बलात्कारी सौतेले पिता की आजीवन कारावास की सजा बरकरार, बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपील ठुकराई [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

9 Nov 2017 11:29 AM GMT

  • बलात्कारी सौतेले पिता की आजीवन कारावास की सजा बरकरार, बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपील ठुकराई [निर्णय पढ़ें]

    बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर पीठ ने वर्धा के 55 वर्षीय उस व्यक्ति की अपील खारिज कर दी जिसको अपनी सौतेली बेटी के साथ बलात्कार करने के आरोप में निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा दी थी।

    न्यायमूर्ति आरके देशपांडे और एमजी गिरत्कर की पीठ ने निचली अदालत के फैसले से सहमती जताई जिसने प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ओफेंसेज एक्ट, 2012 की धारा 6 और भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के तहत उसे दोषी ठहराया है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    पीड़िता उस समय दो साल की भी नहीं थी जब उसकी माँ की मृत्यु हो गई। उसके बाद से वह अपने पिता के साथ एक किराए के मकान में रह रही थी। 2013 में वह 15 साल की थी जब पहली बार उसे माहवारी हुई। लड़की ने इसके बारे में अपने पिता को बताया लेकिन उसके पिता ने उसे डांटते हुए कहा कि वह जरूर किसी आदमी के साथ हमबिस्तर हुई होगी जिस वजह से खून के ये दाग हैं।

    दो-तीन दिन के बाद उसका पिता उसके साथ सोने लगा और 2014 तक वह उसका सक्रिय रूप से यौन शोषण करता रहा। इसके बाद जब एक दिन अभियुक्त अस्वस्थ था, लड़की ने इस बारे में अपने पड़ोसी को बताया। इसके बाद उसकी पड़ोसी उसे डॉक्टर के पास ले गई और उसने इस बात की पुष्टि की कि लड़की प्रेग्नेंट है। फिर लड़की ने डॉक्टर और अपने पड़ोसी को सारी बातें बताई।

    इसके बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (f)(i)(k)(n), 323, 504 और 506 और प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम द सेक्सुअल ओफेंसेज एक्ट, 2012 (पीओसीएसओ) की धारा 3 और 4 के तहत उसके पिता के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। इस बीच, पीड़िता ने 1 जून 2014 को एक बच्चे को जन्म दिया।

    वर्धा सत्र न्यायालय ने 27 जून 2016 को अपने फैसले में अपीलकर्ता को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

    अभियुक्त ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। अपील में अभियुक्त के वकील ने दलील दी कि एफआईआर दर्ज कराने में देरी की गई। कोर्ट ने उसकी इस दलील को खारिज करते हुए कहा, “पीड़िता एक निस्सहाय बच्ची थी जो कि अपीलकर्ता के साथ रह रही थी। अपीलकर्ता ने उसे धमकी दी थी। ऐसी परिस्थिति में इस तरह के अवयस्क बच्चे से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह पुलिस थाने जाकर रपट लिखवाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि क्यों इस मामले में पीड़िता के साथ नरमी दिखाने की जरूरत है।


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