सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार युक्रेनी नागरिक की अपील पर मद्रास हाई कोर्ट से जल्द निर्णय लेने को कहा [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network

14 Nov 2017 4:40 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार युक्रेनी नागरिक की अपील पर मद्रास हाई कोर्ट से जल्द निर्णय लेने को कहा [याचिका पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मद्रास हाई कोर्ट को युक्रेन के एक नागरिक दुद्निक वैलेंतिन की याचिका पर जितना जल्दी हो सके निर्णय लेने का निर्देश दिया। उसको आर्म्स एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया है।

    कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि वैलेंतिन को प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त होने का पता चला है। उसको किसी निजी अस्पताल में दाखिल कराने के बारे में शुक्रवार को निर्णय लिया जाएगा।

    वैलेंतिन को अन्य 22 विदेशियों के साथ गत वर्ष जनवरी में तूतीकोरिन की निचली अदालत ने दोषी ठहराया था। ये सभी 23 अभियुक्त एक अमरीकी जहाज पर थे जिसे रोक रखा गया था। इन लोगों को आर्म्स एक्ट के अधीन दोषी पाया गया और उन्हें भारी मात्रा में हथियारों के जखीरों के साथ गैरकानूनी रूप से भारतीय जल क्षेत्र में अक्टूबर 2013 में प्रवेश करने के जुर्म में पांच साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। इसके बाद वैलेंतिन ने मद्रास हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की।

    एडवोकेट रघेन्थ बसंत ने कहा कि हाई कोर्ट ने गत वर्ष नवंबर में इस मामले में फैसले को सुरक्षित रखा था और 11 महीने बीत जाने के बाद भी फैसला नहीं सुनाया। इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और इसमें अपने परिवार के सदस्यों के बीच मर्यादापूर्ण मौत के शामिल होने के बारे में विस्तृत व्याख्या की अपील की है। उसने यह भी प्रश्न किया है कि क्या उसके जीवन के अधिकार में उसे अपने जन्म वाले देश को प्रत्यर्पित किए जाने का भी अधिकार शामिल है या नहीं ताकि वह वहाँ अपने जीवन के अंतिम कुछ दिन बिता सके।

    इसके अलावा, वैलेंतिन ने कहा है कि चूंकि उस जहाज पर किसी दूसरे देश का झंडा लगा था, तो इस संदर्भ में इस मामले में उस देश का क़ानून लागू होना चाहिए था। उसने समुद्र से जुड़े क़ानून के बारे में संयुक्त राष्ट्र क़ानून के अनुच्छेद 27 के तहत भी अपने मामले पर विचार किए जाने का अनुरोध किया है और कहा कि आर्म्स एक्ट अब इस जहाज पर भी लागू होना चाहिए था। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि भूभागीय समुद्र से गुजर रहे विदेशी जहाज तटीय देश के आपराधिक अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं आएगा।

    उसने यह भी कहा है कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा है कि जहाज पर सवार लोग जिस तरह से व्यवहार कर रहे थे वह शांति, सुव्यवस्था और भारत की सुरक्षा के प्रति दुर्भावनापूर्ण था।

    याचिका में आदर्श कैदी मैन्युअल, 2003 का भी हवाला दिया गया है जिसे गृह मंत्रालय के ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने प्रकाशित किया है। इस मैन्युअल में कहा गया है कि गंभीर रूप से बीमार सजायाफ्ता कैदी को अपने घर में अंतिम सांस लेने के लिए छोड़े दिए जाने पर विचार किया जाना चाहिए।

    इसलिए इस याचिका में मांग की गई है कि इस पर सुनवाई जब तक लंबित रहती है तब तक के लिए वैलेंतिन को जमानत पर रिहा कर उसे युक्रेन भेज दिया जाना चाहिए। वैकल्पिक रूप से याचिका में यह मांग भी की गई है कि उसका इलाज उसके पसंद के निजी अस्पताल में कराया जाना चाहिए और उसकी पत्नी को उसकी सेवा की अनुमति दी जाए।


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