CAT और NCDRC में घटती क्षमता : सुप्रीम कोर्ट ने AG से रिक्तियों को भरने के लिए निर्देश लाने को कहा

LiveLaw News Network

9 Dec 2017 4:53 AM GMT

  • CAT और NCDRC में घटती क्षमता : सुप्रीम कोर्ट ने AG से रिक्तियों को भरने के लिए निर्देश लाने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल को सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल और नेशनल कंज्यूमर डिस्पयूट रिड्रेसल कमीशन  में रिक्त पदों को भरने के लिए क्या योजना है, इसके लिए सोमवार को केंद्र सरकार से निर्देश लाने को कहा है।

    बेंच को विभिन्न ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशनों की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों पी एस पटवालिया और ए सुंदरम ने बताया कु NCDRC में 36 पद रिक्त हैं और इसकी क्षमता घटकर चार रह जाएगी।

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई वाली बेंच ने AG को कहा है कि वो ये निर्देश लाएं कि क्या ये नियुक्तियां पुराने नियम या नए नियमों के तहत प्राथमिकता के आधार पर होंगी और अगर CAT या NCDRC में जो सदस्य रिटायर होने वाले हैं उन्हें रिक्तियां पूरी होने तक तीन महीने के लिए काम करने की इजाजत दी जाएगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा फाइनेंस एक्ट, 2017 में किए गए बदलाव को चुनौती देने वाली सारी याचिकाओं को एक साथ जोड दिया है। याचिकाओं का कहना है कि ये बदलाव ट्रिब्यूनल की स्वतंत्रता में छेडछाड करने और चेयरमैन व सदस्यों की नियुक्ति में दखल देने के उद्देश्य से किया गया है।

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने इस याचिका को भी इसी तरह की अन्य याचिकाओं जिनमें कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, सेल्स टैक्स बार एसोसिएशन और रिवेन्यू बार एसोसिएशन की याचिकाएं शामिल हैं।

     फाइनेंस एक्ट के तहत वित्त मंत्रालय ने ट्रिब्यूनल, अपीलेट ट्रिब्यूनल एंड अदर अथॉरिटीज ( क्वालिफिकेशन, एक्सपीरियंस एंड अदर कंडीशन्स ऑफ सर्विस ऑफ मेंबर्स ) रूल्स, 2017, 1 अप्रैल 2017 से प्रभावी हुआ है जो NGT समेत 19 ट्रिब्यूनल के संविधान, योग्यताओं, नियुक्ति, पद से हटाने और सदस्यों के लिए दूसरे नियम व शर्तों पर असर डालेगा।

    जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि ये फैसला इन संस्थानों की स्वतंत्रता के मूल में फांस है और उनके फैसलों में दखल देने का प्रयास है।

    जनहित याचिका में सरकार के इस प्रयास को न्यायिक नियुक्ति अधिकार को हडपने का प्रयास बताया गया है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता में अतिक्रमण और न्याय के प्रशासन में प्रभाव डालने वाला है। कुछ इसी तरह जैसे हाल ही में संविधान के 99 वें संशोधन के तहत बनाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग, एक्ट , 2015 ( NJAC) को रद्द किया गया।

    सांसद जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि ये केंद्र सरकार को सीमारहित शक्तियां देता है और NGT समेत 19 ट्रिब्यूनल के कामकाज व स्वतंत्रता पर विपरीत प्रभाव डालता है।

    रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि एक्ट की धारा 184 केंद्र सरकार को सीमारहित और अनियंत्रित शक्तियां देता है जिससे वो 8वीं सूची में दिए गए ट्रिब्यूनल, अपीलेट ट्रिब्यूनल एंड व दूसरी अथॉरिटी के चेयरमैन व सदस्यों के लिए योग्यया, नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन एवं भत्ता, इस्तीफा, पद से हटाने व सेवा के  नियम व शर्तें बना सके।

    कांग्रेसी नेता ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रावधान को अत्याधिक प्रतिनिधिमंडल की बुराई से पीडित बताते हुए कहा है कि इन बदलावों ने NGT के चेयरमैन की योग्यता को भी बदल दिया है जबकि पहले सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ही NGT के चेयरमैन बन सकते थे, लेकिन 2017 एक्ट के तहत कोई भी गैर न्यायिक या विशेषज्ञ भी NGT का चेयरमैन बन सकता है और ये NGT की सरंचना और कामकाज में गंभीर अतिक्रमण है।

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