बॉम्बे हाई कोर्ट ने 60 दिनों से न्यायिक हिरासत में कैद व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
26 Dec 2017 5:13 PM IST
बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने को कहा है जो निर्धारित 60 से ज्यादा दिनों से न्यायिक हिरासत में बंद है।
न्यामूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि 60 से ज्यादा दिनों तक जेल में रखना आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 167(2) और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
मामले की पृष्ठभूमि
जेल में बंद व्यक्ति रोहित के पिता राजकुमार भागचंद जैन ने याचिका दाखिल की है। रोहित को सीबीआई के आर्थिक मामले की शाखा ने एक मामले में 19 सितम्बर 2017 को हिरासत में लिया था। रोहित को एस्पलेनैड, मुंबई के अतिरिक्त मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया था।
शुरू में उसे 28 सितम्बर तक हिरासत में रखने का आदेश दिया गया था जिसे बाद इसकी अवधि 12 अक्टूबर 2017 तक बढ़ा दी गई और फिर उसके बाद 9 नवंबर 2017 तक।
इसके बाद सीबीआई ने कोर्ट में एक और आवेदन किया ताकि वह 23 नवंबर तक रोहित को अपने हिरासत में रख सके। इस तरह उसकी हिरासत की अवधि 60 दिन से ज्यादा हो गई।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसके बेटे ने 20 नवंबर को जमानत के लिए आवेदन किया पर उसकी यह अपील इस आधार पर ठुकरा दी गई कि अभियोजन पक्ष ने आईपीसी की धारा 465, 467, 468 और 471 और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 के तहत उसकी हिरासत और ज्यादा दिनों के लिए चाहता है। इस आधार पर सीबीआई ने कोर्ट में यह कहा कि अभियोगपत्र दाखिल करने की अवधि 80 दिन है न कि 60 दिन।
जमानत नहीं दिए जाने के बाद याचिकाकर्ता के बेटे ने यह जानना चाहा कि उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 को लागू करने के बाद अभियुक्त का रिमांड बढाने की मांग करने वाले अभियोजन पक्ष के किसी आवेदन या उसके किसी अन्य आग्रह का कोई रिकॉर्ड क्यों नहीं है।
अंतिम फैसला
अगर जांच ऐसे मामले के बारे में है जिसमें मौत, आजीवन कारावास या दस साल से ज्यादे की सजा नहीं हो सकती तो इस तरह के मामले में मजिस्ट्रे अभियुक्त को अधिकतम 60 दिनों की हिरासत में भेज सकता है।
याचिकाकर्ता के वकील पंकज जैन ने कहा कि चूंकि क़ानून के तहत हिरासत की अनुमति नहीं है, इसलिए कोर्ट ने उसे अदालत में पेश करने का आदेश दिया।