हिरासत में मौत : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, डीके बसु Vs पश्चिम बंगाल के बाद भी ज्यादा कुछ नहीं बदला [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

25 Dec 2017 4:39 AM GMT

  • हिरासत में मौत : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, डीके बसु Vs पश्चिम बंगाल के बाद भी ज्यादा कुछ  नहीं बदला [निर्णय पढ़ें]

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते 1 99 5 में दलीप चक्रवर्ती की हिरासत में मौत के लिए दिल्ली पुलिस के स्पेशल स्टाफ से जुड़े छह पुलिसकर्मियों की सजा को बरकरार रखा है।

    पुलिस अधिकारियों द्वारा दायर की गई अपील की सुनवाई में जस्टिस एस  मुरलीधर और

    जस्टिस  आई.एस. मेहता की बेंच ने डी.के बसु बनाम राज्य पश्चिम बंगाल, (1 99 7) 1 एससीसी 416 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें हिरासत में हिंसा के मामलों को रोकने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए  गए थे।

     इसके बाद इस तथ्य पर दुख प्रकट किया गया कि दो दशकों में हिरासत में हिंसा और हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या में गिरावट नहीं हुई है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पिछली पांच रिपोर्ट बताती हैं  कि पुलिस हिरासत में हुई मौतों की घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट नहीं देखी गई है। एलसीआई द्वारा अनुशंसित कोई भी विधायी परिवर्तन अभी तक नहीं किया गया है। समस्या अभी भी ज्यों कि त्यों बनी हुई है। इन अपीलों की सुनवाई इसी आधार पर की जा रही है।

    कोर्ट ने कहा कि लगता है कि पुलिस  अधिकारियों ने एक मकसद के साथ मृत व्यक्ति के घर पर छापा मारा। इसके बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 34 (सामान्य इरादा) को चुनौती देने वाली याचिका

    को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, "एक विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस बल, जिसे विशेष कर्मचारी कहा जाता है, स्पष्ट रूप से सक्षम पुलिस अधिकारियों की एक सावधानी से चुनी टीम होती है जो पूरी तरह से पूछताछ और जांच के लिए बनाई जाती है। जब एक टीम को छापे जाने के लिए इकट्ठा किया जाता है तो टीम को उस उद्देश्य के बारे में पता होता है जिसके लिए इसे भेजा जा रहा है। पूर्व नियोजन के कुछ तत्व होने चाहिए यद्यपि ऐसी टीम के अलग-अलग सदस्यों को यह नहीं बताया जा सकता कि उन्हें कहाँ जाना है। प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों के रूप में  उनसे ये उम्मीद  की जाती है कि जिस मिशन के लिए उन्हें इकट्ठा किया गया है, उसे सफलतापूर्वक पूरा किया जाएगा। इसमें किसी संज्ञेय अपराध के लिए  व्यक्ति को गिरफ्तार करने और उस प्रक्रिया में अगर प्रतिरोध होता है, तो व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए आवश्यक न्यूनतम बल का उपयोग करना चाहिए। "

     इसके बाद, उनकी अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने आगे कहा, "ये सभी वर्दीधारी पुलिसकर्मी हैं, जिन पर कानून और व्यवस्था बनाए रखने की उम्मीद रहती है और माना जाता है कि वो कानून - व्यवस्था को अपने हाथों में  नहीं लेंगे। साथ ही वो नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए वाजिब कार्रवाई करेंगे।

    हालांकि कोर्ट ने हत्या के आरोपों को गैरइरादतन हत्या में तब्दील कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये तो साबित होता है कि आरोपी पुलिसवालों के व्यवहार की वजह से ही ये मौत हुई लेकिन अभियोजन पक्ष से ठोस सबूत देने में नाकाम रहा कि उसे कौन सी घातक चोटें लगीं जिससे मौत हुई।


     
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