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दिल्ली हाई कोर्ट की मदद से पाँव से चित्रकारी करने वाले दिव्यांग ऋतिक को मिला कृत्रिम अंग [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
8 Nov 2017 5:22 AM GMT
दिल्ली हाई कोर्ट की मदद से पाँव से चित्रकारी करने वाले दिव्यांग ऋतिक को मिला कृत्रिम अंग [आर्डर पढ़े]
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“मैं अब वह सब कुछ कर सकता हूँ जो दूसरे कर रहे हैं। मैं अब अपने हाथ से चित्र एवं रेखाचित्र बना सकता हूँ और पेंटिंग कर सकता हूँ।” यह कहना है ऋतिक का जो केहुनी के जोड़ों की विकलांगता से जन्म से ही ग्रस्त है।

अभी कुछ दिन पहले 1 नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने यह सुनिश्चित किया कि ऋतिक को कृत्रिम हाथ मिले और दिल्ली सरकार ने दो महीने के भीतर इसे संभव कर दिखाया।

15 साल का ऋतिक सदर बाजार के हीरा लाल जैन सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ता है। वह तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ा है। चित्रकारी में उसकी दिलचस्पी है और वह अपने दांये पैर से कागज़ पर चित्र बनाता है। उसकी माँ उषा दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश से खुश है और वह सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अशोक अग्रवाल को इसके लिए धन्यवाद देती हैं। उनकी ही याचिका पर कोर्ट ने सरकार को दो महीने के भीतर ऋतिक को कृत्रिम अंग उपलब्ध कराने को कहा।

सोशल जूरिस्ट नामक एनजीओ ने यह याचिका दायर की थी और कृत्रिम अंग की उपलब्धता को सुगम बनाने का आग्रह किया था।

कोर्ट की खिंचाई के बाद दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील संजय घोष ने कोर्ट को लोक नायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. जेसी पास्से की एक चिट्ठी कोर्ट को सौंपी जोकि दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव के नाम लिखा गया था। पत्र में कहा गया था कि ऋतिक को कृत्रिम अंग दो महीने के भीतर लगा दिया जाएगा और इस पर पांच लाख रुपए का खर्च आएगा। दिल्ली सरकार ने बाताया कि इस राशि का इंतजाम दिल्ली आरोग्य कोष के माध्यम से होगा। डॉ. पास्से ने इस काम को जल्दी कराने को कहा था।

बेंच ने यह स्पष्ट कर दिया था कि इस कार्य को जल्दी निपटाने के लिए ऋतिक सभी तरह के जरूरी चिकित्सा जांच के लिए उपलब्ध होगा।

अशोक अग्रवाल से भेंट

ऋतिक की माँ उषा ने बताया कि कैसे वह वर्षों से चाह रही थी कि उसके बेटे को चिकित्सा की सुविधा मिले। उन्होंने कहा, “दो साल के ऋतिक को लेकर मैं एआईआईएमएस (एम्स) गई। वहाँ डॉक्टरों ने मुझे यह कहते हुए वापस लौटा दिया कि वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं।”

उषा और उसके पति मिठाई की एक छोटी दुकान चलाते हैं और पिछले वर्ष अपने मकान मालिक के साथ हुए विवाद के सिलसिले में उनको तीस हजारी कोर्ट जाना पड़ा था। उसी दौरान उन्होंने एक एडवोकेट के ऑफिस के सामने काफी बीमार और दिव्यांगों की भीड़ देखी। पूछने पर उनके वकील के मुंशी ने उन्हें बताया कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जरूरतमंदों की अग्रवाल मदद करते हैं।

उषा ने बताया, “फिर हम भी एक दिन सुबह उनके घर के बाहर भीड़ में शामिल हो गए और सारे कागजात जमा करने में हमें एक साल लग गया और तब जाकर हम सफल हो पाए।”

अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने पहले इन्हें विमहंस भेजा जिसने उनको बताया कि इस पर पांच लाख रुपए खर्च होंगे। इसके बाद हम लोगों ने एलएनजेपी अस्पताल का दरवाजा खटखटाया जिसने हमें इसी कार्य के लिए 13 लाख रुपए खर्च होने की बात कही। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को पत्र लिखा। लेकिन अंततः उन्हें कोर्ट का ही दरवाजा खटखटाना पड़ा।

अग्रवाल ने कहा कि कोर्ट द्वारा खिंचाई किए जाने और उसके सख्त रवैये को देखते हुए सरकार इसके लिए राजी हो गई। अग्रवाल ने यह भी कहा कि दिव्यांग लोगों के अधिकारों से संबंधित 2016 के अधिनियम में यह प्रावधान है जिसके तहत सरकार को दिव्यांग छात्रों को 18 साल की उम्र तक मददगार उपकरण मुफ्त मुहैया कराना है।


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