आरटीआई के तहत सूचना मिलने में दो साल की देरी पर पांच हजार का मुआवजा [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
23 Oct 2017 11:34 AM GMT
एक आरटीआई आवेदक को सूचना मिलने में दो साल की देरी होने पर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने पांच हजार का मुआवजा दिया है। आयोग ने कहा कि इस तरह की देरी एक तरह का उत्पीड़न है।
आबिद हुसैन ने जबलपुर के कैंटोनमेंट बोर्ड से भूमि सर्वेक्षण रिपोर्ट की प्रतियां मांगी थी पर बोर्ड ने दो साल तक उसको यह जानकारी नहीं दी। इस देरी की वजह से सीआईसी ने बोर्ड से हुसैन को पांच हजार का मुआवजा चुकाने का आदेश दिया।
सूचना आयुक्त दिव्य प्रकाश सिन्हा का मानना था कि आबिद सूचना मिलने में इस देरी के लिए मुआवजे का हकदार है।
आबिद को यह जानकारी दीवानी अदालत के समक्ष पेश करना था जहाँ पर उसका एक मामला लंबित था। उसने 31 अगस्त 2015 को इस सूचना के लिए आरटीआई के तहत आवेदन दिया। इसकी पहली सुनवाई 5 अक्टूबर को और दूसरी सुनवाई 24 नवंबर 2015 को हुई।
पर उसे यह वांछित सूचना अक्टूबर 2017 में तब दी गई जब उसने सीआईसी का दरवाजा खटखटाया। कैंटोनमेंट बोर्ड के सीपीआईओ को इस सुनवाई के बारे में सूचना भेजने के बाद ही उसे यह जानकारी मिल पाई। लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी।
आबिद ने जानकारी मिलने में हुई दो साल से अधिक की देरी और इस कारण हुई हानि के बदले मुआवजे की मांग की।
हुसैन ने कहा कि चूंकि उसे यह जानकारी दीवानी अदालत के सामने पेश करनी थी इसलिए उसने इसके लिए दो साल पहले आवेदन किया पर अब उसको यह सूचना ऐसे समय मिली है जब इसकी उसे कोई जरूरत नहीं है। उसने कहा कि सूचना प्राप्त करने के लिए इतने लंबे समय की प्रतीक्षा एक तरह से उसका उत्पीड़न है।
सीपीआईओ ने अपने जवाब में कहा कि उसके पूर्व अधिकारी जनवरी 2016 में रिटायर हो गए और उन्होंने फरवरी 2016 में कार्यभार संभाला।
पर आयुक्त ने इस मसले को गंभीरता से लिया और जबलपुर के कैंटोनमेंट बोर्ड के सीपीआईओ द्वारा इसे आरटीआई अधिनियम का सीधा उल्लंघन करार दिया। उसने यह कहा कि अपने पूर्ववर्ती अधिकारी के समय से लंबित आरटीआई आवेदन के बारे में जानकारी से अनभिज्ञता जाहिर करना सीपीआईओ द्वारा इस अधिनियम का उल्लंघन है।
सूचना आयुक्त सिन्हा ने कहा, “वर्तमान सीपीआईओ की यह जिम्मेदारी है कि वह सभी लंबित आरटीआई आवेदनों पर कारर्वाई करें और सूचना आयुक्त से आरटीआई आवेदन पर सुनवाई की रिपोर्ट मिलने प्रतीक्षा नहीं करें”।
सीआईसी ने कैंटोनमेंट बोर्ड के सीईओ को आदेश दिया कि वह वर्तमान सीपीआईओ के पास उनके पूर्ववर्ती के समय से सभी लंबित आरटीआई आवेदनों के बारे में जानकारी जुटाने और यह सुनिश्चित करने को कहा कि सीपीआईओ इस पर आरटीआई अधिनियम के तहत उचित कारर्वाई करे।
इस बारे में रिपोर्ट पर समय रहते कारर्वाई करने को भी कहा गया।
सीआईसी इस बारे में सहमत था कि सूचना मिलने में दो साल से अधिक की देरी से आवेदक का उत्पीड़न हुआ है और इसलिए वह मुआवजा पाने का हकदार है।
सीआईसी ने अपने आदेश में कहा, ‘आयोग इस सार्वजनिक प्राधिकरण को उसके सीईओ के माध्यम से यह आदेश देता है कि वह आवेदक को हुई असुविधा और नुकसान के लिए उसे पांच हजार रुपए का मुआवजा चुकाए। सीपीआईओ यह सुनिश्चित करे कि यह राशि आवेदक को डिमांड ड्राफ्ट/पे आर्डर के माध्यम से इस आदेश के जारी होने के 30 दिनों के भीतर मिल जाए।”