राज्यसभा द्वारा नियुक्त पैनल का निष्कर्ष, न्यायमूर्ति गंगेले ने महिला न्यायाधीश का यौन उत्पीड़न नहीं किया [रिपोर्ट पढ़ें]
LiveLaw News Network
16 Dec 2017 6:37 PM IST
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एसके गंगेले के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने के लिए राज्यसभा द्वारा गठित तीन सदस्यीय एक जांच समिति ने पाया है कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप ‘साबित नहीं हुए’। पर समिति ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने शिकायत करने वाली महिला न्यायिक अधिकारी के मामले में अपने मानवीय पक्ष को नहीं दिखाया।
इस समिति में न्यायमूर्ति आर बनुमती (सुप्रीम कोर्ट), न्यायमूर्ति मंजुला चेल्लुर (बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश) और वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल शामिल थे। समिति ने बताया कि न्यायमूर्ति गंगेले के खिलाफ सभी तीनों आरोप साबित नहीं हो पाए।
समिति ने यौन उत्पीड़न से इनकार करते हुए कहा कि महिला अधिकारी अच्छी है पर वह गलत धारणा की शिकार हो गई और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनका तबादला कर अपना गैर मानवीय पक्ष उजागर कर दिया।
चूंकि शिकायतकर्ता महिला न्यायिक अधिकारी को जब दूर दराज के नक्सल प्रभावित इलाके में तबादला कर दिया गया तो उन्हें बाध्य होकर अपना पद छोड़ना पड़ा। जब उनका तबादला हुआ उस समय उनकी बेटी को बोर्ड परिक्षा में बैठना था। समिति का मानना है कि महिला अधिकारी को, अगर वह सेवा में वापस आना चाहती है तो, उनके पद पर बहाल कर देना चाहिए। हालांकि समिति ने कहा कि इस तरह का निर्देश देना समिति के अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
न्यायमूर्ति गंगेले पर एक अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है।
4 मार्च 2015 को राज्यसभा के 58 सदस्यों ने न्यायमूर्ति गंगेले को हटाने के प्रस्ताव का नोटिस दिया। इसके लिए इन लोगों ने तीन आधार बताए -
(i) मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच के वर्तमान जज के रूप में एक महिला अतरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश का यौन उत्पीड़न।
(ii) उक्त महिला अतरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश का उत्पीड़न जिसने उनके गैर कानूनी और अनैतिक मांग को नहीं माना और इसके लिए उनका ग्वालियर से सिधी ट्रांसफर कर देना।
(iii) मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के प्रशासिनक जज के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने मातहत न्यायपालिका का प्रयोग करते हुए अतरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश को यातना का शिकार बनाया।
जांच समिति ने अपना निष्कर्ष आरोपी जज के पक्ष में सुनाया है। अप्रैल 2016 में राज्यसभा द्वारा गठित यह चौथी समिति है।
शुक्रवार को समिति ने राज्यसभा को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।
न्यायमूर्ति गंगेले को 2004 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में बार से पदोन्नति दी गई। उनको ग्वालियर बेंच का प्रशासनिक जज बनाया गया और वे ग्वालियर के जिला न्यायालय के भी इनचार्ज थे।
महिला जज मध्य प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा में 2011 में आईं।
समिति के समक्ष अपने हलफनामे में महिला न्यायिक अधिकारी ने एक मौके का जिक्र किया है जब न्यायमूर्ति गंगेले ने कथित रूप से अप्रत्यक्षतः उन्हें उनकी शादी की 25वीं सालगिरह पर आइटम सॉंग गाने को कहा।
उन्होंने आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति गंगेले उन्हें जिला रजिस्ट्रार के माध्यम से भेजे गए संदेश में उनसे उनके बंगले पर मिलने की इच्छा जाहिर की थी जहाँ वे अमूमन अकेले रहते थे।
महिला न्यायिक अधिकारी ने आरोप लगाया था कई सामाजिक समारोहों में वह उन पर अभद्र टिप्पणियाँ की और उनके आग्रहों को नजरअंदाज का देने के कारण उन पर खुफिया नजरें रखी जा रही थी और अंततः तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले उनका ट्रांसफर सिधी जिले में कर दिया गया।
इसकी वजह से अंततः उन्हें अपना पद छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।
न्यायमूर्ति गंगेले ने अपने बचाव में इस तरह के किसी भी आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा कि उनके स्थानांनतरण में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
समिति को जज के खिलाफ महिला न्यायिक अधिकारी द्वारा लगाए गए आरोप में कोई सचाई नहीं दिखी। उन्होंने महिला जज को चपरासी नहीं देने और उनके स्टेनोग्राफर को किसी अन्य कोर्ट में तबादला कर देने जैसे आरोपों में भी कोई सचाई नहीं थी।
यौन उत्पीड़न के आरोप
समिति ने पाया कि महिला जज ने कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों की शिकायत करने में देरी की और यौन उत्पीड़न के चार मामलों को सही नहीं पाया गया।
समिति ने कहा, “...यौन उत्पीड़न का आरोप महिला जज के पद छोड़ दने के काफी बाद आया। उन्होंने पद छोड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से 1 अगस्त 2014 को शिकायत की थी।
नक्सल इलाके में तबादला
समिति ने कहा कि कार्यकाल पूरा करने से पहले ही महिला जज के तबादले का कारण कमल सिंह ठाकुर और तबादला कमिटी थी। पर महिला जज ने कहा कि उनका तबादला न्यायमूर्ति गंगेले के कहने पर हुआ।
समिति ने कहा कि उन्हें यह बात समझ में नहीं आई कि महिला अधिकारी की बेटी बोर्ड परीक्षा में बैठने वाली थी और फिर ऐसे समय में उन्होंने तबादले को क्यों स्वीकार किया।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “जो भी हो, यह आरोप कि जिला जज कमल सिंह ठाकुर ने जज गंगेले के कहने पर महिला जज का तबादला किया, का कोई आधार नहीं मिला। दूसरी ओर, इस बात की पूरी संभावना लगती है कि ग्वालियर के जिला जज कमल सिंह ठाकुर और रजिस्ट्रार नवीन शर्मा के मन में महिला जज के बारे में गलत धारणा थी...”।
महिला अधिकारी को पुनर्बहाल कर देना चाहिए
“...विभिन्न स्रोतों से हमने पाया है कि महिला एक अच्छी अधिकारी थी। यह दुर्भाग्य है कि गलत धारणा बनाई गई...शिकायतकर्ता के बारे में, हाई कोर्ट में भी और प्रतिवादी जज के मन में भी। इसलिए इस बात की संभावना है कि प्रतिवादी जज ने शिकायतकर्ता जज के बारे में गलत धारणा बनाई विशेषकर तब जब वह किसी न किसी कारण से न्यायमूर्ति पीके जायसवाल के साथ संपर्क में थीं।
समिति ने निष्कर्षतः कहा, “बिना किसी का नाम लिए समिति का मानना है कि महिला जज के तबादले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने गैर मानवीय तरीके से व्यवहार किया है। समिति यह मानती है कि, न्याय के हित में, शिकायतकर्ता की सेवा दुबारा बहाल कर दी जाए, अगर वह दुबारा सेवा में वापस आना चाहती हैं। हम यह जानते हैं कि हमारा यह मत हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।”