अगर कार्य पेशेवर व्यवहार से अलग तो वकील के खिलाफ अनुशासानात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

20 Dec 2017 9:58 AM GMT

  • अगर कार्य पेशेवर व्यवहार से अलग तो वकील के खिलाफ अनुशासानात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा एक वकील के खिलाफ शुरू की गई अनुशासानात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस कार्य का  पेशेवर व्यवहार से कोई लेना देना ना हो, उस मामले में अनुशासानात्मक कार्रवाई करना अनुचित और क्षेत्राधिकार से बाहर है। 

    दरअसल बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने छत्तीसगढ़ बार काउंसिल के आदेश को बरकरार रखा था जिसने वकील कौशल किशोर अवस्थी को मुव्वकिल द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर व्यावसायिक कदाचार का दोषी ठहराया था। हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने राज्य बार काउंसिल द्वारा लगाए गए जुर्माने के साथ 2 साल के लाइसेंस निलंबन की अवधि घटाकर एक साल कर दी थी। वकील ने एस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

    जस्टिस  ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच के सामने अपील में एकमात्र तर्क दिया गया था कि अगर शिकायत में निहित आरोपों को अगर सही भी मान लिया जाता है तो भी अधिवक्ता अधिनियम और नियमों के प्रावधान के तहत इसे कदाचार नहीं कहा जा सकता।

    गौरतलब है कि वकील शिकायतकर्ता के लिए उस दावे में पेश हुआ था जो कि उसने दाखिल  किया था। यह मामला पक्षों के बीच ही  तय किया गया और शिकायतकर्ता को 0.03 एकड़ जमीन का मालिक घोषित किया गया। शिकायतकर्ता और उनके वकील के बीच विवाद तब उठा जब शिकायतकर्ता ने अपने हिस्से को  बेचने का फैसला किया। वकील ने प्रस्तावित बिक्री के खिलाफ एक आपत्ति पत्र  तैयार किया और शिकायतकर्ता द्वारा जमीन के पंजीकरण पर ये कहते हुए  आपत्ति जताई कि उसके पास  भूमि का पूरा स्वामित्व नहीं है और बाजार मूल्य भी कम दिखाया गया है। आपत्ति दर्ज  के लिए उसने औचित्य दिया कि बिना कर्ज चुकाए ही जमीन बेची जा रही थी और यह नहीं किया जा सकता।

    बेंच ने व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानक के अध्याय II के तहत नियम 22 का हवाला दिया जो किसी भी वकील को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक ही बोली बनाने या उसके अपने नाम पर या दूसरे के नाम पर या अपने लाभ के लिए या किसी के लाभ के लिए खरीदता है या किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी मुकदमे, अपील या अन्य कार्यवाही में डिक्री या आदेश के निष्पादन में बेचने वाली कोई भी संपत्ति, जिसमें वह किसी भी तरह से पेशेवर रूप से लगे हुए थे, रोकता है।

    बेंच ने शिकायत के आधार पर कहा कि बेचने वाले ने खरीदार से ये करार किया था और ये किसी कानूनी कार्रवाई का हिस्सा नहीं था और ना ही ये किसी डिक्री के तहत था जिसका कि वकील हिस्सा था।

    बेंच ने कहा कि शिकायतकर्ता ने खुद माना है कि वो रुपयों की जरूरत के चलते जमीन को बेचना चाहता था। वकील सिर्फ जमीन की बिक्री को रोकना चाहता था और वो उस वक्त वकील की हैसियत से ये नहीं कर कहा था। उसके मुताबिक शिकायतकर्ता कर्ज चुकाए बिना जमीन को नहीं बेच सकता।

    बेंच ने ये भी कहा कि यहां अपीलकर्ता ने क्या दलील दी ये प्रासंगिक नहीं है बल्कि ये प्रासंगिक है कि उसने ये कार्य अधिवक्ता के तौर पर नहीं किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने  वकील के खिलाफ शुरू की गई अनुशासानात्मक कार्रवाई को रद्द करते हुए कहा कि जिस कार्य का पेशेवर व्यवहार से कोई लेना देना ना हो, उस मामले में अनुशासानात्मक कार्रवाई शुरू करना अनुचित और क्षेत्राधिकार से बाहर है।


     
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