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सिर्फ खाली सीट भरने के लिए विशेष श्रेणी के लिए कट ऑफ अंक कम नहीं किए जा सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
9 Dec 2017 5:08 AM GMT
सिर्फ खाली सीट भरने के लिए विशेष श्रेणी के लिए कट ऑफ अंक कम नहीं किए जा सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
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क्या विशेष श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए निर्धारित सीटों का कोटा भरने के लिए कट ऑफ अंक कम किए जा सकते हैं क्योंकि पर्याप्त संख्या में छात्र लिखित परिक्षा पास नहीं हो पाए?

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस प्रश्न का उत्तर ना में दिया है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ का मानना ​​था कि महज विशेष श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों को भरने के लिए कट ऑफ अंक कम नहीं किए जा सकते। उन्होंने कहा कि एक बार जब छात्र चयन की एक ख़ास प्रक्रिया को स्वीकार कर लेते हैं तो वह चयनित नहीं होने पर उसको चुनौती नहीं दे सकते।

अदालत ने एक शख्स भुवनेश पचुरी की याचिका का निर्णय करते हुए कहा कि पचुरी "स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित" (जनरल) की श्रेणी के हैं और उत्तर प्रदेश जल निगम में जूनियर इंजीनियर के पद के लिए हुई लिखित परीक्षा पास करने में नाकाम रहने के बाद कट ऑफ को नीचे करने की मांग की थी।

3 अक्टूबर 2013 को, उत्तर प्रदेश जल निगम ने जूनियर इंजीनियरों (सिविल) के पद के लिए विज्ञापन दिया था। भुवनेश ने भी उसके लिए आवेदन किया और वर्ष 2014 में लिखित परीक्षा में भाग लिया।

साक्षात्कार में स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों की श्रेणी के केवल पांच उम्मीदवारों को बुलाया गया। छांट दिए जाने के बाद भुवनेश के वकील क्षितिज शैलेंद्र ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। उसने अदालत से कहा कि कानूनन "स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित" की श्रेणी के लिए 2% सीट आरक्षित होने चाहिए थे।

उसने कहा कि चूंकि कुल विज्ञापित सीटों की संख्या 469 थी, और 2% आरक्षण के हिसाब से कुल नौ पद इस श्रेणी में भर्ती के लिए होने चाहिए थे लेकिन केवल 5 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था और उन सभी का चयन हो गया।

उत्तर प्रदेश जल निगम और उसके मुख्य अभियंता ने अपने स्थायी वकील क्यूएच सिद्दीकी के माध्यम से अपने जवाब में कहा कि साक्षात्कार के लिए न्यूनतम अंक प्राप्त करने की सीमा 42 निर्धारित की गई थी लेकिन याचिकाकर्ता को केवल 34 अंक प्राप्त हुए,इसलिए उन्हें साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया और शेष 4 पद रिक्त रहे। यू.पी. लोक सेवाओं (शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए आरक्षण, स्वतंत्रता सेनानियों और पूर्व सैनिकों के आश्रितों) अधिनियम, 1997 की धारा 3 (5) के अनुसार, जब उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलते हैं तो खाली रह गए पदों को अगली भर्ती में ले जाया जाता है। भुवनेश का कहना था कि न्यूनतम 42 कट ऑफ सामान्य वर्ग के लिए था और आरक्षित वर्ग के लिए इसको कम किया जाना चाहिए था।

उन्होंने जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन बनाम भारत सरकार के मामले में 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया।

अदालत ने याचिका खारिज करते हुए जज ने कहा कि आरक्षण के अपने सामाजिक श्रेणी के लिए कट ऑफ अंक कम करने की याचिकाकर्ता के अनुरोध पर उनको कोई राहत नहीं दी जा सकती। हालांकि, याचिकाकर्ता अगली भर्ती के लिए होने वाली नियुक्ति प्रक्रिया में भाग ले सकता है।


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