कोई ओहदे पर बैठे शख्स के कानून के खिलाफ बयानबाजी पर क्या हो कार्रवाई, मामला संविधान पीठ को
LiveLaw News Network
5 Oct 2017 3:13 PM IST
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि के किसी पॉलिसी और कानून के विपरीत बयान देने पर क्या कार्रवाई की जा सकती है, इस मुद्दे को संविधान पीठ को भेज दिया है। इससे पहले कोर्ट ने चार सवाल तय किए थे। इससे पहले कोर्ट ने हरीश साल्वे और फली नरीमन को केस का एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया था।
दरअसल बुलंदशहर गैंग रेप मामले में आजम खान के विवादित बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। इससे पहले कोर्ट से आज़म ने बिना शर्त माफ़ी मांग ली थी और कोर्ट ने माफ़ीनामे को स्वीकार भी कर लिया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि बोलने की आजादी के नाम पर क्या आपराधिक मामलों में क्या सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधि पॉलिसी और विधान के विपरीत बयान दे सकते हैं ?
गुरुवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने इस मामले को संविधान पीठ में भेज दिया।
- जब कोई पीडित दूसरे लोगों के खिलाफ गैंगरेप, रेप या हत्या की FIR दर्ज कराती है तो क्या कोई जनप्रतिनिधि, सरकार में बैठा व्यक्ति या अथॉरिटी वाला व्यक्ति इस मामले में ये कह सकता है कि इस मामले के पीछे राजनीतिक साजिश है खासतौर पर तब जब उसका मामले से कोई लेना देना ना हो।
- क्या राज्य जो लोगों के अधिकारों का सरंक्षक है और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जवाबदेह है, ऐसे बयानों की इजाजत दे सकता है जिनकी वजह से पीडित के मन में निष्पक्ष जांच को लेकर शंका पैदा हो यहां तक कि पूरे तंत्र पर ?
- क्या ऐसे बयान बोलने व अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के दायरे में आते हैं या फिर इन अधिकारों की सीम लांघते हैं ?
- क्या ऐसे बयान ( जो खुद के सरंक्षण के लिए ना दिए गए हों) संवैधानिक करूणा और संवैधानिक संवेदनशीलता के सिद्घांत को मात देते हैं ?
दरअसल गैंगरेप की शिकार महिला व उसकी नाबालिग बेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर आजम खां के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। 31 जुलाई को एमिक्स फली नरीमन ने कहा था कि ऐसे मामलों में कोई कानून बनाया जाना चाहिए।