चाइल्ड राइट्स संस्था ने प्राइवेसी कारण से जानकारी देने से मना किया, सीआईसी ने कहा कि बच्चों के नाम के अलावा कुछ भी प्राइवेट नहीं [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
27 Sept 2017 3:01 PM IST
नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स सीआईसी के कोपभाजन का शिकार हुआ है। सीआईसी (सेंट्रल इन्फॉरमेशन कमिशन) ने शिकायतों के मामले में गोपनीयता बरतने के लिए नैशनल कमिशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की खिंचाई की है। इन केसों में आरोपी को दोषी पाया गया है और जो रिलीफ मिला है उस बारे में आरटीआई के जरिये अजीत कुमार सिंह ने जानकारी मांगी थी।
सेंट्रल इन्फॉरमेशन कमिशनर एम. श्रीधर आचार्युलू ने चाइल्ड राइट्स बॉडी की खइंचाई की और उनके चीफ पब्लिक इन्फॉरमेशन ऑफिसर (सीपीआईआईओ) और दो डीम्ड पीआईओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और पूछा है कि वह बताएं कि क्यों न उनके खिलाफ अधिकतम जुर्माना लगाया जाए क्योंकि उन्होंने जानकारी देने में बाधा पहुंचाई है।
सीआईसी ने एनसीपीसीआर से कहा है कि वह दो साल से पेंडिंग जानकारी मुहैया कराए। इनमें बिहार सर्कल का डिटेल है। साथ ही जिन मामलों में आरोपी को सजा हुई है उनसे संबंधित मामले में जानकारी दी जाए इसके लिए बच्चे के नाम और व्यक्तिगत जानकारी हटाकर जानकारी मुहैया कराने के लिए 15 दिन का समय दिया गया।
एनसीपीसीआर के वेबसाइट से ये बात प्रतीत होता है कि वह जिस मकसद से काम करता है उसके विपरीत जानकारी देने से मना किया गया। एनसीपीसीआर बच्चों के लिए काम करती है ताकि उसका कल्याण हो।
अजीत कुमार सिंह की ओर से आऱटीआई के तहत अर्जी दाखिल की गई थी। इसमें जानकारी मांगी गई थी कि एनसीपीसीआर के पास कितनी शिकायतें आई है। इन शिकायतों पर क्या कार्यवाही हुई। केस का डाटा वाइज फैसले का डिटेल मांगा गया और साथ ही जानकारी मांगी गई कि क्या आरोपी को सजा हुई और क्या रिलीफ दिया गया था। तब पीआईओ की ओर से आरटीआई के जवाब में कहा गया था कि जो जानकारी मांगी गई है वह खुलासा करने योग्य नहीं है और आरटीआई एक्ट की धारा-8(1)(आई) के तहत अपवाद में हैं और जानकारी मुहैया नहीं हो सकती।
धारा-8(1)(आई) के तहत ये प्रावधान है कि जो जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति का है उसे जाहिर नहीं किया जाएगा। वैसे जानकारी जिसका पब्लिक एक्टिविटी से कोई लेना देना नही ंहो और किसी व्यक्ति के निजता को अगर प्रभावित करता है तो वह जानकारी नहीं दी जा सकती।
सीआईसी ने कहा कि एनसीपीसीआर ने जो जानकारी देने से मना किया था वह कारण संतुष्टिदायक नहीं है। प्राइवेसी अपवाद के मामले का इस्तेमाल कर पूरी जानकारी देने से मना कर दिया गया। एनसीपीसीआर को मुखर रूप से जानकारी देना चाहिए था। धारा-4 (1)(बी) के तहत जो जानकारी देना चाहिए था उसे देने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। बच्चों के नाम के अलावा कोई जानकारी छुपाने वाली नहीं थी। एनसीपीसीआर ने सलाहकार और कंसल्टेंट रखा हुआ है उसने सीपीआईओ को सही तरह से गाइड करने के बजाय उसे मिस गाइड किया और इस तरह पूरी जानकारी देने से मना कर दिया गया। सीनियर ने जानकारी देने से मना करने का कारण तक नहीं बताया। ये अपनी ड्यूटी करने में विफल रहे हैं।
सीआईसी ने कहा कि उन्हें आऱटीआई की धारा-10(1) के तहत जानकारी देनी चाहिए थी लेकिन नहीं दिया। उन्होंने धारा-10 की गंभीरता को नहीं देखा। प्रोफेसर आचार्युलू ने कहा कि जानकारी मांगने वाले ने बच्चों की व्यक्तिगत जानकारी नहीं मांगी थी और न ही उनके नाम मांगे गए थे। केस के बारे में जानकारी मांगी गई थी साथ ही कहा गया था कि किन केसों पर एक्शन नही हुआ या फिर एक्शन हुआ तो कितने केस कमिशन के पास पेंडिंग है। ऐसे में पब्लिक अथॉरिटी इन जानकारियों के लिए धारा-8(1)(आई) का इस्तेमाल नहीं कर सकते। एनसीपीसीआर की बुनियादी कार्य पब्लिक इ्ट्रेस्ट में जानकारी देना था। सीआईसी के सामने राकेश भारतीय एडवाइजर और रमन गौर सीनियर कंसल्टेंट ने दलील दी। सीआईसी ने पीआईओ जी. सुरेश को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अधिकतम पेनाल्टी लगाई जाए। प्रत्येक पर अधिकतम पेनाल्टी क्यों न लगाई जाए क्योंकि उन्होंने जानकारी लेने में बाधा डाला है। कमिशन ने एनसीपीसीआर की दलील खारिज करते हुए कहा कि जानकारी उजागर करना पब्लिक इंट्रेस्ट में था और यह एनसीपीसीआर का मुख्य (कोर) काम है।
सीपीआईओ, एडवाइजर और कंल्टेंट ने जानकारी देने से मना करने के लिए जो दलील दी उसे कमिशन ने नाकरते हुए कहा कि इसके लिए कोई जस्टिफिकेशन नहीं है। उन्होंने पूरी जानकारी सीधे तौर पर नकार दिया। धारा-8(1)(आई) का उन्होंने गलत इस्तेमाल किया। ये दुर्भाग्यूपूर्ण है कि कंसल्टेंट और एडवाइजर ने सीपीआईओ को इस तरह से गाइड किया कि पब्लिक अथ़ॉरिटी आऱटीआई एक्ट का उल्लंघन कर दे।