Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

रोहिंग्या के भी भारतीयों की तरह मौलिक अधिकार, सुप्रीम कोर्ट को दखल देने का अधिकार : नरीमन [जवाबी हलफनामा पढ़े]

LiveLaw News Network
3 Oct 2017 3:51 PM GMT
रोहिंग्या के भी भारतीयों की तरह मौलिक अधिकार, सुप्रीम कोर्ट को दखल देने का अधिकार : नरीमन [जवाबी हलफनामा पढ़े]
x

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि केंद्र सरकार की इस दलील को स्वीकार करना मुश्किल है कि रोहिंग्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई नहीं कर सकता क्योंकि ये मामला मानवाधिकार से जुडा है और वो भी खासतौर से महिलाओं व बच्चों से जुडा। जस्टिस मिश्रा ने ये टिप्पणी प्रसिद्ध वकील फली एस नरीमन की दलीलों पर की। कोर्ट मामले की सुनवाई 13 अक्तूबर को करेगा। कोर्ट ने सभी पक्षों को इस संबंध में सरकारी नोटिफिकेशन और संधियों को इकट्ठा कर कोर्ट में दाखिल करने को कहा है। दरअसल इस मामले में फली नरीमन ने केंद्र के तर्क का विरोध किया जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस भेजने के मामले में कोर्ट का सुनवाई करना न्यायोचित नहीं होगा और ये सरकारी पालिसी के तहत आता है।

चीफ जस्टिस मिश्रा नरीमन की इस दलील से भी सहमत दिखे कि ये मामला मानवाधिकारों से जुडा है इसलिए कोर्ट के अधिकारक्षेत्र और न्यायोचित होने या ना होने का सवाल नहीं उठता।चीफ जस्टिस की अगवाई में जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने कहा कि इस मामले में सिर्फ कानूनी पहलू पर सुनवाई होगी और सभी पक्ष भावनात्मक दलीलों से दूर रहें। चूंकि ये मामला मानवता से जुडा है इसलिए इसकी सुनवाई आपसी सम्मान के तहत होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या को वापस भेजने का फैसला देशहित में कार्यपालिका के अधिकारक्षेत्र में पालिसी के तहत है इसलिए कोर्ट का इस पर सुनवाई करना न्यायोचित नहीं होगा।

याचिकाकर्ता रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुद्दीम की ओर से वकील प्रशांत भूषण की मदद से पेश हुए फली नरीमन ने कहा कि केंद्र सरकार की दलील है कि कोर्ट इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता क्योंकि ये सरकारी पालिसी का मामला है और अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दाखिल नहीं की जा सकती क्योंकि ये अधिकार गैर नागरिकों के लिए उपलब्ध नहां है।

नरीमन ने कहा कि केंद्र की इस दलील को नहीं माना जा सकता क्योंकि अनुच्छेद 14 और 21 सभी लोगों के लिए उपलब्ध हैं और अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दाखिल करने का सभी को अधिकार है। नरीमन ने केंद्र सरकार के 29 दिसंबर 2011 के नोटिफिकेशन का भी हवाला दिया जिसमें सरकारी पालिसी बनाई गई थी कि जो कार्रवाई से बचकर फरार हुए हैं उन्हें अवैध प्रवासियों से अलग माना जाएगा और सरकार उन्हें लंबे वक्त का वीजा, रोजगार और शिक्षण संस्थानों में पढाई का अधिकार देगी।  लेकिन सरकार 2014 में शरणार्थियों पर एक सवाल के जवाब में इस SOP से पलट गई।

नरीमन ने आगे कहा कि अगर सरकार के पास कुछ रोहिंग्या की आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की जानकारी है तो उन्हें शरणार्थियों से अलग कर कार्रवाई की जा सकती है लेकिन हर किसी को एक ब्रश से पेंट नहीं किया जा सकता। नरीमन ने 3 अक्तूबर 2016 की न्यूयार्क संधि का हवाला दिया जिसमें भारत भी शामिल है। इसके मुताबिक शरणार्थियों को देश में शरण दी जाएगी और अवापसी का नियम लागू होगा। उन्होंने कोर्ट को बताया कि भले ही भारत शरणार्थी संधि 1951 में शामिल नहीं है लेकिन वो कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों में शामिल हैं जो मानवाधिकार, सजा एवं क्रूरता व बाल अधिकारों से जुडी हैं।

वहीं केंद्र सरकार की ओर से ASG तुषार मेहता ने कहा कि वो इस याचिका के सुनवाई योग्य होने और कोर्ट के दखल पर दलीलें देने को तैयार हैं।केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजने का फ़ैसला परिस्थितियों, कई तथ्यों को लेकर किया गया है जिसमें राजनयिक विचार, आंतरिक सुरक्षा, कानून व्यस्था, देश के प्रकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन आदि शामिल है।  हलफनामे में केन्द्र सरकार ने कहा है कि कोर्ट को इस मुद्दे को केंद्र पर छोड़ देना चाहिए और देश हित में केंद्र सरकार को पॉलिसी निणय के तहत काम करने देना चाहिए। कोर्ट को इसमें दखल नही देना चाहिए क्योंकि याचिका में जो विषय दिया गया है उससे भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर विपरीत असर पड़ेगा। और ये राष्ट्रीय  सुरक्षा को खतरा है। सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि रोहिंग्या ने अनुछेद 32 के तहत जो याचिका दाखिल है कि वो सुनवाई योग्य नही है क्योंकि अनुछेद 32 देश के नागरिकों के लिए है न कि अवैध घुसपैठियों के लिए।




Next Story