इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को दी जमानत, फैसले में पीडिता का नाम लिखकर न्यायिक जनादेश का उल्लंघन किया

LiveLaw News Network

29 Dec 2017 5:43 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को दी जमानत, फैसले में पीडिता का नाम लिखकर न्यायिक जनादेश का उल्लंघन किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने IPC 354 C, 376 और 506 के तहत रेप और धमकी देने के मामले के आरोपी को जमानत दे दी है। उस पर 2000 के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 और 67 ए और  के तहत भी आरोप हैं। ये आरोप निजता में खलल और निजी तस्वीरों को  प्रकाशित करने पर लगाए गए।

    इसके अलावा, यौन अपराध मामलों में पीड़ित की पहचान  उजागर करने  के खिलाफ न्यायिक जनादेश का उल्लंघन करते हुए वर्तमान फैसले में पीडिता के नाम का 10 बार उल्लेख किया गया है। दरअसल 2003 में, भूपिंदर शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश [(2003) 8 एससीसी 551) में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों  की पीठ ने पाया था, "हम पीड़िता के नाम का उल्लेख करने का प्रस्ताव नहीं करते। आईपीसी की धारा 228 ए कुछ अपराधों के शिकार की पहचान का प्रकटीकरण को दंडनीय बनाता है।

    धारा 376, 376 ए, 376 बी, 376 सी या 376 डी के शिकार किसी भी व्यक्ति की पहचान उजागर करने वाले किसी छपाई या प्रकाशन को दोषी पाया जाता है, उसे दंडित किया जा सकता है। यह सच है कि ये प्रतिबंध हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा छपाई या फैसले के प्रकाशन से संबंधित नहीं है। लेकिन यौन उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न के शिकार को रोकने के सामाजिक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए धारा 228 ए अधिनियमित किया गया है। यह उचित होगा कि निर्णय में  इस न्यायालय, उच्च न्यायालय या निचली अदालत के मामले में, शिकार के नाम का संकेत नहीं होना चाहिए। हमने उसे निर्णय में 'पीड़ित' के रूप में वर्णन करने का विकल्प चुना है "।

    पेश मामले में  8 जुलाई को पीडिता के चचेरे भाई ने आरोपी के खिलाफ पीडिता की निजी तस्वीरों को कथित तौर पर भेजने के लिए मामला  दर्ज कराया। आरोप लगाया गया कि ये तस्वीरें पीडिता की  सहमति के बिना और पीड़ित और उसके परिवार के साथ दुर्व्यवहार और धमकी देने के लिए ली गईं।

     सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत अपने बयान में पीडिता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 2014 में अपने जीमेल अकाउंट और उसके आईपी पते की पहचान चुपचाप  हासिल की और  उसके बाद, उसके मोबाइल फोन को हैक कर लिया।  फरवरी 2016 में  अभियुक्त ने पीडिता को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और निजी फोटो और वीडियो परिवार को भेजने की धमकी दी। मार्च 2017 में आरोपी ने उसे अपने मित्र के निवास पर बुलाया, बलात्कार किया और एक गुप्त कैमरे से एक वीडियो तैयार किया, साथ ही धमकी दी कि अगर उसने किसी भी व्यक्ति से शिकायत की तो इंटरनेट पर वीडियो पोस्ट कर देगा। 12 जुलाई को जब पीडिता  उत्तर प्रदेश के जिला बलिया चली गई तब आरोपी ने यूट्यूब पर उसके निजी फोटो और वीडियो पोस्ट किए। अदालत ने व्हाट्सएप और फेसबुक पर वार्तालापों पर ध्यान दिया जो पीडिता और आरोपी के बीच थे।  दोनों एक ही इंजीनियरिंग कॉलेज में सहयोगी थे और आरोपी ने ये दर्शाया कि उनके बीच एक करीबी संबंध हैं और पीडिता ने अपनी सहमति से निजी तस्वीरों को भेजा था ।

    हाईकोर्ट ने ये भी पाया कि आरोपी को 9 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था और उसके लैपटॉप और मोबाइल फोन को पुलिस द्वारा जब्त कर लिया गया था। इसलिए 12 जुलाई को सोशल मीडिया पर निजी तस्वीरों और वीडियो को पोस्ट करने की कोई संभावना नहीं है। साथ ही जीमेल अकाउंट और आईपी पते के जरिए मोबाइल फोन को हैक करना संभव नहीं है। अंत में हाईकोर्ट  ने कहा कि धारा 164 सीआरपीसी के तहत अपने बयान में पीडिता ने कहा है कि आरोपी ने मार्च 2017 में उससे बलात्कार किया था और एक गुप्त कैमरे द्वारा एक वीडियो भी तैयार किया था लेकिन इस की कोई तस्वीर अदालत के सामने पेश नहीं की गई ।

     रिकॉर्ड पर सामग्री का इस्तेमाल करते हुए और मामले की योग्यता पर किसी भी राय को व्यक्त किए बिना इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी। साथ ही शर्त लगाई कि वो बिना सुनवाई टाले ट्रायल में खलल नहीं डालेगा। इसके अलावा  किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा और वह जांच या परीक्षण के दौरान गवाहों को धमकाकर अभियोजन पक्ष के साक्ष्य से छेड़छाड़ नहीं करेगा।

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