व्यावसायिक विवादों को संस्थागत मध्यस्थता से सुलझाने के पक्ष में हैं मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा
LiveLaw News Network
10 Dec 2017 2:57 PM IST
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का कहना है कि व्यावसायिक विवादों को संस्थागत मध्यस्थता से सुलझाया जाए। वे देश में इस तरह के विवादों को तात्कालिक रूप से सुलझाने के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट इस मध्यस्थता में न्यूनतम हस्तक्षेप करता है और वे चाहते हैं कि मध्यस्थ ज्यादा से ज्यादा मामलों को निपटाएं।
विवाद सुलझाने के एक वैकल्पिक तरीके और कम खर्चीली मध्यस्थता का समर्थन करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि इससे देश की आर्थिक प्रगति को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि तदर्थ मध्यस्थता का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए और विवादों को पंचाट केन्द्रों को भेज देना चाहिए ताकि उनका ज्यादा सार्थक समाधान हो सके।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “पूरे देश की अर्थव्यवस्था विश्वास पर टिकी है और यह आर्थिक विकास की रीढ़ है”।
मुख्य न्यायाधीश की यह बात इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार पुराने और असंगत हो चुके कानूनों को समाप्त कर रही है और देश को अंतरराष्ट्रीय पंचाट का हब बना रही है।
“वैश्वीकरण के दौर में मध्यस्थता” विषय पर दिल्ली स्थित फिक्की में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि मध्यस्थता में कोर्ट तभी हस्तक्षेप करता है जब कोई रास्ता नहीं बचता।
उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि हस्तक्षेप कहाँ करना है। हम जानते हैं कि न्यूनतम हस्तक्षेप का आधार क्या हो सकता है। और यह इसलिए नहीं कि उनके प्रति कोर्ट का रवैया दोस्ताना है।”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “कोर्ट को यह देखना है कि मध्यस्थों ने कौन सा तरीका अपनाया है और उनका तर्क सही है या नहीं। अधिकांशतः कोर्ट यह चाहता है कि फैसला कायम रहे।”
नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को उद्धृत करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “अर्थशास्त्र का सिद्धांत मूल रूप से यह कहता है कि अगर विश्वास है तो आर्थिक विकास होगा ही। पर विश्वास के बावजूद विवाद होते हैं और ये विवाद संस्थागत मध्यस्थता से ही निपटाए जा सकते हैं।”
पंचाट का फैसला सुसंगत हो इसके लिए मध्यस्थों को प्रशिक्षित करना जरूरी है।
उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि मध्यस्थों को प्रशिक्षित किया जाए। मध्यस्थों का निष्पक्ष होना पक्षकारों का विश्वास अर्जित करने के लिए जरूरी है। देश में हो रहे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और दुनिया भर के कंपनियों का भारत में व्यवसाय करने की इच्छा को देखते हुए यह जरूरी है कि हमारा खुद का पंचाट हो।”
सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने “मध्यस्थता-भारत और वैश्विक रूपरेखा” पर एक सत्र को संबोधित किया। उन्होंने भी न्यायमूर्ति मिश्रा की इस बात से सहमति जताई कि मध्यस्थ, वकील और पक्षकारों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
मध्यस्थता को लेकर वकीलों और पक्षकारों की मानसिकता में बदलाव की जरूरत है और देश में मध्यस्थता प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए तकनीकी कौशल का प्रयोग होना चाहिए।
उन्होंने कहा, “मध्यस्था प्रणाली की स्थापना समस्या नहीं है लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह लम्बी अवधि तक कायम रहे। देश और विदेश की पंचाट प्रणाली को देखते हुए आत्ममंथन की जरूरत है।”
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, “अंततः, परिवर्तन लाने की जिम्मेदारी किसकी है : न्यायपालिका की, या सरकार और विधायिका की या फिर व्यवसायी समुदाय की? हो सकता है कि हम सब इस परिवर्तन के वाहक हैं। हमें वैश्विक संदर्भ में आत्मचिंतन करना चाहिए।” उन्होंने आशा व्यक्त की कि अगले कुछ सालों में आर्थिक विकास में सकारात्मक बदलाव आएगा।