मानवता पहले और उसके बाद धर्म : मेघालय हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

9 Dec 2017 2:26 PM IST

  • मानवता पहले और उसके बाद धर्म : मेघालय हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    यह वाकई बहुत ही दुखद है कि मरने के बाद भी मत, जाति और धर्म के नाम पर हम लड़ते रहते हैं।

    किसी भी व्यक्ति के लिए तब तक उसके किसी धर्म को मानने या उसके आध्यात्मिक होने का कोई मतलब नहीं है जबतक कि वह एक अच्छा इंसान नहीं बन जाता क्योंकि मानवता पहले आती है और उसके बाद ही धर्म।

    मेघालय में स्थानीय मत को मानने वाले लोगों को अब शीघ्र ही अपने मृतकों को दफनाने के लिए जगह दी जाएगी और ऐसा हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण संभव हो पाया है।

    स्थानीय सेंग खासी मत को मानने वाले लोगों ने उस समय हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जब इसाई समुदाय के कुछ लोगों ने उनकी उस जगह पर तोड़फोड़ की जहाँ पर वे लोग अपने मृतकों को दफनाते थे। इन लोगों ने कोर्ट से कहा कि आज तक वे अपने समुदाय के लिए एक श्मसान स्थल नहीं बनवा पाए हैं और कई बार तो उन्हें अपने मृतकों को जमीन के नीचे गाड़ना पड़ता है या फिर उन्हें मृत शरीर को लेकर उसे दफनाने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है।

    उन्होंने कोर्ट से कहा, “गाँव का प्रशासन और गाँव के लोग उन्हें अपने मृतकों को गाँव में दफनाने की इजाजत नहीं देते और फिर उन्हें अपने सगे संबंधियों की लाश उठाकर गाँव से काफी दूर ले जाना पड़ता है ताकि वे उनका अंतिम संस्कार कर सकें।”

    इन लोगों ने अदालत से कहा, “एक विशेष विधि से एक विशेष प्रक्रिया द्वारा निर्धारित पवित्र स्थल पर मृतकों के शरीर को दफनाना किसी भी धर्म का अभिन्न अंग है और यह अपना धर्म या मत मानने के अधिकार के तहत संरक्षित है।”

    हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एसआर सेन ने की और पूर्वी खासी हिल्स जिला, शिलांग के उपायुक्त ने सुनवाई के दौरान कोर्ट से कहा कि मामले को विभिन्न पक्षों की सहमति से सुलझा लिया गया है और अपने मृतकों के शरीर को दफनाने के लिए उन्हें एक उपयुक्त जगह आवंटित कर दिया गया है।

    पर इसके एक शर्त ने कोर्ट का ध्यान खींचा जिसमें कहा गया है कि इस स्थल का प्रयोग सिर्फ सेंग खासी मायलिएम समुदाय के मृत लोगों को ही दफनाने के लिए किया जा सकता है। कोर्ट ने इससे असहमति जताई। कोर्ट ने कहा, “स्थानीय मत को मानने वाले समुदाय का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी जगह का है, अगर उसे इस जगह के प्रयोग की जरूरत है, तो वह इसका प्रयोग कर सकता है।”

    कोर्ट ने उपायुक्त को निर्देश दिया कि आवंटित जगह को घेर दिया जाए और पांच महीने का अंदर इसे प्रयोग लायक बना दें। कोर्ट ने कहा, “पूर्वी खासी हिल्स जिला के पुलिस अधीक्षक को यह निर्देश दिया जाता है कि गाँव में कोई भी व्यक्ति याचिकाकर्ता को परेशान न करे और जब भी जरूरत पड़े, वे उनकी मदद करें। यह भी निर्देश दिया जाता है कि दोनों पक्ष इलाके में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखें।”

    कोर्ट ने संविधान का अपमान करने के लिए इसाई समुदाय के कुछ लोगों पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया।

    पहले आदमी बनिए

    जज ने इस बात पर अपनी नाराजगी जताई कि लोग किसी के मर जाने के बाद भी अपने मत, जाति और धर्म को लेकर लड़ते रहते हैं।

    न्यायमूर्ति सेन ने कहा, “मुझे इस बात से दुःख हुआ है कि आजादी मिलने के इतने वर्षों बाद भी, 21वीं सदी में, लोग उस देश के संविधान के बारे में कुछ नहीं जानते जहाँ वह रह रहे हैं और उसका उल्लंघन करते हैं...मैं समझता हूँ कि जब तक एक व्यक्ति अपने दायित्वों को नहीं जानता, वह मौलिक अधिकारों पर अपना हक़ जताने के काबिल नहीं है।”

    जज ने आगे कहा, “अपने इस संक्षिप्त फैसले और आदेश से मैं आज यह पूछना चाहता हूँ कि, “अगर वो पानी जो हम पीते हैं हमसे हमारे मत, हमारी जाति और हमारे धर्म के बारे में नहीं पूछता; जब हवा जो हम सांस लेते हैं, हमसे हमारे मत, हमारी जाति और हमारे धर्म के बारे में नहीं पूछता; और वह धरती जिस पर हम सब रहते हैं हमसे हमारे मत, हमारी जाति और हमारे धर्म के बारे में नहीं पूछता, यह ब्रह्मांड हमसे हमारे मत, जाति और धर्म के बारे में नहीं जानना चाहता तो हम दूसरों के मत, जाति और धर्म के बारे में जानने वाले कौन होते हैं? इसलिए मृतक को शांति से रहने दो।”

    जज ने अपने आदेश में आगे कहा, “...क्या इस देश के लोग यह कहना चाहते हैं कि मृत्यु के बाद कुछ लोग जन्नत में जाएंगे और कुछ जहन्नुम में; कोई भी इसके बारे में नहीं जानता। मेरा विनम्र मानना है कि कोई दो या तीन ईश्वर नहीं है, वह एक ही है। मैं एक और उदाहरण देना चाहता हूँ : अगर एक खासी, बंगाली या नेपाली या किसी अन्य के खून को मिला दिया जाए तो किसी भी तरह का विज्ञान यह नहीं बता सकता कि कौन सा खून किसका है और यह निर्विवाद तथ्य है कि सभी मानव का खून लाल होता है और यह इस पर निर्भर नहीं करता कि वह किस मत, जाति या धर्म को मानता है, फिर इतना अंतर क्यों?” मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि समाज जागे और इस देश के लोगों को शिक्षित करे और समाज से मेरी यह अपील भी है कि लोगों को उनके कर्तव्यों के बारे में बताया जाए विशेषकर अनुच्छेद 51A के खंड “h” से जो मानवता की बात करता है। में यह बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति धार्मिक और आध्यात्मिक नहीं हो सकता जब तक कि वह एक अच्छा मनुष्य नहीं बनता क्योंकि मानवता पहले आती है, धर्म बाद में।”


     
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