सुप्रीम कोर्ट ने कहा, परीक्षाओं में कोर्ट की दखलंदाजी दुर्भाग्यपूर्ण; मध्य मार्ग अपनाने का सुझाव दिया [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
12 Dec 2017 10:18 AM IST
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा 2009 में आयोजित भर्ती परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी पर गहरा अफ़सोस जाहिर किया और और इसे दूर करने के लिए मध्य मार्ग अपनाने का सुझाव दिया है।
मामले का सिलसिलेबार ब्योरा
- जून 2010:लिखित परीक्षा का परिणाम घोषित जिसमें 36000 छात्रों ने भाग लिया था।
- सितंबर 2010:संयुक्त (लिखित और साक्षात्कार) परीक्षा परिणाम घोषित।
- 2010-2011: असफल उम्मीदवारों ने रिट याचिका दायर की जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट की एकल बेंच ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम, 1982 के तहत उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का प्रावधान नहीं है।
- फरवरी 2012: 77 लोगों द्वारा दायर अन्य रिट याचिकाओं के संदर्भ में हाई कोर्ट के एकल बेंच ने निजी तौर पर उन सात प्रश्नों की जांच की जिनको चुनौती दी गई थी और इन 77 लोगों की उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया।
- मार्च 2012: खंडपीठ ने रिट याचिका को खारिज कर दिया और उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के आदेश को सही ठहराया।
- सितंबर 2012: बोर्ड ने सितंबर 2012 में सभी उम्मीदवारों की लिखित परीक्षा के पुनर्मूल्यांकन का परिणाम घोषित कर दिया।
- कुछ उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसने उन्हें पुनरीक्षण याचिका दायर करने की अनुमति दी।
- नवंबर 2015: खंडपीठ ने अपने पूर्व के आदेश की समीक्षा के बाद एक सदस्यीय विशेषज्ञ को विवादित सात प्रश्नों को जांच के लिए सौंप दिया और विशेषग्य समिति की रिपोर्ट के आधार पर उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया।
- 2017: इस आदेश के खिलाफ अपील जब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित था, बोर्ड ने तीसरा मूल्यांकन पूरा कर लिया।
मध्य मार्ग वाला हल
बेंच ने कहा कि इस तरह के तथ्यात्मक मकड़जाल की स्थिति में, सिर्फ दो ही विकल्प हैं : पुनर्मूल्यांकन की पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाए और 14 सितंबर 2010 को घोषित परिणाम को माना जाए या फिर तीसरे परिणाम पर निर्भर रहा जाए।
बेंच ने कहा, “परीक्षा को रद्द करना विकल्प नहीं है। आप जिस भी विकल्प को चुनें, कुछ उम्मीदवार ऐसे होंगे जो घाटे में रहेंगे और उनको नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा जबकि कुछ को नौकरी मिलेगी।”
कोर्ट ने कहा, “विकल्पों पर गौर करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मध्य मार्ग इस परिस्थिति में सर्वाधिक उपयुक्त है। यह मध्य मार्ग है तीसरे सेट के परिणामों को घोषित कर देना क्योंकि बोर्ड ने हाई कोर्ट के निर्देश से इसके लिए बहुत व्यापक प्रयास किया है। ...यह भी संभव है कि परिणामों की तीसरी बार घोषणा के परिणामस्वरूप कुछ नए उम्मीदवारों का चुनाव हो और अगर ऐसा होता है तो उनको समायोजित करने की जरूरत होगी क्योंकि उनको गलती से पिछली बार छांट दिया गया था।”
कोर्ट के सुझाव :
- 2 नवंबर 2015 को हाई कोर्ट के फैसले के आने के बाद बोर्ड द्वारा तैयार परिणाम आज से दो सप्ताह के भीतर घोषित किया जाए।
- पहले घोषित परिणाम के बाद जो उम्मीदवार प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए, वे अगर तीसरी बार घोषित परिणाम में असफल रहते हैं तो उनको हटाया नहीं जाए और उन्हें अपने पद पर बने रहने दिया जाए।
- तीसरे परिणामों की घोषणा में सफल उम्मीदवारों को राज्य सरकार अतिरिक्त पद सृजित कर उनको नियुक्त करे। हालांकि ये नव नियुक्त प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक किसी भी तरह के लाभ के हकदार नहीं होंगे।
- कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि जनवरी 2009 में हुई परिक्षा का परिणाम आठ साल बीत जाने के बाद अंतिम रूप से अभी तक घोषित नहीं हुआ है।
परीक्षा परिणामों की प्रक्रिया में कोर्ट का हस्तक्षेप दुर्भाग्यपूर्ण
बेंच ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस कोर्ट के कई आदेशों के बावजूद,...परीक्षा परिणामों में कोर्ट का हस्तक्षेप होता है। इससे परीक्षा के आयोजन से जुड़े लोग जांच के घेरे में होते हैं न कि उम्मीदवार। फिर, कई बार लंबे समय तक चली परीक्षा प्रक्रिया पर अनिश्चितता के बादल मंडराते रहते हैं।”
बेंच ने इस बात से भी नाइत्तिफाकी जाहिर की कि एकल जज ने कुछ रिट याचिकाओं पर गौर किया जबकि इससे पहले एकल जज/जजों ने इसी तरह की याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
दया/करुणा का मूल्यांकन में कोई स्थान नहीं
कोर्ट ने कहा कि दया या करुणा का उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन के आदेश देने या नहीं देने में कोई भूमिका नहीं है। कोर्ट ने कहा, “अगर परिक्षा अथॉरिटी द्वारा कोई गलती होती है तो इसका असर सभी उम्मीदवारों पर होता है। सिर्फ इसलिए कि परीक्षा परिणाम कुछ उम्मीदवारों के मनोनुकूल नहीं रहा है, पूरे परीक्षा परिणाम को बाधित नहीं किया जा सकता। सभी उम्मीदवारों पर इसका असर पड़ता है हालांकि कुछ पर इसका असर ज्यादा होता है और कुछ पर कम क्योंकि गणितीय रूप से हमेशा ही सटीक परिणाम की अपेक्षा नहीं की जा सकती। कोर्ट ने इस मकड़जाल से बाहर निकलने का रास्ता सुझाया है – या तो संदिग्ध को बाहर निकालो या परेशान करने वाले इस तरह के सवाल को।”