मोबाइल कंपनियां और बैंक मैसेज में आधार को लेकर डेडलाइन भी बताएं : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
3 Nov 2017 5:13 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि बैंक और मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर की तरफ से जो लोगो को आधार से लिंक करने के लिए जो मैसेज जाते हैं, उनमें डेडलाइन भी बताई जाए।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान इन मैसेजों से फैलने वाली हडबडी पर सहमति जताते हुए इस पर जस्टिस ए के सिकरी ने कहा, ‘यहां प्रेस है इसलिए मैं बोलना नहीं चाहता था, लेकिन ऐसे मैसेज मुझे भी आते हैं।’
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल फोन और बैंक खातों से आधार को लिंक करने के खिलाफ कल्याणी मेनन, मैथ्यू थॉमस व अन्य की याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर मामले को मुख्य मामले के साथ जोड दिया है। इन मामलों की सुनवाई अब नवंबर के अंतिम सप्ताह में संवैधानिक पीठ के सामने होगी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल नोटिफिकेशन पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि मामले की अंतिम सुनवाई नवंबर में तय है और बैंकों के लिए डेडलाइन 31 दिसंबर है इसलिए अभी कोई अंतरिम आदेश की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा है कि अगर डेडलाइन 31 दिसंबर तक मामले की सुनवाई पूरी ना हो तो इस पर रोक के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल की जा सकती है।
वहीं सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि मोबाइल नंबर के लिए 6 फ़रवरी 2018 और पुराने बैंक एकाउंट को लिंक करने के लिए डेडलाइन 31 दिसम्बर है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो पुराने बैंक एकाउंट को आधार से अनिवार्य रूप से लिंक करने की तारीख 31 दिसंबर से 31 मार्च कर सकती है लेकिन ये तय नहीं है।
वहीं याचिकाकर्ता की ओर से श्याम दीवान और अरविंद दातार ने कोर्ट को बताया कि बैंकों से मैसेज भेजे जा रहे हैं कि आधार से लिंक कराया जाए। जिनके 30-40 साल पुराने अकाउंट हैं, उनके खिलाफ PMLA एक्ट में कैसे कार्रवाई जा सकती है ? वहीं अन्य याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मोबाइल कंपनियां भी ऐसे ही मैसेज भेज रही हैं। कॉल के वक्त ये कहा भी जाता है।
दरअसल बैंक खातों और मोबाइल नंबर से आधार नंबर को जोडने के अनिवार्य नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि ये नियम संविधान में अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दिए मौलिक अधिकारों को खतरे में डालते हैं। याचिका प्रसिद्ध शोधकर्ता और एक्टिविस्ट कल्याणी मेनन द्वारा दाखिल की गई है।
एडवोकेट ऑन रिकार्ड विपिन नैयर के माध्यम से दाखिल याचिका में प्रिवेंशन ऑफ मनी लांडरिंग एक्ट ( PMLA एक्ट ) 2005 के प्रिवेंशन ऑफ मनी लांडरिंग ( मेनटेनेंस ऑफ रिकार्डस) सेकेंड एमेंडमेंट रूल्स, 2017 के नियम 2 (b) को चुनौती दी गई है जिसमें प्रिवेंशन ऑफ मनी लांडरिंग ( मेनटेनेंस ऑफ रिकार्डस) रूल्स के नियम 9 में संशोधन की मांग की गई है।
इस नियम के प्रावधान के मुताबिक किसी भी ग्राहक, कंपनी, साझेदारी फर्म और ट्रस्ट को बैंक खाता खोलने, जारी बैंक खाते को जारी रखने, 50 हजार और इससे अधिक की राशि का लेनदेन करने, विदेशों से आए फंड को छोटे खातों में डालने और पहले से खातेदार ग्राहकों को 31 दिसबंर 2017 तक आधार नंबर से जोडने के का नियम बनाया गया है। इसके बाद बिना आधार नंबर और पैन नंबर वाले खातों का कामकाज बंद कर दिया जाएगा।
याचिका में दूरसंचार विभाग के 23 मार्च 2017 के उस सर्कुलर को भी चुनौती दी गई है जिसमें सभी मोबाइल धारकों को अपने नंबर को आधार नंबर से जोडने को अनिवार्य बनाया गया है।
याचिका में प्रार्थना
- दूरसंचार विभाग के 23 मार्च 2017 के उस सर्कुलर असंवैधानिक, शून्य और अमान्य घोषित किया जाए जो संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है।
- कोर्ट ये आदेश जारी करे कि उक्त सर्कुलर के नियम पहले से चल रहे मोबाइल नंबर और नए ग्राहकों पर लागू नहीं होंगे और ना ही विभाग आधार नंबर देने के लिए विवश करेगा।
- कोर्ट प्रतिवादियों को आदेश जारी करे कि वो तुरंत उक्त प्रावधान और सर्कुलर को लागू ना करे और इस पर कार्रवाई ना करे।
- कोर्ट प्रतिवादियों को निर्देश जारी करे कि वो तुरंत घोषणाएं, सर्कुलर या निर्देश जारी करे कि किसी भी नागरिक को आधार नंबर/ आधार कार्ड देने की जरूरत नहीं है और आधार एक्ट के तहत ये पूरी तरह स्वैच्छिक है।
- कोर्ट ये घोषणा करे कि याचिकाकर्ता और अन्य नागरिकों के शरीर उन्हीं से संबंधित हैं ना कि राज्य से।
- कोर्ट ये घोषणा करे कि नागरिक के शरीर खासतौर से बायोमिट्रिक और आयरिश पर उन्हीं का नियंत्रण और प्रभुत्व है और ये याचिकाकर्ता की निजी संपत्ति है।