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राजस्थान हाई कोर्ट ने धर्म परिवर्तन और अंतर-धार्मिक विवाह के बारे में दिशानिर्देश जारी किए [निर्णय पढ़ें]
![राजस्थान हाई कोर्ट ने धर्म परिवर्तन और अंतर-धार्मिक विवाह के बारे में दिशानिर्देश जारी किए [निर्णय पढ़ें] राजस्थान हाई कोर्ट ने धर्म परिवर्तन और अंतर-धार्मिक विवाह के बारे में दिशानिर्देश जारी किए [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2017/11/marriageable-age-for-girls.jpg)
राजस्थान हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कई तरह के दिशानिर्देश जारी किए जो कि धर्म परिवर्तन और अंतर-धार्मिक विवाह से जुड़े हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर कोई शादी इन निर्देशों के खिलाफ किसी धर्म में परिवर्तित होने के बाद संपन्न हुआ तो इस तरह की शादी को पीड़ित पक्ष की शिकायत पर निष्फल ठहरा दिया जाएगा।
न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार माथुर और गोपाल कृष्ण व्यास की खंडपीठ ने चिराग सिंघवी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किए। इस याचिका द्वारा सिंघवी ने अपनी बहन पायल सिंघवी को अदालत में पेश किए जाने की मांग की क्योंकि उनका कहना था कि फैएज मोदी नामक व्यक्ति ने उसे गैरकानूनी ढंग से कैद कर रखा है।
इस आरोप पर गौर करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। उसने कहा कि धर्म परिवर्तन और शादी के आरोपों के बारे में सत्य क्या है यह जानने के लिए इस मामले की जांच की जानी चाहिए।
कोर्ट ने 8 नवंबर को पायल और फैएज के साथ बातचीत के बाद कोर्ट ने कहा, “पायल सिंघवी ने हमारे सामने कहा कि वह वयस्क है और किसी व्यक्ति ने उसे गैर कानूनी ढंग से नजरबंद नहीं कर रखा है, और इसलिए उसे मुक्त कर दिया जाना चाहिए।”
पायल सिंघवी जो कि 23 साल की वयस्क है, को कोर्ट मुक्त करती है और वह अपनी इच्छानुसार कहीं भी जा सकती है।”
याचिकाकर्ता ने कहा कि लड़की को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने पर प्रतिबन्ध लगाने को लेकर कुछ दिशानिर्देश जारी किया जाना चाहिए।
प्रतिवादी के वकील ने कहा कि याचिका अर्थहीन हो गया है और चूंकि याचिका में किसी तरह के नियम या अधिनियम के निर्धारित होने तक किसी भी तरह के दिशानिर्देश की मांग नहीं की गई है, इस तरह का कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किया जा सकता। वकील ने कहा कि अगर कोई दिशानिर्देश जारी होता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी मौलिक अधिकार का हनन होगा।
बेंच ने अंततः कहा कि अनुच्छेद 25 के तहत देश के सभी नागरिकों धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि किसी विशेष धर्म का कोई व्यक्ति किसी अन्य नागरिक को अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए बाध्य करे ताकि वह उससे बाद में शादी कर ले।
कोर्ट ने यह भी गौर किया कि हर नागरिक को अपनी इच्छा के अनुरूप धर्म के अनुशरण का अधिकार है लेकिन इसके साथ ही यह कोर्ट को देखना है कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन के कारण आम जीवन में किसी तरह की गड़बड़ी न पैदा हो।
कोर्ट के निर्देश
(A) कोई भी व्यक्ति अगर अपना धर्म बदलना चाहता है तो वयस्क होने पर वह ऐसा कर सकता है।
(B) जो व्यक्ति अपना धर्म बदलना चाहता है उसे धर्म परिवर्तन को तफसील से समझ लेना चाहिए।
(C) जो अथॉरिटी/व्यक्ति धर्म परिवर्तन की रश्म को पूरा करा रहा है उसी पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि संबंधित व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है या नहीं, उसको अपनाए जाने वाले नए धर्म में पूर्ण विश्वास है कि नहीं और उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे किसी व्यक्ति की ओर से धमकाया तो नहीं जा रहा है और अगर उसे यह पता चलता है कि यह एक जबरन धर्म परिवर्तन है तो यह अथॉरिटी/व्यक्ति जिला कलेक्टर/एसडीओ/एसडीम को इसकी सूचना देगा।
(D) जो व्यक्ति अपना धर्म बदलना चाहता है वह इसकी सूचना धर्म परिवर्तन करने से पहले उस शहर के जिला कलेक्टर/एसडीओ/एसडीम को देगा।
(E) जिला कलेक्टर/एसडीम/एसडीओ उसी दिन इस सूचना को अपने कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर लगा देगा।
(F) जिस व्यक्ति ने अपना धर्म बदला है वह शादी/निकाह धर्म परिवर्तन समारोह के एक सप्ताह के बाद ही कर सकता है। इसके लिए जिस व्यक्ति के समक्ष शादी/निकाह होनी है उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि धर्म परिवर्तन के बारे में पहले जानकारी दे दी गई है और उसके बाद ही वह शादी/निकाह करा सकता है।
(G) जबरन धर्म परिवर्तन की सूचना पाने पर जिला कलेक्टर क़ानून के तहत उचित कदम उठाएगा।
(H) यह स्पष्ट किया जा रहा है कि अगर कोई व्यक्ति अपने धर्म परिवर्तन के बारे में गजट में इसे प्रकाशित कराना चाहता है तो उसे प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ बुक्स एक्ट, 1867 की शरण में जाना होगा।
(I) यह निर्देश भी दिया जाता है कि कोई शादी/निकाह अगर किसी धर्म के नाम पर धर्म परिवर्तन के बाद होती है और यह दिशानिर्देश का उल्लंघन करता है तो इस तरह की शादी पीड़ित पक्ष की शिकायत पर निष्फल करार दिया जाएगा
(J) उपरोक्त दिशानिर्देश तब तक कायम रहेगा जब तक कि अधिनियम 2006 बना रहता है या जबरन धर्म परिवर्तन के विषय पर कोई अन्य अधिनियम राजस्थान राज्य (38 of 38) [HC-149/2017] में इसकी जगह नहीं ले लेता।