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सांसदों, विधायकों के लिए स्पेशल कोर्ट का गठन करने को तैयार केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा

आपराधिक मामलों में शामिल सांसदों व विधायकों का ट्रायल जल्द पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वो सांसदों व विधायकों के लिए वो 12 स्पेशल कोर्ट बनाने जा रही है। इसके लिए 8 दिसंबर को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है और इसमें 7.80 करोड रुपये का खर्च आएगा। केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि स्पेशल कोर्ट के गठन के लिए योजना तैयार कर ली गई है। हालांकि ऐसे आपराधिक मामलों के ब्यौरे के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कुछ और वक्त मांगा है।
इस मामले की सुनवाई 14 दिसंबर को होगी।
दरअसल 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सांसदों व विधायकों पर चल रहे आपराधिक मामलों की सुनवाई करने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के निर्देश दिए थे।
जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा था कि केंद्र सरकार 6 हफ्ते में कोर्ट में फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए योजना दाखिल करे कि किस तरह इन कोर्ट के लिए फंड होगा और संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे ? कोर्ट ने कहा कि इस योजना के बाद ही कोर्ट राज्यों को शामिल कर आदेश जारी करेगा।कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि एक तरफ स्पेशल कोर्ट पर सहमति जताते हैं तो दूसरी ओर ये कहकर हाथ धोते हैं कि ये राज्यों का मामला है जबकि कोर्ट ऐसा नहीं होने देगा, केंद्र ने पहले भी विशेष योजना के तहत स्पेशल कोर्ट बनाए हैं।
वहीं सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से ASG आत्माराम नाडकर्णी ने कहा कि सरकार जनप्रतिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की फास्टट्रैक सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने के समर्थन में है औ इन मामलों की सुनवाई कम से कम वक्त में पूरी करने की मांग का समर्थन करते हैं। लेकिन सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के आजीवन चुनाव लडने पर रोक पर अभी विचार जारी है। इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।
वहीं चुनाव आयोग की ओर से पेश मीनाक्षी अरोडा ने भी दोषी करार होने पर चुनाव लडने पर आजीवन बैन लगाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने और कम से कम वक्त में सुनवाई पूरी करने का समर्थन किया।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 2014 के चुनाव के दौरान 1581 उम्मीदवारों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का क्या हुआ ? इनमें से कितने मामलों में सजा हुई, कितने लंबित हैं और इन मामलों की सुनवाई में कितना वक्त लगा ? 2014 से 2017 तक जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हुए ? उनका क्या हुआ ? कितने मामलों में सजा हुई ? कितने मामलों में बरी हुए और कितने मामले लंबित हैं ? सब जानकारी कोर्ट में दाखिल की जाएं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कहा गया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में ये भी मांग की है कि नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिये स्पेशल फास्ट कोर्ट बनाए जाएं। याचिका में कहा गया है कि अगर जनप्रतिनिधि अधिनियम में सजायाफ्ता व्यक्ति पर चुनाव लडने से बैन लगाने का प्रावधान नहीं रहता तो ये संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि अगर कार्यपालिका या न्यायपालिका से जुडा व्यक्ति किसी अपराध में सजायाफ्ता होता है तो वो अपने पास बर्खास्त हो जाता है और आजीवन सेवा से बाहर हो जाता है। लेकिन विधायिका में ऐसा नहीं है। सजायाफ्ता व्यक्ति जेल से ही राजनीतिक पार्टी बना सकता है बल्कि उसका पदाधिकारी भी बन सकता है। यहां तक कि कानून के मुताबिक 6 साल अयोग्य होने के बाद वो ना केवल चुनाव लड सकता है बल्कि मंत्री भी बन सकता है।
उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइटस के मुताबिक 2004 से संसद और विधानसभा में ऐसे मामलों में तेजी आई है और 34 फीसदी सांसदों का आपराधिक रिकार्ड है। कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां आपराधिक छवि वाले नेताओं को पसंद करती हैं क्योंकि उनके पास पैसे होते है और मतदाता उनके आपराधिक रिकार्ड से ज्यादा प्रभावित नहीं होते।इसके अलावा चूंकि ऐसे लोगों के जीतने की प्रतिशत बढ रहा है तो पार्टियों को लगता है कि वो मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे नेताओं की वजह से चुनाव की पवित्रता से समझौता हो रहा है और जब तक उन पर जीवनभर के लिए रोक नहीं लगेगी, ये चलता रहेगा।