफ अपील की योजना है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी, विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति एपी शाह, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत अबीबुल्ला और शैलेश गाँधी और सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसल की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए एक बयान जारी किया था।
भूषण द्वारा चलाए जा रहे अभियान में सहयोग करने वाली नीलिमा जायसवाल ने कहा, “सीजेएआर न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम जरूरत के इस मौके पर उसकी मदद करें।” इस अभियान से जुड़े एक अन्य व्यक्ति मनोज मिश्रा ने कहा, “न्यायिक उत्तरदायित्व अंततः न्याय व्यवस्था को मजबूत करेगा। एक उत्तरदायी नीति और स्वस्थ राष्ट्र के लिए यह बेहद जरूरी है।”
न्याय के लिए इस तरह की क्राउडफंडिंग यूनाइटेड किंगडम में हो चुका जब इराक युद्ध में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों के रिश्तेदारों ने टोनी ब्लेयर और उसकी सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए ऑनलाइन फंड जमा करने की अपील की थी। बिर्मिंघम पब में हुए बम विस्फोट के शिकार लोगों के परिवारवालों ने बम फोड़ने वाले कथित लोगों के खिलाफ जांच नहीं किए जाने के खिलाफ न्यायिक रिव्यु के लिए ऑनलाइन वैश्विक अपील की थी। एमनेस्टी इंटरनेशनल का मानना है कि मुफ्त में आने वाले आर्थिक सहयोग से न्याय की क्राउडसोर्सिंग कानूनी मदद और न्यायिक संस्थानों के लिए धन के अभाव की पूर्ति करता है।
अब तक, इस नए तरीके से सार्वजनिक हित पर आने वाले खर्च के लिए धन उगाहने का प्रयास संभावनाओं से भरा दिख रहा है। इस माध्यम से कुल 30 लाख रुपए इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा गया है और अब तक 30 फीसदी राशि इकट्ठा हो चुकी है। जिस तरह से ज्यादा से ज्यादा लोग इस अभियान के समर्थन में आगे आ रहे हैं, यह एक जन अभियान और भागीदारी वाला जनहित कानूनी लड़ाई बनता जा रहा है। अगर यह सफल रहा, तो यह देश में सार्वजनिक हित के आन्दोलनों के लिए एक नई शुरुआत होगी और इनके लिए नए रास्ते खोलेगा।