आरोपियों की मदद के लिए सरकारी खर्चे पर पर्याप्त अनुभवी वकील उपलब्ध कराये जाने चाहिएं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

27 Dec 2017 1:10 PM GMT

  • आरोपियों की मदद के लिए सरकारी खर्चे पर पर्याप्त अनुभवी वकील उपलब्ध कराये जाने चाहिएं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनवाई अदालत को निर्देश दिया है कि आरोपियों की पैरवी के लिए पर्याप्त रूप से अनुभवी वकील उपलब्ध कराए जाएं और उनकी क्षमता के बारे में संतुष्ट होने के बाद ही उनकी नियुक्ति की जाए।

    औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति टीवी नलवाडे और न्यायमूर्ति एएम धावले ने यह बात एक आरोपी को बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसल को सही ठहराते हुए कही जिस पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप था। सुनवाई अदालत ने उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने के आधार पर बरी कर दिया था।

    यह कहते हुए कि आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए, पीठ ने कहा कि जांच अधिकारी का आरोपी की मानसिक स्थिति की जांच के लिए उसे चिकित्सा अधिकारी की राय लेने के लिए नहीं भेजना और मानसिक अस्पताल जाकर यह पता नहीं लगाना कि वह इस बीमारी का इलाज करा रहा है या नहीं, इस मामले की खामी रही।

    कोर्ट ने सुनवाई अदालत के रिकॉर्ड को पढने के बाद इस बात पर गौर किया कि आरोपी का कोई वकील नहीं था और सत्र न्यायाधीश ने सरकारी खर्चे पर उसे एक वकील उपलब्ध कराया था। गवाहियों से ठीक से सवाल-जवाब नहीं किए गए और घटना के तुरंत बाद आरोपी का व्यवहार कैसा था इस बारे में कोई सवाल नहीं किए गए।

    विभिन्न मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने सभी पुलिस अधिकारियों, न्यायिक मजिस्ट्रेटों और सत्र न्यायाधीशों/विशेष न्यायाधीशों को कुछ निर्देश जारी किए :




    • जब भी कोई आरोपी हिरासत में लिया जाता है और अगर उसकी मानसिक स्थिति और उसका व्यवहार पहले से ठीक नहीं होने का रिकॉर्ड रहा है तो उसको गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य होता है कि वह उस व्यक्ति की किसी चिकित्सक से जांच कराए और इस बारे में उससे जरूरी प्रमाणपत्र ले। अगर उसकी मानसिक दशा ठीक नहीं है तो उसको इलाज के लिए किसी मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करा देना चाहिए। जब तक उसको इस अस्पताल से स्वस्थ होने का प्रमाणपत्र नहीं मिल जाता तब तक यह मामला आगे नहीं बढ़ सकता।

    • अगर जांच अधिकारी अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पाता है तो यह जिम्मेदारी उस न्यायिक मजिस्ट्रेट की हो जाती है जिसके सामने उसे पहली बार पेश किया जाता है। अगर रिमांड के समय उसको यह पता लगता है कि आरोपी के मानसिक रूप से अस्थिर होने का इतिहास रहा है या वह मानसिक अस्थिरता दिखा रहा है तो उसकी चिकित्सकीय जांच कराई जानी चाहिए और यह पता कराया जाना चाहिए कि वह किसी मानसिक या लीगल पागलपन का शिकार तो नहीं है। अगर वह मानसिक पागलपन का शिकार है तो उसे उचित चिकित्सा उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

    • सुनवाई करने वाले जज को यह भी ध्यान में रखना है कि कोई भी आपराधिक मामला जिसमें बड़ी सजा हो सकती है, बिना किसी वकील की नियुक्ति के नहीं चलना चाहिए। अगर आरोपी का कोई वकील नहीं है तो उसे सरकारी खर्चे पर उचित कानूनी मदद उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

    • जिस मामले में आरोपी को सजा हो सकती है उस मामले में यह सत्र न्यायाधीश का कर्तव्य है कि वह उसे काफी अनुभवी वकील उपलब्ध कराए। इस बात की जांच की जानी चाहिए कि उसने सत्र मामलों में पैरवी की है या नहीं और वह कितने समय से प्रैक्टिस कर रहा है सिर्फ यही उसकी नियुक्ति का आधार नहीं होना चाहिए। ...कानूनी मदद सरकारी खर्चे पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए और यह नाममात्र का नहीं होना चाहिए। यह सब सुनिश्चित कर लेने के बाद ही उसे आरोपी का वकील नियुक्त किया जाना चाहिए। इस फैसले की कॉपी रजिस्ट्रार जनरल और महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक को भेजा जाना चाहिए ताकि वह इस बारे में जरूरी निर्देश दे सकें।


    पीठ ने कहा कि जब सरकारी खर्चे पर वकील की नियुक्ति हो जाती है तो सुनवाई के समय उसकी योग्यता के बारे में पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए पीठ ने कहा, “यह जरूरी है कि सरकार के खर्चे पर वकील की नियुक्ति करते समय, सुनवाई अदालत को अपने आदेश में यह घोषित करना चाहिए कि वकील कितने समय से प्रैक्टिस कर रहा है और आपराधिक मामले, किसी विशेष तरह के सत्र मामले की पैरवी में उसको क्या अनुभव है और यह कि दी गई परिस्थिति में जहाँ कि बड़े अपराध के लिए सजा मिलने की संभावना ज्यादा है, वह आरोपी के लिए नियुक्त होने वाला उपयुक्त व्यक्ति है।”


     
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