अयोध्या विवाद : शिया वक्फ बोर्ड और बाबरी एक्शन काउंसिल ने राजनीतिक असर के चलते जुलाई 2019 में सुनवाई मांगी, कोर्ट ने 8 फरवरी दी अगली तारीख

LiveLaw News Network

5 Dec 2017 1:16 PM GMT

  • अयोध्या विवाद : शिया वक्फ बोर्ड और बाबरी एक्शन काउंसिल ने राजनीतिक असर के चलते जुलाई 2019 में सुनवाई मांगी, कोर्ट ने 8 फरवरी दी अगली तारीख

    रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर हुई हाईवोल्टेज सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड और बाबरी मस्जिद एक्शन काउंसिल की उस मांग को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि इस केस पर सुनवाई जुलाई 2019 के बाद की जाए क्योंकि इस केस का देशभर में बडा राजनीतिक असर होगा।

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस मामले की अंतिम सुनवाई 8 फरवरी 2018 से शुरु होगी और सुनवाई टाली नहीं जाएगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि कोर्ट को इस मामले की जल्द सुनवाई की जरूरत नहीं है। जल्द सुनवाई की मांग ऐसे शख्स ने की जो केस में पक्षकार तक नहीं है। ऐसे में किसी के चुनावी मेनिफेस्टो के आधार पर सुनवाई नहीं की जा सकती। सिब्बल ने कहा कि अभी तक सारे दस्तावेजों का अनुवाद तक नहीं हुआ है और 19 हजार पन्नों को पढने के लिए वक्त चाहिए।

    करीब 90 मिनट तक चली जोरदार बहस के दौरान कपिल सिब्बल, काउंसिल की ओर से राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने कोर्ट कार्रवाई के बहिष्कार की बात भी कही। उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट सुनवाई करेगा तो वो कोर्ट छोडकर जा रहे हैं। लेकिन कोर्ट ने कहा कि वो बने रहें।

    वहीं धवन ने कहा कि इस केस की सुनवाई अक्तूबर 2018 ( चीफ जस्टिस के रिटायर होने तक) पूरी नहीं होगी। हालांकि उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी। उन्होंने कहा कि पांच या सात जजों की बेंच को इस पर सुनवाई करनी चाहिए।

    वहीं रामजन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से हरीश साल्वे ने कहा कि अदालत में पहले भी ऐसे फैसले आए हैं जिनका प्रभाव पडता है। इसका मतलब ये नहीं कि कोर्ट मामलों की सुनवाई ही ना करे। ये अपील 2010 की है तो ये नहीं कहा जा सकता कि जल्दबाजी की जा रही है। वहीं चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि बाहर क्या चल रहा है, कोर्ट को इससे मतलब नहीं है। कोर्ट की नजर में ये एक टाइटल विवाद है और उसी तरीके से कानूनी मुद्दों पर सुनवाई होगी।

    इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक  भूषण और जस्टिस एस  अब्दुल नजीर शामिल हैं।

    गौरतलब है कि  11 अगस्त को सभी पक्षकारों को अपने-अपने हिस्से के विभिन्न भाषाओं के दस्तावेजों को अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए 12 हफ्ते का वक्त देते हुए साफ कहा था कि भविष्य में सुनवाई नहीं टाली जाएगी। ये दस्तावेज हिन्दी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, पाली सहित सात भाषाओं में थे। साथ ही बेंच ने कहा था कि इस मामले को अनिश्चितकाल के लिए  नहीं टाला जा सकता और मामले की अंतिम सुनवाई होनी चाहिए।  अदालत ने सभी पक्षकारों को हिन्दी, पाली, उर्दू, अरबी, पारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं के अदालती दस्तावेजों को 12 हफ्ते में अंग्रेजी में अनुवाद करने का निर्देश दिया था जबकि उत्तर प्रदेश सरकार को विभिन्न भाषाओं के मौखिक साक्ष्यों को अंग्रेजी में अनुवाद करने का जिम्मा सौंपा गया था और कहा गया है कि अब अनुवाद का ये ये काम पूरा हो गया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान इस मामले को बेहद गंभीर बताते हुए कहा था कि पहले ये तय किया जाएगा कि विवादित भूमि पर किसका अधिकार है ?

    इससे पहले अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में एक और मोड आ गया था जब बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक की कानूनी लड़ाई हारने के करीब 71 साल बाद शिया वक्फ बोर्ड ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शिया वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर अपनी दावेदारी जताते हुए यह भी कहा है कि मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी।

    इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में वे 13 याचिकाएं भी शामिल हैं जिनमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने साल 2010 में विवादित स्थल के 2.77 एकड़ क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच बराबर-बराबर हिस्से में विभाजित करने का आदेश को चुनौती दी गई है।

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