सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिकवरी ऑफ़ डेट एंड बैंकरप्सी (आरडीबी) अधिनियम, 1993 की धारा 30 (1) के तहत रिकवरी अधिकारी के आदेश के खिलाफ निर्धारित 30 दिनों के अंदर अपील में देरी को लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेशनल असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड बनाम अल्द्रीच फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड एवं अन्य के आधिकारिक लिक्विडेटर के मामले में उक्त बातें कही है।
रिकवरी अधिकारी के आदेश के खिलाफ पीड़ित पक्ष द्वारा ट्रिब्यूनल के समक्ष निर्धारित 30 दिनों की अवधि के भीतर अपील किया गया और ट्रिब्यूनल ने निर्णय दिया कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 30 के तहत अपील में 30 दिनों से अधिक के विलंब को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में कहा गया कि आरडीबी अधिनियम की स्कीम में लिमिटेशन एक्ट का आवेदन भी शामिल है। अधिनियम की धारा 2 (b) को डेट रिकोवेरी ट्रिब्यूनल (प्रोसीजर) रूल्स, 1993 के नियम 2 (सी) के साथ उसकी चर्चा के संदर्भ में कहा गया कि इस अधिनियम की धारा 30 (1) के तहत दाखिल “आवेदन” भी आरडीबी अधिनियम की धारा 24 के तहत क्षम्य है।
हालांकि, न्यायमूर्ति एएम सप्रे और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ का मत था कि अधिनियम की धारा 2(b) के तहत “आवेदन” की परिभाषा आरडीबी अधिनियम की धारा 19 तक ही सीमित है।
लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि चूंकि इस अधिनियम के तहत कारर्वाई वैधानिक ट्रिब्यूनल के अधीन हो रहा है, इसलिए इसे कोर्ट की कारर्वाई के समतुल्य नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि “इसलिए ट्रिब्यूनल को इस विलंब को नजरअंदाज करने का अधिकार नहीं होगा बशर्ते कि जिस क़ानून के तहत इसकी अनुमति दी गई है उसी के तहत उसे यह अधिकार दिया जाए।”
कोर्ट ने कहा, “अधिनियम की धारा 30 के तहत अपील को वरीयता देने में ट्रिब्यूनल द्वारा समय सीमा बढाने के किसी भी तरह के प्रावधान को बाहर रखना यह बताता है कि ऐसा करके इसके विधाई आशय को दर्शाया गया है।”