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बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता पर दिया आदेशः आईटी रिटर्न सही पिक्चर कई बार नहीं दिखाता, लाइफ स्टाइल को देखा जाए [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
9 Oct 2017 11:11 AM GMT
बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता पर दिया आदेशः आईटी रिटर्न सही पिक्चर कई बार नहीं दिखाता, लाइफ स्टाइल को देखा जाए [निर्णय पढ़ें]
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गुजारा भत्ता बढ़ाए जाने को लेकर दाखिल अर्जी को स्वीकार करते हुुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मनीश जैन बनाम आकांक्षा जैन के मामले में फैसला दिया कि पति ने अपने इनकम को उजागर न करने की साऱी तरकीब लगाई थी ताकि दोनों बच्चे और बच्चों की मां को कम से कम गुजारा भत्ता देेना पड़े।

जस्टिस शालिनी फांसालकर जोशी ने उस रिट पर सुनवाई करते हुआ आदेश दिया जिसमें फैमिली कोर्ट के 5 मई 2016 के फैसले को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने सीआरपीसी की धारा-125 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता दिया था और पति को निर्देश दिया था कि वह दोनों बच्चों और उसकी मां को 5-5 हजार रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता दे। हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता डबल कर दिया।

केस का बैकग्राउंड

याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि प्रतिवादी पति का सोने और चांदी का बिजनेस है। उसके पास तीन दुकानें हैं। ये दुकानें साउथ मुंबई के कोलाबा मार्केट में है। उसने पांच फ्लैट खऱीदे हुए हैं और उसकी मासिक आमदनी 20 लाख के आसपास है। ऐसे में गुजारा भत्ता 2 लाख रुपये प्रति महीने दिया जाना चाहिए। वहीं प्रतिवादी के वकील इस पर कड़ा एतराज जताया और कहा कि उसके क्लाइंट ने इनकम टैक्स रिटर्न दिखाया है और इस तरह इनकम 15 से 20 हजार रुपये  प्रति महीने है। साथ ही कहा कि प्रतिवादी दुकान का मालिक नहीं है बल्कि वह फैमिली बिजनेस में हैं और वह वहां बतौर कर्माचारी काम करता है। इसके लिए 20 हजार रुपये प्रति महीने मिलता है। फैमिली कोर्ट ऑर्डर का जिक्र करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी ने कई संपत्ति बनाई है। इसमें सिक्युरिटी 5 लाख के अलावा 22.55 लाख का अन्य संपत्ति है। कोर्ट ने कहा कि रिटर्न साफ दिखाता है कि प्रतिवादी और उसकी फैमिली एक अच्छी खासी इनकम अर्जित करता है। ये कहना जरूरी नहीं है कि जब भी इनकम टैक्स अथॉरिटी को इनकम के बारे में बताया जाता है तो रिटर्न हमेशा सही पिक्चर नहीं दिखाता है। ऐसे में कोर्ट को दोनों पक्षकारों के लाइफ स्टाइल और अन्य पहलुओं को देखना चाहिए। इस मामले को विचार करने की जरूरत है। प्रतिवादी ने अपने सही इनकम को छुपाने की सारी कोशिश की है ताकि गुजारा भत्ता न देना पड़े।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

मनीष जैन बनाम आकांक्षा जैन के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब ये बातें रूटीन हो गई है कि जब भी मामला गुजारा भत्ता के लिए आता है तो बताया जाता है कि आवेदक परिवार के साथ नहीं रहता। अगर उनके पास अच्छा खासा बिजनेस है और अचल संपत्ति है तो वह बताता है कि वह परिवार के साथ नहीं रहता ताकि गुजारा भत्ता न देना पड़े। लेकिन कोर्ट इस परिस्थितियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता। अगर इस तरह की कारगुजारी की जाएगी तो उस पर आंखें बंद नहीं की जा सकती। ऐसे में तमाम परिस्थितियों को देखते हुए और स्कूल जाने वाले बच्चों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने अर्जी स्वीकार कर ली और गुजारा भत्ता डबल करत हुए बच्चों और उसकी मां के लिए 10-10 हजार रुपये प्रति महीने गुजारा भत्ता दिए जाने का आदेश पारित किया।

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