"निस्सहाय पीड़ितों” के मामले में जांच और सुनवाई को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने जारी किए निर्देश [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

7 Dec 2017 2:27 PM GMT

  • निस्सहाय पीड़ितों” के मामले में जांच और सुनवाई को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने जारी किए निर्देश [निर्णय पढ़ें]

    कलकत्ता हाई कोर्ट ने किसी अवयस्क बच्चे या अन्य “ निस्सहाय पीड़ितों ” की हत्या या बलात्कार मामले में जांच या सुनवाई को लेकर कई तरह के निर्देश जारी किए हैं।

    न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की पीठ ने इस बारे में अपने निर्देशों में कहा,

    “(a) अवयस्क बच्चों या फिर अन्य “ निस्सहाय पीड़ितों ” की हत्या या बलात्कार जैसे मामलों में प्रमुख गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत ही रिकॉर्ड किए जाएं;

    (b) दोषी ठहराए जाने के लिए आवश्यक डीएनए जांच (अगर जरूरी हुआ तो) सहित जब्त वस्तुओं की फॉरेंसिक जांच आवश्यक रूप से होनी चाहिए;

    (c) गवाहों को अपने पक्ष में करने से बचाने और सुनवाई के दौरान वे अपने पहले दिए गए बयानों से न मुकरें इसके लिए उनको गवाह सुरक्षा कार्यक्रम के तहत पर्याप्त सुरक्षा दी जाए;

    (d) जिला के पब्लिक प्रोसिक्यूटर को इस बात की नियमित समीक्षा करनी चाहिए कि संवेदनशील मामलों को देखने वाले पब्लिक प्रोसिक्यूटर सुनवाई किस तरह से कर रहे हैं और इसकी रिपोर्ट अभियोजन निदेशालय, लीगल रेमेम्ब्रेंसर और गृह विभाग के प्रधान सचिव के ध्यानार्थ और उनसे दिशानिर्देश प्राप्त करने के लिए भेजी जानी चाहिए;

    कोर्ट ने यह निर्देश रेक्सोना बीबी और उनके दो अवयस्क बेटों की याचिका पर सुनवाई के दौरान दी। इन तीनों पर चार साल की एक लड़की के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने का आरोप है। उसने अब अपनी याचिका में कहा है कि अभियोजन उनके खिलाफ निर्विवाद रूप से मामला निर्धारित करने में विफल रहा है।

    सुनवाई के दौरान कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि इसके बावजूद कि मुख्य गवाहों में से एक ने अभियोजन पक्ष के मामले को सही बताने से मना कर दिया है, उसे “प्रतिपक्षी” घोषित नहीं किया गया और उससे जिरह नहीं किया गया।  शेष गवाह याचिकाकर्ता को उस अपराध से नहीं जोड़ पाए।

    कोर्ट ने इस मामले की “लापरवाही और संवेदनहीन” तरीके से जांच के लिए अभियोजन पक्ष और जांच करने वाली एजेंसी की निंदा की। कोर्ट ने कहा कि वह आरोपी को बरी करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने कहा, “निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि संदेह चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता और इसलिए इस तरह के छिछले और कमजोर सबूत के कारण याचिकाकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं है।”


    Next Story