मौत की सजा के अभियुक्त और अपराध के शिकार हुए लोगों को किस तरह प्रभावित करता है इसकी जांच कर रहा है मद्रास हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

4 Nov 2017 4:56 AM GMT

  • मौत की सजा के अभियुक्त और अपराध के शिकार हुए लोगों को किस तरह प्रभावित करता है इसकी जांच कर रहा है मद्रास हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    कोर्ट को यह अवश्य ही सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियुक्त के ये बच्चे जब बड़े होंगे और और समाज से बावस्ता होंगे तो उनके मन में किसी भी तरह का क्रोध नहीं होगा और किसी भी तरह से उसको नष्ट करने का कोई कारण उनके पास नहीं होगा...

    ये सब (अभियुक्त के बच्चे) एक ही बात याद रखेंगे कि सरकार या न्यायपालिका, सरकार के साथ मिलकर उनके पिता की मृत्यु का जिम्मेदार है। समाज के बाहर ये तीन बच्चे समाज के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित होंगे

    हम यह उम्मीद करें कि वह (दोषी का बच्चा) यह समझेगी कि जिंदगी मूल्यवान है और यह भी कि मृत्यु सभी मसलों का हल नहीं है।

    तिहरे हत्याकांड के दोषियों में से दो की मौत की सजा को बदलते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने अब इस बात की जांच करने का निर्णय किया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के परिवार और उसके बच्चों पर इसका क्या असर पड़ेगा अगर दोषी को मौत की सजा सुनिश्चित कर दी जाए।

    कामराज और इलंगोवन को सुनवाई अदालत ने तीन महिलाओं की हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति पीएन प्रकाश और न्यायमूर्ति सीवी कार्तिकेयन की पीठ ने अभियुक्तों को दोषी माना पर यह भी कहा कि कोर्ट को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि दोषियों के ये तीन बच्चे जब बड़े होंगे और समाज का हिस्सा बनेंगे तो इनके मन में समाज के प्रति कोई गुस्सा न हो और न ही कोई कारण कि वे समाज से बदला लेने और उसको नष्ट करने की ठान लें।

    पीठ ने कहा, “अगर कामराज और इलंगोवन को मौत की सजा दी जाती है तो उनके तीनों बच्चों के भविष्य आवश्यक रूप से अनिश्चित हो जाएंगे। वे अपने सीने में इस विचार के साथ अपनी जिंदगी जीएंगे कि “न्यायपालिका” नामक एक संस्था ने उनके पिता को फांसी पर लटकाना ठीक समझा। दो युवा मष्तिष्क, डकैती जैसे शब्द, हत्या और मौत की सजा ये सब अर्थहीन हैं। एक ही बात जो उन्हें समझ में आएगी वो यह कि सरकार या न्यायपालिका, सरकार के माध्यम से उनके पिता की मौत के लिए जिम्मेदार है। समाज के बाहर ये बच्चे समाज के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित होंगे...”,

    कोर्ट ने आगे कहा, “जब वे (दोषी) यह समझेंगे कि कोर्ट ने उनके बच्चों के भविष्य के बारे में सोचा है और उनको मौत की सजा नहीं देकर उसे आजीवन कारावास में बदल दिया है तो कामराज और इलंगोवन के मन पर इसका बड़ा असर होगा। वे भले ही दोषी हों, पर वे इसके बावजूद देश के नागरिक हैं।”

    जहाँ तक कि छह साल की लडकी अभिनंदिनी की बात है जिसकी माँ, दादी और परदादी की हत्या हुई है, कोर्ट ने खुद से सवाल किया : “अल्पायु की यह लडकी जब बड़ी होगी तो जीवन के बारे में इसका दृष्टिकोण क्या होगा यह एक दूसरा सवाल है जिसके बारे में इस कोर्ट को सोचना और विचार करना है। उसके अंदर का यह गुस्सा क्या एक ऐसी व्यवस्था पर नहीं फूटेगा जो इस अपराध के दोषी माने गए व्यक्ति को मौत की सजा नहीं दिया?”

    इसके बाद पीठ ने कहा, “वह एक ऐसे परिवार से आती है जिसमें उसके परिवार के सदस्य डॉक्टर हैं, और उनके प्रभाव में वह यह समझ सकती है जिंदगी को बचाना एक ऐसा आदर्श है जिसको उसकी माँ जो खुद एक डॉक्टर थी, मानती थी और जब उसकी माँ अभिनंदिनी के बारे में अपनी राय बनाएगी तो उससे यह अपेक्षा करेगी कि वह भी जीवन के मूल्यों को सबसे ऊपर रखेगी न कि मौत की सजा से प्रतिशोध की अपेक्षा करेगी”।

    कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों की मौत सजा को बदल दिया और कहा कि उन्हें 30 सालों तक जेल में रखा जाए और राज्य सरकार की ओर से उन्हें किसी भी तरह की माफी न मिले। कोर्ट ने सजा के निर्धारण में मृतक के बच्चे की आयु को ध्यान में रखा। कोर्ट ने कहा, “सजा कम से कम 30 वर्षों की होगी और जबतक कि अभिनंदिनी 36 वर्ष की नहीं हो जाती। उस समय तक, ऐसी उम्मीद की जाए कि ईश्वर की कृपा और बड़ों के आशीर्वाद से उसे जीवन में स्थिरता मिल चुकी होगी और माँ, दादी और परदादी को खोने का गुस्सा काफी हद तक कम हो चुका होगा। हो सकता है कि उस समय तक उसका अपना परिवार होगा, अगर कामराज और इलंगोवन छूट जाते हैं तो वह जीवन में निश्चिंत हो चुकी होगी, उसका अपना भविष्य होगा और अपना खुद का परिवार।”


     
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