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सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की सुनवाई करेगी पांच जजों की संविधान पीठ

LiveLaw News Network
13 Oct 2017 8:25 AM GMT
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी की सुनवाई करेगी पांच जजों की संविधान पीठ
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 केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल 50 साल की उम्र की महिलाओं  के प्रवेश पर रोक के मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ करेगी।

शुक्रवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई में तीन  जजों की बेंच ने संविधान पीठ को ये मामला सुनवाई के लिए भेजा है।

दरअसल इस जनयाचिका में कहा गया है कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश ना करने देना उनके साथ भेदभाव करना है। इससे पहले केरल की UDF सरकार ने भी मंदिर प्रशासन के समर्थन में कहा था कि धार्मिक मान्यताओं की वजह से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी और तपस्या लीन माना जाता है। लेकिन सरकार बदलने के बाद पिछले साल नवंबर में LDF सरकार ने स्टैंड बदलते हुए कहा कि मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देनी चाहिए।

दरअसल सबरीमाला मंदिर में परंपरा के अनुसार, 10 से 50 साल की महिलाओं की प्रवेश पर प्रतिबंध है। मंदिर ट्रस्ट की मानें तो यहां 1500 साल से महिलाओं की प्रवेश पर बैन है। इसके लिए कुछ धार्मिक कारण बताए जाते रहे हैं। केरल के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 2006 में पीआईएल दाखिल की थी. करीब 11 साल से यह मामला कोर्ट में लटका हुआ है।

संविधान पीठ को भेजे गए सवाल




  1. क्या महिला को बॉयोलाजिकल फैक्टर के आधार पर मंदिर में प्रवेश पर रोक समानता के अधिकारों उल्लंघन करता है ?

  2. क्या महिलाओं पर रोक के लिए धार्मिक संस्था मेॉ में चल रही इस प्रथा को इजाजत दी जा सकती है ?

  3. क्या सबरीमाला धार्मिक संस्था की ये रोक संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में है ?

  4. क्या अयप्पा मंदिर अलग धार्मिक संस्था है और अगर है तो क्या वो संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का हनन कर सकता है और ऐसे महिलाओं को रोका जा सकता है ?

  5. क्या महिलाओं पर रोक केरला हिंदू पब्लिक वर्शिप एंट्री एक्ट का हनन है ?

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