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कॉलेज है ये, जेल नहीं “ के साथ NLIU भोपाल के छात्र प्रशासन के खिलाफ सड़क पर उतरे

LiveLaw News Network
9 Nov 2017 11:47 AM GMT
कॉलेज है ये, जेल नहीं “ के साथ  NLIU भोपाल के छात्र प्रशासन के खिलाफ सड़क पर उतरे
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“बच्चे हैं हम, कैदी नहीं ,
कॉलेज है ये, जेल नहीं “

इसी नारे के साथ भोपाल की नेशनल लॉ इस्टीटयूट यूनिवर्सिटी के छात्र प्रशासन के खिलाफ विरोध में सड़कों पर उतर आए। उनका कहना है कि अथॉरिटी मेॉ पार्दशिता और जवाबेही की कमी है और प्रशासन के कार्यों पर कोई निगरानी नहीं है।

छात्रों द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज में  हाल ही का एक उदाहरण दिया गया है जिसमें प्रशासन और फैक्लटी ने मिलकर निजी तौर पर फैसला लेते हुए एक ऐसे छात्र को पास करने का निर्णय लिया जो दस से ज्यादा अंकों से फेल हो रहा था। आरोप लगाया गया है कि पेपर के डिकोड होने के बाद छात्र के अंक बढाए गए। इससे पहले छात्र प्रशासन के प्रति असंतोष जता रहे थे लेकिन इस मुद्दे के बाद वो खुलकर सामने आ गए।

छात्र अब कॉलेज परिसर में इकट्ठा हो रहे हैं, नारेबाजी कर रहे हैं, बैनर लेकर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं। वो इसके लिए अखबारों व सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं और इसके लिए

"#FreeNLIU" व "#PinjraTod"के जरिए सहयोग मांग रहे हैं। हालांकि वो इसके लिए प्रशासन पर नारेबाजी कर रहे हैं लेकिन इस मुद्दे को जनता की बहस का मुद्दा बनने से बच रहे हैं।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट चीफ जस्टिस को लिखा पत्र

NLIU के छात्र संगठन ने इस संबंध में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता को पत्र लिखा है जो कॉलेज की जनरल काउंसिल के चेयरमैन भी हैं। पत्र में ये शिकायतें दी गई हैं :

परिणाम जारी करने में देरी

छात्र संगठन ने सभी बैच के परीक्षा परिणाम घोषित करने में देरी की शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि पिछले ट्रिमिस्टर के परीक्षा परिणाम को सुधार परीक्षा के दस दिन पहले घोषित किया गया।

प्रोफेसरों की जवाबदेही

पत्र के मुताबिक परीक्षा शुरु होने से पहले प्रोफेसर अपने विषय का पाठ्यक्रम पूरा करने में अक्सर नाकाम हो जाते हैं। साथ ही आरोप लगाया गया है कि शिक्षक पाठ्यक्रम के हिसाब से पढाई नहीं कराते जिससे परीक्षा और पुन : परीक्षा में पाठ्यक्रम के बाहर के सवाल भी आ जाते हैं।

उन्होंने आगे ये भी आरोप लगाया कि दूसरी यूनिवर्सिटी की तरह शिक्षक पेपर से पहले ना तो मॉडल उत्तर तैयार करते हैं और ना ही कोई सही अंक योजना तैयार करते हैं।

मनमाने अंक देने के कुछ उदाहरण देते हुए पत्र में कहा गया है कि पेपर पैटर्न के बार बार बदलने के अनुसार ही अंक देने के तरीकों में भी बदलाव पर विचार किया जाना चाहिए। शिक्षकों पर पक्षपात करने और कुछ छात्रों के अंक बढाने का भी आरोप लगाया गया है।

पुन : मूल्यांकन प्रक्रिया

छात्रों ने इस परंपरा पर भी निराशा जाहिर की है जिसके तहत उसी शिक्षक को उत्तरपत्रिका का पुन : मूल्यांकन का काम दिया जाता है जिसने पहले कॉपी चेक की है। उनका कहना है कि ये पुन : मूल्यांकन के उद्देश्य को पूरी तरह नजरअंदाज करता है और स्वतंत्र पुन : मूल्यांकन से छात्रों को वंचित करता है।

लाइब्रेरी का वक्त

पत्र में आरोप लगाया गया है कि लाइब्रेरी को रात नौ बजे तक ही खुली रखने से छात्रों के विभिन्न गतिविधियों में तैयारी करने के लिए अनिवार्य संसाधनों तक पहुंच में बाधा पहुंचती है।

उपस्थिति की शिकायत

छात्र संगठन ने ये मुद्दा भी उठाया है कि छात्रों को चोट लगने पर या फ्रैक्चर होने पर भी मेडिकल आधार पर छुट्टी नहीं दी जाती।

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