तीन यूनिवर्सिटी के 155 छात्रों ने दूरस्थ शिक्षा के जरिए ली गई इंजीनिरिंग डिग्री के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

LiveLaw News Network

15 Dec 2017 2:08 PM GMT

  • तीन यूनिवर्सिटी के 155 छात्रों ने दूरस्थ शिक्षा के जरिए ली गई इंजीनिरिंग डिग्री के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

    2001 से 2005 के बीच दूरस्थ शिक्षा यानी पत्राचार के माध्यम से राजस्थान के JRN राजस्थान विद्यापीठ, इंस्टीटयूट ऑफ एडवांस स्टडीज इन एजुकेशन और इलाहाबाद के इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटयूट से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों की डिग्री निलंबित करने के फैसले के खिलाफ 155 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

    नवंबर में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने कहा था कि ये डिग्री तब तक निलंबित रहेंगी जब तक छात्र UGC और AICTE की देखरेख में परीक्षा पास नहीं कर लेते। साथ ही डिग्री के आधार पर मिले सभी फायदों को भी तब तक निलंबित कर दिया गया है।

    कोर्ट ने ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन ( AICTE) को लिखित और प्रैक्टिकल परीक्षा आयोजित करने के निर्देश दिए हैं। इसका पूरा खर्च संबंधित यूनिवर्सिटी से वसूला जाएगा। कोर्ट ने कहा है कि छात्रों को परीक्षा पास करने के दो मौके मिलेंगे और फेल होने पर उनकी डिग्री रद्द और वापस हो जाएंगी। जो छात्र परीक्षा नहीं देना चाहते उन्हें टयूशन फीस व अन्य के लिए जमा किए गए रुपये वापस करने के आदेश दिए गए हैं।

    छात्रों को परीक्षा देने के विकल्प पर 15 जनवरी 2018 तक फैसला लेने को कहा गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से 2005 के बाद ली गई सभी डिग्री को रद्द कर दिया है।

    कोर्ट ने साफ किया है कि इंजीनियरिंग की इस तरीके से डिग्री के सहारे ली गई पदोन्नति या अन्य लाभ को वापस किया जाएगा। हालांकि संबंधित विभागों या नियोक्ता द्वारा दिए गए आर्थिक लाभ को वापस नहीं लिया जाएगा।

    कोर्ट ने तीनों यूनिवर्सिटी को छात्रों को 31 मई 2018 तक सारा पैसा वापस करने को कहा है।

    ये फैसला उस वक्त आया जब कोर्ट ने पाया कि तीनों यूनिवर्सिटी ने 2005 से पहले तकनीकी क्षेत्र में दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कोर्स शुरु किए लेकिन इससे पहले संबंधित अथारिटी से इजाजत नहीं ली। उन्होंने 2005 के बाद इजाजत ली जिसे कोर्ट ने सिद्धांतों में कमी के चलते गैरकानूनी घोषित कर दिया।

    कोर्ट ने पाया कि 2001-2005 के बीच दाखिला लेने वाले छात्रों के बारे में 2004 में UGC ने गाइडलाइन के जरिए संबंधित यूनिवर्सिटी को आजादी दी थी कि वो पिछले सत्र के लिए इजाजत के लिए आवेदन ले सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि उन छात्रों के लिए सहानुभूति दिखाई जानी चाहिए जिन्होंने 2001-2005 में दाखिले लिए ताकि उन्हें सरंक्षण दिया जा सके।

    लेकिन कोर्ट ने ये सहानुभूति उनके लिए नहीं दिखाई जिन्होंने 2005 के बाद दाखिले लिए। कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में वक्त वक्त पर जारी पालिसी बयान और चेतावनी बिल्कुल साफ थी कि इन कोर्स को अनुमति नहीं है।

    इन तीन कॉलेजों के छात्रों ने कहा है कि कोर्ट ने उनका पक्ष सुने बिना ही डिग्री निलंबित करने के आदेश जारी किए जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 से मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। छात्रों का कहना है कि 12 से 16 साल पहले के कोर्स को फिर से याद करना पूरी तरह असंभव है। साथ ही कोर्ट ने ऐसी परीक्षा के लिए सिलेबस के बारे में कुछ नहीं कहा है।

    याचिका में ये भी कहा गया है कि UGC ने जुलाई 2016 में डीम्ड यूनिवर्सिटी के लिए नियम तय किए थे और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन नियंत्रकों को नजरअंदाज करते हुए कहा है कि शिक्षा का स्तर बनाए रखने के लिए डीम्ड यूनिवर्सिटी के लिए कोई नियंत्रण तैयार नहीं किए गए।

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