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रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया पहुंचा सुप्रीम कोर्ट [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network
3 Oct 2017 11:25 AM GMT
रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया पहुंचा सुप्रीम कोर्ट [याचिका पढ़े]
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रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में रोहिंग्या को मूल सुविधाएं देने की मांग भी की गई है।

याचिका में कहा गया है कि अगर रोहिंग्या बच्चों को वापस भेजा जाता है तो ये बच्चों के अधिकार, 1989 के संयुक्त राष्ट्र संधि के प्रावधानों का  उल्लंघन होगा। इस संधि के मुताबिक विशेष श्रेणी जिनमें अल्पसंख्यकों के बच्चे, दिव्यांग और शरणार्थियों के बच्चों का सरंक्षण अनिवार्य है। याचिका में कहा गया है कि इस संधि के मुताबिक भारत सरकार सभी तरह के बच्चों को सरंक्षण देने के लिए बाध्य है भले ही वो देश के नागरिक क्यों ना हों। चूंकि भारत ने भी संधि पर हस्ताक्षर किए हैं इसलिए सरकार हर भेदभाव से बच्चों को सरंक्षण देने के लिए बाध्य है।

याचिका में कहा गया है कि ये कदम संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है क्योंकि तिब्बती, अफगान, बंगलादेश के चकमस और श्रीलंका के तमिलों को शरणार्थी के तौर पर सरंक्षण दिया गया है। इसलिए रोहिंग्या के साथ ये भेदभाव नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा याचिका में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बेहतर मूलभूत सुविधाओं की मांग भी की गई है। कैंपों के हालात बताते हुए याचिका में कहा गया है उन्हें ना तो किसी तरह का सरंक्षण दिया गया है और उन्हें तरह तरह से प्रताडित, धमकियां और सताया जा रहा है। यहां तक कि वहां पर्याप्त खाना व अन्य वस्तुओं की आपूर्ति भी नहीं हो रही है। कैंपों में रहने वाले बच्चे विभिन्न बीमारियों से पीडित हो रहे हैं और उन्हें मेडिकल सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। यहां तक कि मौसम के अनुरूप शेल्टर भी नहीं है। ये भी उदाहरण हैं कि बच्चे सांप के काटने व अन्य घातक बीमारियों के चलते जान गवां रहे हैं।1989 की  संधि के मुताबिक केंद्र सरकार इन बच्चों के सरंक्षण के लिए कदम नहीं उठा रही है।

याचिका में कहा गया है कि अवापसी के सिद्धांत के खिलाफ है कि किसी शरणार्थी को वापस ऐसी जगह भेजा जाए जहां उसकी जान को या स्वतंत्रता को खतरा हो। अगर निर्दोष रोहिंग्याओं को वापस भेजा जाता है और उन्हें वहां दंडित किया जाता है तो ये अंतर्राष्ट्रीय साख के बाकी भुगतान के तहत हमेशा के लिए स्वयं को दोषी मानते हुए मौत का निर्यात करेंगे।


 
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