दिल्ली हाई कोर्ट संतुष्ट, रिवाल्वर से गलती से गोली चलने के कारण हुई कांस्टेबल दिनेश की मौत [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

3 Nov 2017 5:25 AM GMT

  • दिल्ली हाई कोर्ट संतुष्ट, रिवाल्वर से गलती से गोली चलने के कारण हुई कांस्टेबल दिनेश की मौत [आर्डर पढ़े]

    दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक कांस्टेबल को बरी कर दिया जिस पर एक अन्य कांस्टेबल की गोली मारकर हत्या का आरोप था।

    कोर्ट सुनील कुमार की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया। सुनील ने कांस्टेबल दिनेश की हत्या में दोषी ठहराए जाने के कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सुनील ने अपनी अपील में दावा किया कि उसकी राइफल से गोली गलती से चली और उसे नहीं पता था कि सेल्फ-लोडिंग राइफल में गोलियाँ पहले से ही भरी थीं।

    पर अभियोजन पक्ष का मामला एक अन्य कांस्टेबल की गवाही पर टिका था जिसने दावा किया था कि आरोपी ने मृतक की ओर निशाना साधा था।

    न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आईएस मेहता की बेंच ने हालांकि यह कहा कि अभियोजन पक्ष इसे साबित करने में विफल रहा है।

    कोर्ट ने नोट किया कि दूसरा कांस्टेबल जो कि घटनास्थल पर मौजूद था वह एक “इंटरेस्टेड विटनेस” था क्योंकि उसने एक पहले से लोडेड एसएलआर बैरक में लेकर आया था और उसे चारपाई पर रखकर बिना सुरक्षा क्लिप लगाए चला गया था। कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले की कार्यवाही का इस कांस्टेबल पर अपने कर्तव्यों से चूकने के लिए अनुशासनात्मक कारर्वाई के रूप में होगा।

    इसलिए बेंच ने कहा, “कुल मिलाकर, अभियोजन पक्ष यह साबित करने में बुरी तरह विफल रहा कि सुनील यह अपराध जानबूझकर किया और वह यह जानता था कि पूरी संभावना है कि इससे दिनेश की मौत हो जाएगी।”

    कोर्ट ने इस संभावना से भी इनकार किया कि सुनील कुमार ने यह अपराध आईपीसी की धारा 304-A (लापरवाही के कारण किसी की हत्या) के तहत किया। कोर्ट ने कहा, “एसएलआर उठाने को उतावलापन या लापरवाही नहीं कहा जा सकता अगर आरोपी को यह नहीं पता था कि यह लोडेड था। दूसरी ओर, जिस बात की पूरी संभावना को बल मिल रहा है वह आरोपी का यह कहना है कि उसने तो सिर्फ एसएलआर को खिसकाया और इस प्रक्रिया में गलती से उसने ट्रिगर को दबा दिया यह बिना जाने कि रिवाल्वर लोडेड था। इसलिए एसएलआर को सिर्फ हिलाने भर को उस परिस्थिति में “उतावलापन और लापरवाही’ नहीं कहा जा सकता। कोर्ट इसलिए इस बात से संतुष्ट है कि अभियोजन पक्ष एक हद के आगे इस संदेह को नहीं ले जा पाया कि आरोपी ने आईपीसी की धारा 304A के तहत यह अपराध किया।”


     
    Next Story