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सरकारी अफसरों को बचाने संबंधी राजस्थान सरकार के अध्यादेश को हाई कोर्ट में चुनौती [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network
24 Oct 2017 4:39 AM GMT
सरकारी अफसरों को बचाने संबंधी राजस्थान सरकार के अध्यादेश को हाई कोर्ट में चुनौती [याचिका पढ़े]
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राजस्थान सरकार के आपराधिक क़ानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस नए विवादास्पद विधेयक के तहत प्रावधान है कि लोक सेवकों, जज और मजिस्ट्रेट के खिलाफ छानबीन से पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी।

गत 7 सितंबर को इस मामले में अध्यादेश जारी किया गया था। अध्यादेश के अनुसार, किसी भी सरकारी मुलाजिम के खिलाफ जांच हो सकती है या नहीं इसके लिए 180 दिनों के भीतर संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होगी और अगर इस दौरान उस पर फैसला नहीं हुआ तो इसे मंजूर माना जाएगा। साथ ही यह प्रावधान भी है कि जब तक सरकारी मंजूरी नहीं मिल जाती है संबंधित अधिकारी का नाम तब तक मीडिया के जरिए उजागर नहीं किया जा सकता।

इस मामले में भागवत गौड़ नामक शख्स ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि इस अध्यादेश के जरिए समाज में बड़े पैमाने पर लोगों को अपराध करने का लाइसेंस दिया जा रहा है और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन है। साधारण छानबीन के मामले में सरकारी मुलाजिमों को विशेषाधिकार दिया गया है जो संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। यह अनुच्छेद 14 यानी क़ानून के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है और यह स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच को प्रभावित करेगा। इससे दोषी अफसरशाह भ्रष्टाचार और अपराध करके भी बचे रहेंगे।

याचिकाकर्ता ने कहा कि न्याय का सिद्धांत यह कहता है कि मामले की छानबीन निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए। इसमें किसी का कोई दबाव नहीं होना चाहिए। यह तभी संभव है जब नौकरशाहों का दबाव न हो। लेकिन इस अध्यादेश के बाद यह दबाव काम करेगा क्योंकि सरकार के हाथ में यह अधिकार होगा कि वह किसी सरकारी मुलाजिम के खिलाफ जांच की इजाजत दे या नहीं दे। इसमें सरकारी निर्णय भेदभाव और मनमाना हो सकता है क्योंकि मजिस्ट्रेट मंजूरी देगा और इस तरह यह अध्यादेश मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14 के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया है और कहा कि इन फैसलों में कहा गया है कि मामले में संज्ञान लेने के लिए मंजूरी चाहिए लेकिन इस मामले में छानबीन की शुरुआत के लिए ही मंजूरी लेने की बात कही गई है।


 
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