लिव इन और समलैंगिक में शादी जैसे मामले को समानता की परिभाषा में लाने के लिए लॉ कमिशन के सामने कुछ वकीलों ने प्रोग्रेसिव यूनिफर्म सिविल कोड के संदर्भ में ड्राफ्ट पेश किया [ड्राफ्ट पढ़े]

LiveLaw News Network

13 Oct 2017 10:48 AM IST

  • लिव इन और समलैंगिक में शादी जैसे मामले को समानता की परिभाषा में लाने के लिए लॉ कमिशन के सामने कुछ वकीलों ने प्रोग्रेसिव यूनिफर्म सिविल कोड के संदर्भ में ड्राफ्ट पेश किया [ड्राफ्ट पढ़े]

    भारतीय समाज में चलरही यूनिफर्म सिविल को़ड को लेकर बहस के बीच लॉ कमिशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस बीएस चौहान को प्रोग्रेसिवल यूनिफर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट पेश किया। इसमें लिव इन रिलेशनशिप, होमो सेक्सुअल रिलेशनशिप का समावेश है साथ ही किसी भी तरह के लिंग भेद के खिलाफ संदर्भ दिया गया है।

    ड्राफ्ट कोड में तमाम तरह के भेदभाव को खत्म किया गया है। इसके तहत आदमी, औरत, ट्रांसजेंडर, मैरिज, पार्टनरशिप मामले, तलाक, गोद लेने, चाइल्ड कस्टडी और पुश्तैनी मामले में भेदभाव रहित कोड की बात कही गई है।

    इस मामले में एडवोकेट दुष्यंत ने ड्राफ्ट पेश किया। इस पर मैग्सेसे अवार्ड विजेता बेजवादा विल्सन, एक्ट्रेस गुल पनाग, जर्नलिस्ट और टीकाकार नीलांजना राय, मेजर जनरल एस. वोमबेटकेर (रिटायर), इतिहासकार मुकुल केशवन, एस इरफान हबीब  और कलाकार टीएम कृष्णा के दस्तखत थे। ड्राफ्ट जब लॉ कमिशन के सामने जस्टिस चौहान को पेश किया गया उस वक्त दुष्यंत, कृष्णा और विल्सन मौजूद थे।

    इस प्रयास को लीगल महारथी सोली सोराबजी ने भी सपोर्ट किया और कहा कि इस ओर उठाया गया कोई भी कदम एक उदारवादी सोच और प्रकाश की किरण लाएगी। सोराबजी ने अपने लेटर ेमं लिखा है कि लॉ कमिशन को इस अंदेशे से अलग रहना चाहिए कि यूनिफॉर्म में बहुतायत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि लॉ कमिशन की सिफारिश प्रोग्रेसिव होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये ड़्राफ्ट काफी अर्थपूर्ण साबित होगा और दिशा देने में मदद करेगा।

    ड्राफ्ट कोड कहता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है साथ ही सामाजिक, संप्रभूता वाला, लोकतांत्रक्षित गणतंत्र है और इसका सही सम्मान तभी होगा जब समाज में किसी भी तरह का भेदभाव न हो। शादी के अलावा ड्राफ्ट में पार्टनरशिप , लिव इन रिलेशनशिप आदि का जिक्र है साथ ही ट्रांसजेंडर, होमो सेक्सुअल और बाइ सेक्सुअल का जिक्र है। पार्टनरशिप में लिव इन रिलेशनशिप की बात है जो शादी के बिना लड़के और लड़की साथ रहते हैं या फिर दो लड़के या दो लड़की साथ रहते हैं या फिर ट्रांसजेंडर साथ रहते हैं या फिर ट्रांसजेंडर और एक आदमी या औरत साथ रहते हैं। साथ ही कहा गया है कि तमाम तरह की शादी को रजिस्टर्ड किया जाना चाहिए। शादी में प्रावधान में नॉन हेट्रो सेक्सुअल मैरिज को भी शामिल किए जाने की बात है। इसे पर्सनल लॉ में स्वीकार नहीं किया जाता।

    ऐसी शादियां जो नॉन हेटेरोसेक्सुअल मैरिज है यानी आदमी और औरत की शादी के अलावा किसी की भी शादी को कस्टम और धर्मिक प्रैक्टिस में स्वीकार्य नहीं किया जाता है और ऐसी शादी पर बैन है लेकिन ऐसी किसी भी शादी पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए और रजिस्ट्रार को इजाजत होनी चाहिए कि वह ऐसे तमाम शादी को रजिस्टर्ड करे। साथ ही ऐसे कपल को पुलिस प्रोटेक्शन दिया जाना चाहिए।

    लिव इन रिलेशनशिप के मामले में टॉप कोर्ट ने ग्रीन सिग्नल दिया था और कहा गया था कि अगर कोई कपल साथ रहता है तो ऐसा माना जाए कि वह पति-पत्नी हैं यानी पति और पत्नी का दर्जा दिया जाए। ड्राफ्ट में कहा गया है कि किसी को भी ऐसी दो पार्टनरशिप में रहने की इजाजत नहीं होनी चाहिए क्योंकि हिंदू मैरिज एक्ट दो शादी की एक साथ इजाजत नहीं देता है। ड्राफ्ट में गोद लेने के मामले में कहा गया है कि तमाम तरह के कपल चाहे वह शादीशुदा हों या पार्टनशिप में हों उन्हें बच्चे को गोद लेने का अधिकार होना चाहिए चाहे उसका सेक्सुअल भंगिमाएं कुछ भी हो। ट्रिपल तलाक के मुद्दे लंबे समय से बहस का मुद्दा रहा। ड्राफ्ट ने कहा है कि जूडिशियल डिक्री से इतर कोई भी तलाक का कोई कानूनी वैधता नहीं हो।

    ड्रफ्ट ने कहा कि ये तय कानून है कि चाइल्ड कस्टडी के मामले में चाइल्ड के हित को सर्वोपरि माना गया है और ऐसे में धार्मिक और यौन भंगिमाएं इस मामले में कोई कारण नहीं बनना चाहिए। ड्राफ्ट में ये भी कहा गया है कि किसी भी तरह का पुश्तैनी संपत्ति के मामले में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए मसलन मुस्लिम लॉ में महिलाओं का शेयर पुरुष के शेयर का आधा होता है। दुष्यंत ने कहा कि कैसे हिंदू लॉ, क्रिश्चियन  और पारसी लॉ कानूनी जामा पहन चुका है लेकिन मुस्लिम, ट्राइबल, आदिवासी के कानून अभी भी को़डीफाई नहीं है। चाहे वह को़डीफाई हो या नहीं हो लेकिन इसमें शादी, तलाक, बच्चे के गोद लेने के मामले, पुश्तैदी अधिकार और अभिभावक के अधिकार के मामले में भेदभाव है।


     

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