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रोहिंग्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के सामने पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग

LiveLaw News Network
21 Sep 2017 10:32 AM GMT
रोहिंग्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के सामने पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग
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रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के मामले में एक नया मोड आ गया है। अब पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। याचिका में पश्चिम बंगाल के शेल्टर होम और सुधार गृहों में मौजूद 44 बच्चों व उनकी मां को वापस ना भेजने की गुहार लगाई गई है।

गुरुवार को आयोग की ओर से चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के सामने केस को मेंशन किया गया। चीफ जस्टिस अन्य अर्जियों के साथ तीन अक्तूबर को याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में आयोग ने कहा है रोहिंग्या मुस्लिम को बर्मा में प्रताड़ित हो किया जा रहा है और उनकी हत्या की जा रही है। ऐसे में रोहिंग्या बच्चों को वापस भेजा गया तो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने अधिकार का उल्लंघन होगा क्योंकि जीने का अधिकार सिर्फ देश के नागरिकों को नहीं बल्कि विदेशियों को भी है।

याचिका में कहा गया है कि राज्य में 24 बच्चे शेल्टर होम में हैं जबकि 20 बच्चों को अपनी मांओं के साथ सुधार गृह में रखा गया है। इन लोगों को वापस भेजा गया तो उनकी जान को खतरा है। अर्जी में कहा गया कि बच्चों से देश को कोई खतरा नहीं है। केंद्र सरकार का फैसला मानवता के खिलाफ है। पश्चिम बंगाल के अलग अलग शेल्टर होम में रह रहे रोहिंग्या माँ और बच्चों को वापस भेजना उन्हें मौत के मुंह में भेजने के समान है।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में मौजूद आयोग की चेयरमैन अनन्या चक्रवर्ती ने कहा कि बच्चे कभी सुरक्षा को खतरा नहीं हो सकते और सरकार के इस फैसले पर रोक लगाई जानी चाहिए। बच्चों के हितों को देखते हुए आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका दाखिल की है।

गौरतलब है कि 18 सितंबर को रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के विरोध में दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि कोर्ट को इस मुद्दे को सरकार पर छोड़ देना चाहिए और देशहित में केंद्र सरकार को पॉलिसी निणय के तहत काम करने देना चाहिए। कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, क्योंकि याचिका में जो विषय दिया गया है, उससे भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर विपरीत पर असर पड़ेगा।

केंद्र सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। सरकार ने कहा है कि कुछ रोहिंग्या हुंडी, हवाला चैनल के जरिये पैसों के लेनदेन, रोहिंग्यो के लिए फर्जी भारतीय पहचान संबंधी दस्तावेज़ हासिल करना और मानव तस्करी आदि देशविरोधी और अवैध गतिविधियों में शामिल हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि कई रोहिंग्या अवैध नेटवर्क के जरिये अवैध तरीके से भारत में घुस आते हैं और पैन कार्ड और वोटर कार्ड हासिल कर चुके हैं।

 हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने यह भी पाया है पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन ISIS तथा अन्य आतंकी ग्रुप बहुत सारे रोहिंग्याओं को भारत के संवेदनशील इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की साजिश में शामिल किए हुए है। कुछ आतंकवादी पृष्ठभूमि वाले रोहिंग्याओं की जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात में पहचान की गई है। ये देश की आंतरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हैं। सरकार ने कहा है कि भारत में आबादी ज्यादा है और सामाजिक,आर्थिक तथा सांस्कृतिक ढांचा जटिल है, ऐसे में अवैध रूप से आए हुए रोहिंग्याओं को देश में उपलब्ध संसाधनों में से सुविधायें देने से देश के नागरिकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इससे भारत के नागरिकों और लोगों को रोजगार, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा से वंचित रहना पड़ेगा। साथ ही इनकी वजह से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है।

केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि रोहिंग्या को यहाँ रहने की इजाजत दी गई तो बौद्ध धर्म को मानने। वाले भारत के नागरिकों के ख़िलाफ़ हिंसा होने की पूरी संभावना है।

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