हाई कोर्ट परिसर में धार्मिक कार्यों की मनाही, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वक्फ से ‘मस्जिद हाई कोर्ट’ खाली करने को कहा [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
9 Nov 2017 9:59 AM IST
हाई कोर्ट जगह के अभाव की भारी समस्या झेल रहा है
कोई व्यक्ति गैर-कानूनी तरीके से सार्वजनिक जमीन या किसी के निजी जमीन पर किसी धर्म के नाम पर कोई संरचना खड़ी करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता
हाई कोर्ट से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह संविधान के तहत धर्म के नाम पर किसी धर्म विशेष को अपना संरक्षण देगा
यह पता लगने पर कि वक्फ ने हाई कोर्ट की परिसंपत्ति पर अतिक्रमण कर एक धार्मिक संरचना खड़ी कर दी है, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार को निर्देश देकर यह सुनिश्चित करने को कहा है कि न तो इलाहाबाद और न ही लखनऊ कोर्ट परिसर के किसी हिस्से का प्रयोग किसी व्यक्ति या समूह द्वारा किसी धार्मिक गतिविधि के संचालन या वहाँ प्रार्थना आदि आयोजित करने के लिए हो।
मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी भोसले और न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता की पीठ ने वक्फ प्रबंधन से कहा कि वे स्वैच्छिक रूप से आदेश का पालन करें। इसमें अधिकाँश लोग हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील हैं। इन्हें कहा गया कि वे अपने समुदाय के लोगों को इस बात के लिए आश्वस्त करें कि वे इस निर्देश को अनुग्रहपूर्वक मान लें और किसी भी तरह का गलत या हठी रवैया न अपनाएं। पीठ ने राज्य/जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि अगर वक्फ इस तरह का कोई आवेदन देता है तो वे इस आवेदन पर सदय होकर विचार करें और और उन्हें वैकल्पिक जगह मुहैया कराएं।
बेंच ने 175 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा, “किसी नागरिक को अपने पसंद के धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की छूट है पर वह धर्म के नाम पर गैर-कानूनी तरीके से सार्वजनिक या किसी की निजी जमीन पर कोई संरचना खड़ी करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता”।
कोर्ट ने एडवोकेट अभिषेक शुक्ला की याचिका पर विचार करते हुए ये बातें कही। इस याचिका में कहा गया था कि वक्फ ने हाई कोर्ट की जमीन पर कब्जा कर लिया है और स्थानीय प्राधिकरण से अनुमति लिए बिना उस पर “ मस्जिद हाई कोर्ट ” नामक धार्मिक ढांचा खड़ा कर दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “न्यायपालिका/हाई कोर्ट की परिसंपत्ति पर अतिक्रमण कर मस्जिद बनाने का गलत संदेश जाएगा और आम लोगों को यह भी लग सकता है हाई कोर्ट ने मस्जिद बनवाई है और उसने यह सुविधा एक धार्मिक समूह या एक विशेष धर्म को मानने वाले लोगों को उपलब्ध कराई है। इसका यह अर्थ भी लगाया जाएगा कि हाई कोर्ट अतिक्रमण से अपनी ही परिसंपत्ति की सुरक्षा करने में विफल रहा है। संविधान के तहत हाई कोर्ट से यह उम्मीद नहीं की जाए कि वह किसी धर्म विशेष को अपना संरक्षण देगा। हाई कोर्ट न तो किसी धर्म के खिलाफ है और न ही किसी का समर्थन करता है और उससे यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह इन सबसे दूर रहेगा और धर्म के बारे में अपनी तटस्थता बनाए रखेगा और उस स्थिति में सभी धर्मों को समान संरक्षण देगा जब वह किसी मामले पर न्यायिक या फिर प्रशासनिक दृष्टि से गौर करेगा। हाई कोर्ट के लिए किसी व्यक्ति का धर्म, श्रद्धा या विश्वास कोई मायने नहीं रखता उसके लिए सब बराबर हैं और सब इस बात के लायक हैं कि उनके साथ सामान रूप से व्यवहार किया जाए।