कानून की छात्रा के पत्र पर दिल्ली हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, सुनने में लाचार को भी DJS-2018 में मिलेगा आरक्षण, उम्र में छूट
LiveLaw News Network
29 Dec 2017 8:23 AM GMT
एक बडे उदाहरण में में दिल्ली ज्यूडिशियल सर्विसेज (DJS ) परीक्षा में 'शारीरिक विकलांगता' (PH) उम्मीदवारों के लिए आरक्षण और आयु में छूट का लाभ सुनने से लाचार लोगों तक बढा दिया गया है वो भी बिना किसी मुकदमे के। दरअसल सुनने ये लाचार एक छात्र ने
दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी को इसके लिए पत्र लिखा था और 23 दिसंबर की हाईकोर्ट की अधिसूचना में 2017 के लिअ डीजेएस परीक्षा के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए सुनने से लाचार उम्मीदवारों को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
गौरतलब है कि 20 अप्रैल 2016 के अपने पत्र में एनएलयू दिल्ली के अंतिम वर्ष के छात्र सौम्य शर्मा ने चीफ जस्टिस का ध्यान दिल्ली की न्यायिक सेवा परीक्षा 2015 के लिए अधिसूचित 'विज्ञापन' पर दिलाया था। इसमें PH उम्मीदवारों को ऊपरी उम्र की सीमा में 10 वर्ष की छूट और 3% के क्षैतिज आरक्षण को केवल नेत्रहीन और अथाह-विकलांगों के लिए सीमित किया गया था।
उन्होंने उम्मीदवारों को दी गई पात्रता और आरक्षण पर स्पष्टता के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट में RTI दाखिल की थी। हाईकोर्ट के जनसूचना अधिकारी ने बताया था कि 18 जनवरी 2007 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (MoSJE) की अधिसूचना के अनुसार न्यायपालिका में जज और निचली अदालतों में अधीनस्थ मजिस्ट्रेटों की नौकरियों के लिए सुनने में लाचार लोगों को आरक्षण या लाभ नहीं दिया जाता।
लेकिन सौम्या ने अपने पत्र में कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट इसके लिए बाध्य नहीं है।इसके लिए उन्होंने भारत सरकार बनाम नेशनल फेडरेशन ऑफ ब्लाइंड ([2013] 10 एससीसी 772] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने 1995 के विकलांग व्यक्तियों के अधिनियम की धारा 33 की व्याख्या की है। इसका मतलब ये है कि हर सरकार को एक स्थान पर कम से कम 3% रिक्तियों की नियुक्ति करनी होगी, जिसमें से 1% प्रत्येक अंधापन और कम दृष्टि से पीड़ित व्यक्तियों के लिए आरक्षित होगा, श्रवण विकलांगता से पीड़ित व्यक्तियों और लोकोमोटोर या सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए प्रत्येक ये पद पहचाने गए हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि आरटीआई का उत्तर 2007 के अधिसूचना से संबंधित है, विकलांग व्यक्तियों के लिए उपयुक्त पहचान पदों की सूची 2013 को MoSJE द्वारा 29 जुलाई, 2013 की अधिसूचना के जरिए अधिसूचित किया गया था जोकि सुनने में लाचार उम्मीदवारों के लिए न्यायपालिका में यथास्थिति बनाए रखता है। हालांकि 8 जनवरी, 2014 का कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) का एक कार्यालय ज्ञापन स्पष्ट रूप से बताता है कि MoSJE द्वारा अधिसूचित नौकरियों और पदों की सूची स्पष्ट है और संबंधित मंत्रालयऔर विभाग नौकरी की आवश्यकताओं को देखते हुए आगे सूची को पूरक कर सकते हैं। । इसी तरह 2 9 दिसंबर, 2005 को डीओपीटी के OM में दोबारा ये दोहराया गया। इसके अलावा तीन साल पहले 2013 की सूची में बदलाव किया गया और 1995 के अधिनियम की धारा 32 के आधार पर उपयुक्त सरकार के लिए ये तकनीक को भी ध्यान में रखा जाए जिसके चलते अब विकलांग व्यक्ति सामान्य रूप से जीवन चलाने सक्षम हो गए हैं। अंत में 1 997 के दिल्ली न्यायिक सेवा नियमों के नियम 19 के तहत सुनने में अक्षमता अयोग्यता के रूप में घोषित नहीं की गई है।
सौम्या ने कहा, "तमिलनाडु, हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों ने अधीनस्थ न्यायपालिका में सुनने में लाचार उम्मीदवारों के लिए सुविधा दी है और उन्हें भी स्पष्ट रूप से विकलांग व्यक्तियों के तहत प्रदान किए गए आरक्षण के लाभ के लिए, नियम 1 995 के तहत उनके राज्य की अधीनस्थ न्यायपालिका की परीक्षाओं के योग्य बनाया है ", उसने कहा, "दोनों कानों में सुनने की गंभीर गड़बड़ी होने के बावजूद, मैं सुनने की मशीन की मदद से सुन सकती हूं और पूरी बातचीत करने में सक्षम हूं। सुनने मां लाचार के लिए अब पारंपरिक विचारों को आधार नहीं बनाया जा सकता। मुझे यह भेदभावपूर्ण लगता है कि मेरी सुनने संबंधी परेशानी के कारण मुझे जज नहीं बनाया जा सकता। "उसने अपने पत्र में लिखा था कि SAIF के लाभ से सुनने में लाचारी की वजह से वंचित नहीं किया जा सकता और ये संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 1 9 के तहत मूल अधिकारों का उल्लंघन है।ये अनुच्छेद 14 के तहत पात्र के तौर पर ये वर्गीकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि बाकी विकलांग लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। सौम्या ने आगे लिखा कि अनुच्छेद 16 (1) द्वारा गारंटीकृत अधिकार में सरकारी कार्यालय पद के लिए आवेदन करने का अधिकार शामिल है और जिस पद के लिए आवेदन किया गया है उसके लिए योग्यता पर विचार करने का अधिकार है। हालांकि अनुच्छेद 16 (1) किसी भी कार्यालय में चयन या नियुक्ति के लिए उचित नियमों पर रोक नहीं लगाता लेकिन दिल्ली न्यायिक परीक्षा के लिए सुनने में लाचार लोगों पर विचार ना किया जाने का नियम सही नहीं है। निर्धारित उपयुक्तता मानदंड इस धारणा पर आधारित है कि सभी सुनने में अक्षम उम्मीदवार सुन नहीं सकते। “ आखिरकार उनसे अनुच्छेद 1 9 (1) (जी) पर भरोसा व्यक्त किया जिसमें सभी नागरिकों को अपनी पसंद का व्यवसाय करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 1 9 (2) के तहत पब्लिक आर्डर के आधार पर इस अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, न्यायिक सेवा की परीक्षा में सुनने में लाचार व्यक्ति के शामिल होने से पब्लिक आर्डर का मामला नहीं बनता। इसके अलावा उन्होंने इस तर्क की आलोचना की कि न्यायालयों को सुनने से लाचार लोगों के अनूरूप नहीं बनाया जा सकता क्योंकि 1995 के अधिनियम 42 की धारा 42 के तहत सरकार अपंग लोगों के लिए मदद और उपकरणों को उपलब्ध कराएगी। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया था कि "प्रासंगिक निर्देशों की समीक्षा करें और स्पष्ट रूप से भविष्य में आयोजित की जाने वाली DJS परीक्षा के लिए आरक्षण के उद्देश्य से सुनने में लाचार उम्मीदवारों को भी शामिल करें"।