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कानून दिवस : न्यायिक दखल के मुद्दे पर चीफ जस्टिस और कानून मंत्री आमने सामने

LiveLaw News Network
27 Nov 2017 8:45 AM GMT
कानून दिवस : न्यायिक दखल के मुद्दे पर चीफ जस्टिस और कानून मंत्री आमने सामने
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भारतीय कानून आयोग द्वारा आयोजित कानून  दिवस के मौके पर रविवार को न्यायिक दखल और ‘बार बार कोर्ट द्वारा संवैधानिक दायरे को लांघने ‘ के मुद्दे पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के बीच जमकर कहासुनी हुई।

जब प्रसाद ने जनहित याचिका की आड में अनचाहे न्यायिक दखल की बात कही तो चीफ जस्टिस मिश्रा ने कहा कि न्यायपालिका संवैधानिकता और संप्रभूता के दायरे में रहते हुए  संवैधानिक उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है।

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में बोलते हुए कानून मंत्री प्रसाद ने कहा कि जनता के भले के लिए जो लोग जनहित याचिका दाखिल करते हैं, वो उनका सम्मान करते हैं लेकिन जनहित याचिकाओं को शासन के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। संविधान के निर्माताओं ने शासन को उन्हीं के अधिकारक्षेत्र में रखने की वकालत की थी जो जनता द्वारा चुने गए हैं और जवावदेह हैं।

प्रसाद ने कहा कि सिर्फ बेमतलब आरोप लगा देना ही बेंचमार्क नहीं होना चाहिए। पूरी दुनिया देश को देख रही है। भारत सुपरपावर बनने जा रहा है। हमें नए उभरते हुए भारत के लिए काम करना है।

यहां तक कि उन्होंने रिटायर्ड जज जस्टिस सीएस करनन का जिक्र भी किया। कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस करनन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के अवमानना के लिए जेल भेजने फैसले पर उन्होंने कहा कि कॉलेजियम ने उन्हें जज बनाने की सिफारिश करते वक्त कहा था कि वो कानून की सभी शाखाओं के लिए सही हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ही जज रहते हुए उन्हें अवमानना के मामले में जेल भेज दिया।

इसका तीखा जवाब देते हुए चीफ जस्टिस मिश्रा ने कहा कि कोर्ट अपनी सीमाओं के प्रति चौकन्ना है और जानता है कि उसे कहां दखल देना है और कहां नहीं। उन्होंने कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया कि कोर्ट ने कभी अपनी लक्ष्मण रेखा पार नहीं की।

चीफ जस्टिस ने कहा कि जब नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत होती है तो कोर्ट का परम कर्तव्य है कि वो उनकी रक्षा करे। कोर्ट की कभी ये मंशा नहीं रही कि वो पॉलिसी बनाने के क्षेत्र में घुसे।

उन्होंने संविधान मूल्यों को बनाए रखने के लिए तीनों खंबों द्वारा एक दूसरे का सम्मान करने की वकालत की।

वहीं अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राज्य के तीनों अंगों को संवैधानिक दायरे में रहते हुए एकजुट होकर काम कर नए भारत के लक्ष्य को हासिल करने की बात कही। उन्होंने संविधान में दिए गए न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के अधिकारों में बंटवारे पर जोर दिया और भारत की प्रगति में तीनों अंगों के सामूहिक प्रयासों की जरूरत बताई।

प्रधानमंत्री ने कहा कि नए भारत के निर्माण के लिए विधायिका को स्वतंत्रता से कानून बनाना चाहिए और कार्यपालिका को इसे लागू करने की इजाजत दी जानी चाहिए और इसी तरह न्यायपालिका को संविधान और छिपे कानून की व्याख्या करनी चाहिए। मोदी ने लोगों के जीवन को सुगम बनाने के लिए सभी खंबों को एक साथ काम करने और चुनौतियों का सामना करने के लिए शपथ लेने को कहा।

मोदी ने कहा कि अब मेरा क्या और मुझे क्या की सोच से बाहर निकलने की जरूरत है।निर्माण के 68 साल भी संविधान को देश के सभी लोगों को जोडने के काबिल जिंदा व संवेदनशील दस्तावेज बताते हुए मोदी ने कहा कि नए भारत की प्रगति के लिए सभी अंगों को अपनी जिम्मेदारियों को निभाना होगा।

लोगों के प्रति सरकार की प्रतिबद्घता को बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार राज्यों व केंद्र के चुनाव साथ साथ कराने पर विचार कर रहा है ताकि सरकार पर वित्तीय बोझ कम हो। ये मुद्दा बहस योग्य है।

इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कानून का राज्य स्थापित करने के लिए संविधान में दिए गए अधिकारों के बंटवारे पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि तीनों अंग बराबर हैं और उन्हें अपनी जिम्मेदारी व क्षेत्र को लेकर चौकन्ना रहना चाहिए। अदालतों में लंबित बडी संख्या में मामलों जैसी चुनौतियों को लेकर उन्होंने कहा कि संसाधनों को मजबूत करने और नई तकनीक इस्तेमाल करने से न्यायपालिका लंबे रास्ते पर जा सकती है। उन्होंने वादियों की समझ के लिए अदालतों में क्षेत्रीय भाषा के इस्तेमाल की जरूरत बताई। उन्होंने अदालतों में लंबित मामलों पर भी चिंता जताई।

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