Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

सासंदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए 1 मार्च, 2018 से काम शुरू करें स्पेशल कोर्ट : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
14 Dec 2017 10:45 AM GMT
सासंदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए 1 मार्च, 2018 से काम शुरू करें स्पेशल कोर्ट : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]
x

एक अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों व विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ट्रायल एक साल में पूरा करने के लिए 1 मार्च 2018 तक 12 स्पेशल कोर्ट का गठन करने और उन्हें शुरू करने के आदेश दिए हैं।

गुरुवार को जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने केंद्र सरकार की उस योजना पर मुहर लगा दी जिसमें 7 राज्यों में 12 स्पेशल कोर्ट के गठन की बात कही गई थी। बेंच ने केंद्र सरकार को राज्यों को तुरंत 7.80 करोड रुपये का फंड वितरित करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें हाईकोर्ट के परामर्श से स्पेशल कोर्ट का गठन करेंगी और हाईकोर्ट ऐसे मामलों को स्पेशल कोर्ट में भेजेगा।

कोर्ट ने केंद्र सरकार को सासंदों व विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का ब्यौरा इकट्ठा करने के लिए दो महीने का और वक्त दे दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की उस मांग को ठुकरा दिया जिसमें ये जिम्मा चुनाव आयोग को देने को कहा गया था।

कोर्ट ने कहा कि वो अगली सुनवाई सात मार्च को करेगा और उसी दौरान स्पेशल कोर्ट बढाने पर भी विचार करेगा। ये एक शुरूआत भर है।

दरअसल भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग को ये निर्देश देने की मांग की थी कि वो सभी सांसदों व विधायकों से उनके लंबित आपराधिक केसों  का ब्यौरा तलब करे। 90 दिनों के भीतर सभी ये ब्यौरा चुनाव आयोग को दें और जो ब्यौरा ना दे उसके चुनाव को शून्य करार दिया जाए। ये जवाबी हलफनामा केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे पर दाखिल किया गया है।

इससे पहले आपराधिक मामलों में शामिल सांसदों व विधायकों का ट्रायल जल्द पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वो सांसदों व विधायकों के लिए वो 12 स्पेशल कोर्ट बनाने जा रही है। इसके लिए 8 दिसंबर को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है और इसमें 7.80 करोड रुपये का खर्च आएगा। केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि स्पेशल कोर्ट के गठन के लिए योजना तैयार कर ली गई है। हालांकि ऐसे आपराधिक मामलों के ब्यौरे के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कुछ और वक्त मांगा है।

दरअसल 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख  अपनाते हुए  सांसदों व विधायकों पर चल रहे आपराधिक मामलों की सुनवाई करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के निर्देश दिए थे।

जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा था कि केंद्र सरकार 6 हफ्ते में कोर्ट में फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए योजना दाखिल करे कि किस तरह इन कोर्ट  के लिए फंड होगा और संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे ? कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि केंद्र ने पहले भी विशेष योजना के तहत स्पेशल कोर्ट बनाए हैं।

वहीं सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से ASG आत्माराम नाडकर्णी ने कहा था कि सरकार जनप्रतिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की फास्टट्रैक सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने के समर्थन में है और इन मामलों की सुनवाई कम से कम वक्त में पूरी करने की मांग का समर्थन करते हैं। लेकिन सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के आजीवन चुनाव लडने पर रोक पर अभी विचार जारी है। इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।

वहीं चुनाव आयोग की ओर से पेश मीनाक्षी अरोडा ने भी दोषी करार होने पर चुनाव लडने पर आजीवन बैन लगाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने और कम से कम वक्त में सुनवाई पूरी करने का समर्थन किया।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 2014 के चुनाव के दौरान 1581 उम्मीदवारों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का क्या हुआ ? इनमें से कितने मामलों में सजा हुई, कितने लंबित हैं और इन मामलों की सुनवाई में कितना वक्त लगा ? 2014 से 2017 तक जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हुए ? उनका क्या हुआ ? कितने मामलों में सजा हुई ? कितने मामलों में बरी हुए और कितने मामले लंबित हैं ? सब जानकारी कोर्ट में दाखिल की जाएं।

अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि फिलहाल देशभर में सासंदों व विधायकों पर करीब 13680 केस लंबित हैं। ऐसे में 12 विशेष अदालतें काफी नहीं हैं। सरकार को कम से कम 140 विशेष अदालतों के गठन के आदेश दिए जाने चाहिए। उन्होंने कोर्ट से सरकार से ये पूछने को भी कहा है कि पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम केंद्र सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर क्या कदम उठाए गए जिसमें सांसदों व विधायकों के ट्रायल एक साल में पूरे करने को कहा गया था।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कहा गया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में ये भी मांग की है कि नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिये स्पेशल फास्ट कोर्ट बनाए जाएं। याचिका में कहा गया है कि अगर जनप्रतिनिधि अधिनियम में सजायाफ्ता व्यक्ति पर चुनाव लडने से बैन लगाने का प्रावधान नहीं रहता तो ये संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा था कि अगर कार्यपालिका या न्यायपालिका से जुडा व्यक्ति किसी अपराध में सजायाफ्ता होता है तो वो अपने पास बर्खास्त हो जाता है और आजीवन सेवा से बाहर हो जाता है। लेकिन विधायिका में ऐसा नहीं है। सजायाफ्ता व्यक्ति जेल से ही राजनीतिक पार्टी बना सकता है बल्कि उसका पदाधिकारी भी बन सकता है। यहां तक कि कानून के मुताबिक 6 साल अयोग्य होने के बाद वो ना केवल चुनाव लड सकता है बल्कि मंत्री भी बन सकता है।

उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइटस के मुताबिक 2004 से संसद और विधानसभा में ऐसे मामलों में तेजी आई है और 34 फीसदी सांसदों का आपराधिक रिकार्ड है। कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियां आपराधिक छवि वाले नेताओं को पसंद करती हैं क्योंकि उनके पास पैसे होते है और मतदाता उनके आपराधिक रिकार्ड से ज्यादा प्रभावित नहीं होते।


 
Next Story