कानूनी शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग कॉलेजों में बेतहाशा वृद्धि मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति किरुबाकरण के निशाने पर [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

30 Oct 2017 6:03 AM GMT

  • कानूनी शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग कॉलेजों में बेतहाशा वृद्धि मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति किरुबाकरण के निशाने पर [आर्डर पढ़े]

    देश में कानूनी शिक्षा के जरूरत से ज्यादा प्रसार पर अपनी बेबाक टिप्पणी करने के बाद मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण ने देश भर में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बेतहाशा बढ़ती संख्या और इंजीनियरिंग स्नातकों में बढ़ती बेरोजगारी पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इन स्नातकों को रोजगार देने की योजनाओं के साथ-साथ यह भी पूछा है कि क्या यह सच है कि इनमें से अधिकाँश स्नातकों में रोजगार प्राप्त करने की क्षमता नहीं है।

    न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने केंद्र से पूछा है कि बेरोजगार इंजीनियरिंग स्नातकों को वैकल्पिक कौशल का प्रशिक्षण देने की कोई योजना सरकार के पास है कि नहीं।

    कोर्ट का इस मुद्दे की और ध्यान तब गया जब वह तमिलनाडु स्टेट लेवल प्लेसमेंट प्रोग्राम को उचित तरीके से लागू करने के बारे में एक याचिका की सुनवाई कर रहे थे। इसके तहत सभी इंजीनियरिंग कॉलेजों में कैंपस इंटरव्यू होते हैं ताकि प्रतिभाशाली छात्रों को समान अवसर मिल सके।

    याचिकाकर्ता की बेटी करुर जिले की एक इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्र है। वैसे तो तमिलनाडु में 532 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं पर कंपनियां सिर्फ तमिलनाडु के कुछ चुनिन्दा कॉलेजों में ही कैंपस इंटरव्यू कर रही हैं।  निजी कंपनियों के कैंपस इंटरव्यू के लिए कौन से तरीके अपनाए जाते हैं इस बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि अन्ना विश्वविद्यालत के सेंटर फॉर यूनिवर्सिटी इंडस्ट्री कोलैबोरेशन ने तमिलनाडु स्टेट लेवल प्लेसमेंट प्रोग्राम की स्थापना की है जो कि अन्ना विश्वविद्यालय के सरकारी सहायताप्राप्त और अंगीभूत कॉलेजों के लिए है। लेकिन निजी कंपनियां सिर्फ कुछ चुनिन्दा कॉलेजों में ही कैंपस इंटरव्यू आयोजित करती हैं और कम से कम छात्रों का चयन करती हैं। अन्ना विश्वविद्यालय इस मामले में एक प्रतिवादी भी है।

    बेरोजगार इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए कोई योजना?

    कोर्ट ने पूछा, “यह सही है कि बहुत सारे इंजीनियरिंग कॉलेज किसी भी तरह के मैनपावर पॉलिसी के बिना ही खोल दिए गए। अधिक संख्या में इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स पैदा करने के कारण उनमें बेरोजगारी और अन्य तरह की सामाजिक समस्याएँ बढ़ रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु और महाराष्ट्र में 660 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज हैं और इनमें लाखों सीट खाली रह जाते हैं। ऐसी स्थिति सिर्फ इसलिए है क्योंकि सरकार और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और अन्य साझेदारों के पास इस बारे में कोई योजना नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि मामला सिर्फ बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने और भारी संख्या में इंजीनियरिंग स्नातक पैदा करने और इसकी वजह से इनमें बेरोजगारी बढ़ने का ही नहीं है, जैसा कि इस याचिका में कहा गया है। न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) को इस मामले में एक आवश्यक पक्षकार बनाया है।

    केंद्र सरकार के वरिष्ठ स्थाई वकील राबू मनोहर ने एचआरडी मंत्रालय की ओर से इस नोटिस को स्वीकार किया।

    कोर्ट ने इसके बाद उसे यह बताने को कहा है कि “क्या विभाग के पास देश में बेरोजगार इंजीनियरिंग स्नातकों की समस्या से निपटने के लिए कोई वैकल्पिक योजना है, और अगर है तो वह क्या है?

    कानूनी शिक्षा की खामियों को दूर करने जैसी कोई योजना

    यह आदेश न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने एमबीबीएस के दूसरे वर्ष के एक छात्र की याचिका पर सुनवाई के दौरान कानूनी शिक्षा में जरूरत से ज्यादा प्रसार की बात की जानकारी मिलने के बाद जारी की है। कोर्ट ने देश में “लैटर पैड लॉ कॉलेजों” की भारी संख्या और देश में मांग से काफी अधिक बड़ी संख्या में क़ानून के स्नातकों के पैदा होने की समस्या की ओर ध्यान दिलाया था। न्यायमूर्ति किरुबाकरण ने भारी संख्या में वकीलों के बेरोजगार होने और जीवनयापन के लिए इनके गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने के लिए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया को जिम्मेदार ठहराया था।

    इस मामले की सुनवाई अभी जारी है।

    इस बीच, अभी इंजीनियरिंग कॉलेजों में बेतहाशा वृद्धि का जो मामला सामने आया है उसको लेकर उन्होंने एआईसीटीई से कुछ प्रश्न पूछे हैं जो इस तरह से हैं :




    • इस समय देश में कितने इंजीनियरिंग कॉलेज हैं? (पिछले दस सालों के इनके राज्यवार रिकॉर्ड देने हैं)

    • हर साल कितने छात्र इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेते हैं? (पिछले दस सालों के इनके राज्यवार रिकॉर्ड देने हैं)

    • कितने छात्र हर साल इंजीनियरिंग की पढ़ाई में सफल हुए हैं?

    • क्या एआईसीटीई को यह पता है कि बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग स्नातक बेरोजगार हैं जिसकी वजह से देश में बेरोजगारी की भारी समस्या खड़ी हो गई है?

    • भारत में वास्तव में कितने इंजीनियरिंग स्नातकों की जरूरत है?

    • कितने इंजीनियरिंग स्नातकों को नौकरी नहीं मिली है?

    • कितने इंजीनियरिंग स्नातक हर राज्य के रोजगार कार्यालय में पंजीकृत हैं?

    • अगर देश में जरूरत से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज हैं तो इन अतिरिक्त कॉलेजों को बंद करने की कोई योजना है?

    • इंजीनियरिंग कॉलेजों को मान्यता देने से पहले इंजीनियरों की मांग और आपूर्ति पर आधारित एआईसीटीई के पास कोई स्वीकृत मैनपावर पालिसी है?

    • क्या यह सही है कि अधिकतर इंजीनियरिंग स्नातक में रोजगार पाने की योग्यता नहीं है?

    • इंजीनियरिंग स्नातकों में रोजगार पाने की अक्षमता को देखते हुए क्या इन उम्मीदवारों को किसी तरह के नए कौशल का प्रशिक्षण देने की कोई योजना है?

    • इंजीनियरिंग स्नातकों का रोजगार पाने का प्रतिशत क्या है?


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