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हत्या की अपील में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने दिया विभाजित फैसला, पांच में से दो अभियुक्त बरी [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
8 Dec 2017 2:53 PM GMT
हत्या की अपील में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने दिया विभाजित फैसला, पांच में से दो अभियुक्त बरी [निर्णय पढ़ें]
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इस वर्ष फरवरी में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पांच आपराधिक अपील में विभाजित फैसला देने के बाद, मंगलवार को न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने तीन अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा जबकि दो को बरी कर दिया।

यह मामला 2009 में अंकित मिनोचा नामक व्यक्ति की चाणक्यपुरी में हत्या का है। खंडपीठ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रहा था। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 (हत्या), 307(हत्या के प्रयास) और धारा 34 के तहत अपराध का दोषी माना।

इसके बाद, इस वर्ष फरवरी में, न्यायमूर्ति आरके गौबा ने इन अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा जबकि गीता मित्तल ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था। इस खंडित फैसले के कारण मामले को लेकर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के समक्ष अपील की गई।

शुरू में न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि मतभिन्नता प्रारम्भिक रूप से अपराधी की पहचान को लेकर है, मतलब कि इंडिका कार में सवार व्यक्ति को लेकर जिसने मृतक पर गोली दागी थी और प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा अपराधियों की पहचान के बारे में।

आँखों देखी साक्ष्य और कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य की विस्तृत जांच और विश्लेषण के बाद कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष सुशील अरोरा और राजेश पांडेय एवं विष्णु, सोनवीर और हेमंत गर्ग के साथ वारदात के होने और उसके बाद संबंध स्थापित करने में विफल रहा है।

इसके बाद कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुशील अरोरा और राजेश पांडेय को संदेश का लाभ देते हुए बरी किया जाता है। कोर्ट ने कहा, “... दी गई दलील सुशील अरोरा और राजेश पांडेय के इंडिका कार में होने के बारे में संदेह पैदा करता है। सुशील अरोरा और राजेश पांडेय को दोषी बताने के बारे में पेश साक्ष्य और इस पर आधारित अभियोजन पक्ष की दलील उनकी संलिप्तता के बारे में अनिश्चितता और संदेह पैदा करता है...सुशिल अरोरा और राजेश पांडेय की प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा निश्चित पहचान नहीं हुई है। इस परिस्थिति में मन में यह संदेह पैदा हो रहा है कि सुशील अरोरा और राजेश पांडेय इंडिका कार में मौजूद थे या नहीं। इस संदेह के कई कारण हैं और ये सुशील अरोरा और राजेश पांडेय के पक्ष में नोट किए गए पॉइंट में दिख रहे हैं।”

हालांकि उसने हेमंत गर्ग, सोनवीर और विष्णु की अपीलों को खारिज कर दिया और कहा, “प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा हेमंतगर्ग, सोनवीर और विष्णु की पहचान करने को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता...उनकी पहचान में वजन है और इसको सही माना जा सकता है...

...इंडिका कार के चालाक के रूप में हेमंत गर्ग की पहचान इस तथ्य से पुष्ट हो जाती है कि उक्त कार का मालिक वह था और वह यह साबित करने में विफल रहा है कि जिस दिन घटना हुई उस दिन कार उसके कब्जे में नहीं था।”

उसने यह भी सपष्ट किया कि उन्हें धारा 302, 307 (34 के साथ) के तहत दोषी करार दिया गया है न कि आईपीसी की धारा 120बी के तहत।

न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायमूर्ति गौबा द्वारा सुनाई गई सजा से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा दोनों अपराधों, 302 और 307 के लिए लागू होगा। उन्होंने कहा कि विस्तृत आजीवन कारावास की सजा साथ-साथ चलेगी।


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