उच्चतम न्यायालय अवार्ड के लिए अर्जी पर सुनवाई नहीं कर सकता भले ही उसने मध्यथता प्रक्रिया का सारा अधिकार उसी के पास हो : SC [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
17 Dec 2017 2:28 PM IST
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि विधान के तहत कोर्ट के क्षेत्राधिकार को ना बदलने की इजाजत दी जा सकती है और ना ही लचीला बनाने की, वो भी इसलिए कि उच्चतम अदालत ने अलग तरीके से मामले में दखल दिया है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई वाली पीठ ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम साइतहैंड स्कैल्टन ( प्रा.) लिमिटेड औल गुरू नानक फाउंडेशन बनाम रतन सिंह एंड संस मामले के फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया कि जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसी मामले में मध्यथ नियुक्त किया गया और आगे निर्देश जारी किए गए, तो परिभोग का सारा अधिकार उसी में रहेगा और ऐसे हालात में एक्ट की धारा 2(c) के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ही इसके लिए तय कोर्ट होगा।
बेंच ने झारखंड राज्य बनाम M/S हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड मामले में दो जजों की बेंच के भेजे रेफेरेंस का जवाब देते हुए कहा कि जब एक्ट के तहत मध्यथ नियुक्त नहीं किया गया हो और मामले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई हो, फिर मध्यथ नियुक्त कर 71 निर्देश जारी किए गए हों तो ये कहना अनुचित और असंगत होगा कि उच्च अदालत को धारा 30 और 33 के तहत आपत्तियों को देखनका क्षेत्राधिकार है।
बेंच ने कहा कि कोर्ट के पास ये क्षेत्राधिकार है कि वो तथ्यों के आधार पर पहली अर्जी पर सुनवाई करे कि किस कोर्ट के पास क्षेत्राधिकार है और वो क्षेत्राधिकार उसी के पास बना रहेगा।
ये कोर्ट सहमति से एक मध्यथ को रेफरेंस दे सकता हे लेकिन इसे एक कानूनी सिद्धांत मानकर कि वो आपत्तियों पर भी दखल दे सकता है क्योंकि इससे ओरिजनल कोर्ट के सामने क्षेत्राधिकार को लेकर मौलिक भ्रांति पैदा होगी। बेंच ने ये भी कहा कि कोर्ट ये कहकर वादी के अपील करने के अधिकार को कम नहीं कर सकता कि कोर्ट के दरवाजे खुले हैं और वो इस पर ओरिजनल कोर्ट की तरह विचार कर सकता है। कानून में इस कोर्ट का असली क्षेत्राधिकार निहित है। जब तक कोर्ट ये समझे कि वो उस फोरम को काट सकता है जिसे विधायिका ने वादी को उपलब्ध कराया है।
सिर्फ इसलिए कि किसी उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थ या मुद्दों को नियुक्त किया है, या अदालत में अवार्ड करने की आवश्यकता के आधार पर मध्यस्थ पर कुछ नियंत्रण बनाए रखा है, इसे पहले उदाहरण के एक न्यायालय के रूप में नहीं माना जा सकता है। शब्दकोष क्लॉज शब्द के रूप में इस्तेमाल किए गए शब्द 'कोर्ट' के साथ-साथ धारा 31 (4) में भी कहा गया है