स्वदेशी आस्था के छात्रों के साथ स्कूलों में भेदभाव : मेघालय हाईकोर्ट ने मुख्याध्यापिकाओं को लगाई फटकार [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
20 Dec 2017 3:49 PM IST
मेघालय हाईकोर्ट ने उन दो स्कूलों की मुख्याध्यापिकाओं को जोरदार फटकार लगाई है जिनके छात्रों ने स्वदेशी आस्था के व्यक्ति के अंतिम संस्कार के खिलाफ नारेबाजी की थी। जस्टिस एस आर सेन ने पहले के एक फैसले को दोहराया जिसमें मृतकों के अंतिम संस्कार को लेकर स्वदेशी आस्था (सेन खासी) के सदस्यों की समस्याओं को बताया गया था।
वर्तमान मामला इसी तरह के 'अंतिम संस्कार' मुद्दे से ही संबंधित है। का बेबीमोला बुफ़ांग नामक महिला ने हाईकोर्ट में उनके पति के अंतिम संस्कार के दौरान विरोध के बारे में शिकायत की थी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि स्कूल / कार्य दिवस होने के बावजूद प्रदर्शनकारियों में स्कूल के बच्चे और सरकारी कर्मचारी शामिल थे।
सुनवाई के दौरान बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, "यदि संविधान, धार्मिक सहिष्णुता और आपसी सम्मान के बारे में बच्चों को सही ढंग से नहीं पढ़ाया जा रहा है, तो इस देश का भाग्य क्या होगा? माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल में भेजते हैं ताकि वे देश के अच्छे नागरिक बन सकें ना कि हुडदंगी। यदि कोई मुख्याध्यापक अपने स्कूल के छात्रों को नियंत्रित नहीं कर सकता तो उसे अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। "
हाईकोर्ट ने इस दलील पर भी गौर किया कि इन दोनों स्कूलों में छात्रों से अलग तरह का व्यवहार किया जा रहा है और छात्रों में भेदभाव किया जा रहा है। वहां स्वदेशी आस्था के छात्रों को अलग बैठने के लिए कहा जा रहा है।
जस्टिस सेन ने कहा, “ वास्तव में ये सभी के लिए शर्मनाक है और मैं दोहराता हूं कि समाज उठे और इन प्रकार के मुद्दों पर गौर करे तथा भारत को 'एक देश, एक राष्ट्र और एक परिवार' बनाने में सहयोग करे।
हाईकोर्ट ने लंबित FIR पर विचार करने के लिए खासा हिल्स पूर्व जिले के पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया है। साथ ही डीपीआई, स्कूल शिक्षा को निर्देश दिए हैं कि वो समय-समय पर औचक निरीक्षण टीम को भेजे और देखे कि स्कूल किसी भी पक्ष या भेदभाव के बिना काम करें जहां छात्र बिना डर के अध्ययन कर सकें।
कोर्ट ने सभी पक्षकारों को इलाके में शांति और सामंजस्य बनाए रखने तथा एक दूसरे को परेशान ना करने या किसी तरह की घृणा ना फैलाने के निर्देश भी दिए।
कोर्ट ने साफ कहा कि आदेश का उल्लंघन करने पर न्यायालयों की अवमानना अधिनियम,1971 के तहत कार्रवाई होगी।