जनहित याचिका के दुरूपयोग से मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र दुखी

LiveLaw News Network

29 Oct 2017 4:05 PM IST

  • जनहित याचिका के दुरूपयोग से मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र दुखी

     “कोर्ट से किस हद तक जाने की आप उम्मीद कर सकते हैं? जनहित याचिकाओं को गरीबों और पिछड़े वर्गों की शिकायतों को दूर करने के लिए बनाया गया था जिनकी न्याय तक पहुँच नहीं होती है। लेकिन अब यह तो घोटालों की जांच से लेकर कई अन्य क्षेत्रों तक पहुँच गया है। अब तो जनहित याचिका का प्रयोग यह तक पूछने के लिए हो रहा है कि खेल की सुविधा होनी चाहिए कि नहीं।” – मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र

    गुजरात में एक स्टेडियम के निर्माण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दुखी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्र ने लगभग आधे घंटे तक चली बहस के दौरान वरिष्ठ एडवोकेट सीयू सिंह से कहा, “जनहित याचिका को किस लिए शुरू किया गया था और अब कैसे कार्यों के लिए इसका प्रयोग हो रहा है...।”

    गुजरात के कांग्रेस विधायक बाबूभाई मेघाजी शाह की पैरवी कर रहे एडवोकेट सिंह से मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “शुरू में जनहित याचिका सिर्फ गरीबों और वंचितों के लिए था ताकि उनकी मदद की जा सके ...उनको ऊपर उठाया जा सके ...पर अब इसे देखिए...इस तरह के आवेदन तो भारत में निवेश का रास्ता ही बंद कर देंगे”।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, “...अब पीआइएल दायर किए जाते हैं घोटालों की जांच और अन्य बातों की अनुमति के लिए। अब इसी पीआइएल को देखिए, इसे दाखिल कर यह पूछा जा रहा है कि खेल सुविधा होनी चाहिए कि नहीं। आप एक राजनीतिक व्यक्ति हैं, लेकिन फिर भी आप पीआइएल दाखिल करते हैं। यह परियोजना वाइब्रेंट गुजरात समिट के बाद शुरू हुई। क्या आपको उस समय पता नहीं था? परियोजना पूरी हो जाने के बाद पीआइएल क्यों दायर किया गया।”

    विधायक ने अधुनातन स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनी को जमीन के आवंटन के नियमों एवं शर्तों पर सवाल तब उठाया जब परियोजना पूरी हो चुकी है।

    पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट द्वारा शाह की याचिका को ख़ारिज करने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

    अपनी याचिका में शाह ने एसई ट्रांस स्टेडिया को स्टेडियम के निर्माण के लिए अहमदाबाद में जमीन के आवंटन के तरीकों पर सवाल उठाया था। इस आउटडोर स्टेडियम को जरूरत पड़ने पर छह मिनट में इनडोर स्टेडियम में बदला जा सकता है।

    शाह की पैरवी करते हुए वरिष्ठ एडवोकेट सीयू सिंह ने कहा कि राजस्वा विभाग ने जमीन का जो मूल्यांकन किया है उसके हिसाब से राज्य सरकार को वार्षिक लीज किराए के रूप में चार करोड़ रुपए मिलने चाहिए थे पर सरकार ने मात्र 25 लाख रुपए ही मांगे। उन्होंने कहा, “आवेदनकर्ता स्टेडियम बनाने के खिलाफ नहीं है पर आवंटित जमीन के बदले ज़्यादा किराए लेने का समय अभी ख़तम नहीं हुआ है।”

    जमीन के किराये के आकलन को उचित ठहराते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनी के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि राज्य सरकार और एसई ट्रांस स्टेडिया के बीच 2009 में एक एमओयू के माध्यम से वाइब्रेंट गुजरात समिट के दौरान करार हुआ। इसके मुताबिक़, कंपनी को अपने वार्षिक सकल राजस्व का दो प्रतिशत या दो करोड़ रुपए, जो भी अधिक हो, राज्य में खेल के विकास पर खर्च करना है। उन्होंने कहा कि स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स “हब-एंड-स्पोक” मॉडल पर बनाया जाना था और अहमदाबाद में इसका सबसे बड़ा कॉम्प्लेक्स बनना है जबकि इसके चार अन्य छोटे-छोटे कॉम्प्लेक्स अन्यत्र बनने हैं।

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