सुप्रीम कोर्ट ने जिला जज के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिपण्णी को रिकॉर्ड से हटाया [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

27 Nov 2017 3:30 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने जिला जज के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिपण्णी को रिकॉर्ड से हटाया [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने वीएन सिंह बनाम नीलम मिश्रा एवं अन्य [सिविल अपील नंबर 19556 of 2017 मामले में दायर विशेष अनुमति याचिका (सिविल) No. 24725 OF 2013] की सुनवाई में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक सिटिंग जिला जज के खिलाफ जो टिपण्णी की थी उसे हटा दिया है।

    ये जिला जज अब रिटायर हो चुके हैं। एक अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई को लेकर उनके खिलाफ हुए इस टिपण्णी से वे आहत थे। इस मामले में सुनवाई की पहली तारीख पर यथास्थिति की अनुमति दे दी गई थी। इसके बाद उन्होंने इस मामले की कुछ दिन सुनवाई की थी और बहस आंशिक रूप से सुने गए थे और अंततः प्रतिवादी की इस आपत्ति को अपील में जायज ठहराया गया कि यह उसके आर्थिक क्षेत्राधिकार के बाहर है।

    मामला हाई कोर्ट में गया जहाँ उसने अपील में पाया कि जिला जज के पास जो अपील गई वह आर्थिक क्षेत्राधिकार के बाहर थी और उसे उसी समय खारिज कर देना चाहिए था। पर ऐसा नहीं करना और मामले को स्थगित करना स्वीकार्य नहीं है। हाई कोर्ट के कहने का मतलब यह था कि जिला जज का छुट्टी पर चले जाना एक जानबूझ कर उठाया कदम लगा ताकि आवेदन पर कोई निर्णय न हो। जिला जज को चेतावनी दी गई और भविष्य में सावधान रहने की नसीहत दी गई और इसकी कॉपी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भी भेज दी गई ताकि भविष्य के लिए निर्देश को उनकी निजी फाइल में नत्थी किया जा सके।

    चूंकि प्रतिवादी की ओर से कोई वकील पेश नहीं हुआ इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कैलाश वासुदेव को कोर्ट की मदद के लिए एमाइकस क्यूरी नियुक्त किया। न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एसके कौल ने 22 नवंबर 2017 को अपनी टिपण्णी में कहा, “विशेषकर उत्तर प्रदेश में न्यायिक अधिकारियों पर मुकदमों का जो भार है उससे हम वाकिफ हैं। अपील की सनुवाई करने वाले अधिकारी को आदर्शतः जितने मामलों की सुनवाई करनी चाहिए उससे कई गुणा अधिक मामलों से उनको निपटना पड़ता है। ऐसा लगता है कि शुरुआती आपत्तियों से अलग अलग निपटने की बजाय विद्वान जज ने मामले को उसकी पूर्णता में उसकी योग्यता के अनुसार सुनवाई करने का सोचा और इसीलिए इसकी सुनवाई के लिए तारीखों के बीच अंतर छोटा रखा। हमारा यह विश्वास है कि इस तरह की स्थिति में अधिकारी की नीयत पर शक नहीं किया जा सकता और अधिकारी पर उस टिपण्णी के माध्यम से कलंक नहीं लगना चाहिए जिसे अब रिकॉर्ड से निकाल दिया गया है। यह भी सूचित किया जा रहा है कि अपील की सुनवाई करनेवाला न्यायिक अधिकारी अब रिटायर हो चुका है। हम इसलिए आदेश में की गई टिप्पणी को हटा रहे हैं और इस निर्देश को भी जो उनके सेवा रिकॉर्ड के साथ नत्थी किए जाने के बारे में था।”


     
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