पेंशन पाने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने का दावा करने वाले शख्स की याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज किया [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

22 Nov 2017 3:46 AM GMT

  • पेंशन पाने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने का दावा करने वाले शख्स की याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज किया [आर्डर पढ़े]

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें एक शख्स ने दावा किया था कि उसने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। याचिकाकर्ता ने 1942 आंदोलन में भाग लेने का दावा किया था ताकि महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वतंत्रता सेनानी पेंशन उसे मिल सके।

    हाई कोर्ट के जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार के उस आदेश में दखल की जरूरत नहीं है जिसके तहत याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज की गई है।

    याचिकाकर्ता परचाराम एलानी ने 2010 में अर्जी दाखिल की थी और सुनवाई के दौरान उनकी मौत हो गई। उसके बाद उनके कानूनी वारिसों ने केस को आगे बढ़ाया। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 1943 में जेल गए थे। उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला और फांसी की सजा दी गई। फिर उनकी फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी गई। लेकिन याचिकाकर्ता का दावा है कि वह जेल से भाग गए और लगातार अंडरग्राउंड रहे। ब्रिटिश सरकार उन्हें तलाश नहीं कर पाई औऱ देश की आजादी के बाद वह सामने आए। याचिकाकर्ता का कहना था कि वह बाद में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उल्लासनगर से चुनाव जीते।

    लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी अर्जी खारिज कर दी।

    उनके पेंशन के दावे के संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों की जरूरत थी लेकिन याचिकाकर्ता प्राथमिक दस्तावेज पेश नहीं कर पाया जबकि सेकंडरी एविडेंस पेश किए गए। हलफनामा में कहा गया कि वह जानेमाने स्वतंत्रता सेनानी थे और दो साल जेल में रहे।

    लेकिन कोर्ट ने उनके उस पत्र को रेफर किया जो उन्होंने पेश किया था। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को जब बताया गया कि याचिकाकर्ता कराची जेल में रहा और बाद में वहां से  भाग निकला लेकिन वह इसके समर्थन में कोई दस्तावेज पेश नहीं कर पाया। हालांकि राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से कहा था कि याचिकाकर्ता के पास तमाम दस्तावेज हैं लेकिन वह नहीं मिला।

    कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने कैसे उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया जबकि इसके बारे में कोई सर्टिफिकेट नहीं था। कोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों में यह बात साबित नहीं होता कि याचिकाकर्ता स्वतंत्रता सेनानी था। इस मामले में जो परिस्थितियां है उसमें महाराष्ट्र सरकार ने जो भी सपोर्ट दिया है वह दायरे से बाहर है और इसलिए अर्जी खारिज की जाती है।


     
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