दिल्ली के उप राज्यपाल को मिले अधिकार असीमित नहीं हैं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

8 Nov 2017 2:42 PM GMT

  • दिल्ली के उप राज्यपाल को मिले अधिकार असीमित नहीं हैं : सुप्रीम कोर्ट

    केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तकरार की संवैधानिक पीठ में सुनवाई के तीसरे दिन की शुरुआत वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम के इस विचार से हुई कि संविधान के अनुच्छेद 239AA की उप-धारा 4 के प्रावधान जिसमें दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, मुख्य प्रावधान का स्थान नहीं ले सकता।

    उनसे लगभग इत्तफाक रखते हुए पीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने कहा कि सरकार के दैनिक कार्य में उप राज्यपाल द्वारा अवरोध नहीं खड़ा किया जा सकता और उनको जो दायित्व दिए गए हैं असीमित नहीं हैं। उन्होंने कहा, “इसका कोई संवैधानिक हल होना चाहिए।” इस पीठ में शामिल अन्य जज हैं एएम खान्विलकर, एके सीकरी और अशोक भूषण।

    मुख्य न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि अगर उप राज्यपाल और मंत्री परिषद के विचारों में मतभेद है तो इसका कोई उचित कारण होना चाहिए।

    मुख्य न्यायाधीश ने वकील सुब्रमण्यम की इस दलील से सहमति जताई कि अनुच्छेद 239AA (4) के प्रावधान मुख्य प्रावधानों का स्थान नहीं ले सकते। ये प्रावधान उप राज्यपाल को तत्काल कारर्वाई की अनुमति देता है या फिर राष्ट्रपति के विचाराधीन किसी भी मामले में, जिसको वह उचित समझते हैं और जिसमें वह मत्रिमंडल से असहमत हैं, निर्देश जारी करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 239AA (4) के तहत उप राज्यपाल के लिए यह जरूरी है कि वह मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह और मदद से अपने कार्य को अंजाम देंगें। सिर्फ जहां पर उनसे स्वेच्छा से कारर्वाई करने की मांग की जाती है उसको छोड़कर।

    सुब्रमण्यम ने जोर डालते हुए कहा कि वेस्टमिन्स्टर मॉडल में, जिसको भारत अपनाता है, विधायिका के प्रति उत्तरदायित्व सर्वोपरि है। उन्होंने कहा, “हम यह अधिकार उप राज्यपाल के हाथों में नहीं सौंप सकते हैं”।

    उन्होंने पूछा, “अगर अनुच्छेद 239AA का उद्देश्य सरकार और विधायिका का लोकतंत्रीय फ्रेमवर्क तैयार करना है तो क्या संविधान सामूहिक उत्तरदायित्व को कमतर बना सकता है”?

    सुब्रमण्यम ने कहा कि अगर उप राज्यपाल के लिए मंत्रिमंडल की मदद और सलाह मानना बाध्यकारी नहीं है तो यह निर्णय निरर्थक होगा। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “सामान्यतया” विचारों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए।

    सुब्रमण्यम ने इसके बाद मंत्रिमंडल की मदद और मशवरा की प्रकृति की चर्चा की।

    मंगलवार को सुब्रमण्यम ने अपनी दलील में कहा था कि अगर मंत्रिमंडल की मदद और सलाह को “आदर” भर देने की बात है और यह उप राज्यपाल के लिए बाध्यकारी नहीं है तो यह विरोधाभासी होगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रावधान उप राज्यपाल को दिए गए मंत्रिमंडल की मदद और सलाह का स्थान नहीं ले सकता। उन्होंने ऐसे लोगों की आलोचना की जो प्रावधानों को  “छाते” की तरह मानते हैं। उन्होंने पूछा कि अगर उप राज्यपाल को नकारने का अधिकार मिल गया तो फिर इस व्यक्ति (मुख्यमंत्री) के होने का मतलब क्या है।

    इस मामले में दलील अभी जारी है।

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