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निदेशक के खिलाफ यौन शोषण के आरोप के आधार पर सिक्यूरिटी सर्विसेज की निविदा को तकनीकी स्तर पर रद्द करना अनुचित : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
12 Dec 2017 3:08 PM GMT
निदेशक के खिलाफ यौन शोषण के आरोप के आधार पर सिक्यूरिटी सर्विसेज की निविदा को तकनीकी स्तर पर रद्द करना अनुचित : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा सिक्यूरिटी सर्विसेज की निविदा को रद्द करना अनुचित है। विश्वविद्यालय ने इसके पीछे तर्क यह दिया था कि कंपनी के निदेशक के खिलाफ यौन शोषण का आरोप है और ऐसा करते हुए दूसरे पक्ष को अपनी बात कहने का मौक़ा नहीं दिया।

न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने इस बारे में सर्वेश सिक्यूरिटी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए उक्त बातें कही। यह कंपनी सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न सरकारी और निजी कंपनियों को अपनी सेवाएं देती हैं।

डीयू ने ई-निविदा जारी किया था जो कि उसके नार्थ कैंपस के दो क्षेत्रों में 24 घंटे सुरक्षा सेवाएं देने के बारे में था।

डीयू ने आवेदनकर्ता की निविदा को तकनीकी मूल्यांकन के स्टेज पर रद्द कर दिया। इसके लिए कारण यह बताया गया कि कंपनी के निदेशक पर एक महिला सुरक्षाकर्मी से छेड़खानी करने का आरोप है। कंपनी ने अपनी निविदा को रद्द किए जाने को अब चुनौती दी है और कहा है कि ऐसा मनमाने ढंग से किया गया है। कंपनी ने यह भी कहा है कि उसकी बात सुने बिना ही उसकी निविदा रद्द कर दी गई है।

दूसरी और, डीयू ने अपनी दलील में कहा कि निविदाकर्ता के खिलाफ लगे आरोप गंभीर किस्म के हैं। उसने कहा, “यह देखते हुए कि दिल्ली विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक संस्था है जहाँ भारी संख्या में छात्र, शिक्षक और अन्य कर्मचारियों का आना-जाना होता है, तकनीकी स्टेज पर निविदा को रद्द करना अनुचित नहीं है।”

पर कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ और कहा, “निविदा मिलने के बारे में कहीं भी किसी तरह के शर्त का जिक्र नहीं है सिवाय इसके कि जिस संस्था का नाम काली सूची में है उसको निविदा में शामिल होने की अनुमति नहीं होगी। ...इस मामले में निविदा रद्द करने का आधार निविदा में शामिल होने की शर्तों से कहीं भी जुड़ा हुआ नहीं है। आवेदनकर्ता कम्पनी के निदेशक या किसी अन्य कर्मचारी को अभी तक उनपर जो आरोप लगे हैं उसकी वजह से सजा नहीं हुई है और न ही कम्पनी का नाम काली सूची में है। इस स्थिति में उसकी निविदा को रद्द करने से पहले उनका पक्ष सुना जाना आवश्यक था।”

कोर्ट ने निविदा रद्द करने को गलत बताया और कहा कि याचिकाकर्ता डीयू के समक्ष अपना पक्ष रखे। डीयू से कोर्ट ने कहा कि वह दो सप्ताह के भीतर कंपनी की सफाई पर अपना निर्णय दे और तब तक के लिए उसे इस निविदा पर अंतिम निर्णय लेने से रोक दिया।


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