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डीडीए का मतलब ' डोंट डू एनीथिंग', नहीं जानते अफसर रूल ऑफ लॉ और रूल ऑफ जंगल में फर्क : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
21 Sep 2017 8:41 AM GMT
डीडीए का मतलब  डोंट डू एनीथिंग, नहीं जानते अफसर रूल ऑफ लॉ और रूल ऑफ जंगल में फर्क : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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छोटी छोटी अपील और आपत्ति दर्ज करने पर दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए अब दिल्ली हाईकोर्ट के निशाने पर आ गया है। हाईकोर्ट ने यहां तक कह दिया कि डीडीए का मतलब ' डोंट डू एनीथिंग' हो गया है।

जस्टिस वाल्मिकी मेहता ने सोमवार को कई केसों के उदाहरण देते हुए कहा कि डीडीए के अफसर अवैध तरीके से कानूनी कार्रवाई कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने डीडीए के उपाध्यक्ष को निर्देश दिया है कि वो एेसे कानूनी निर्णय जिन्हें पालिसी के तकय तय किया जाना है, उन मामलों में कोर्ट केस दाखिल करना है या नहीं, एक साथ करें

दरअसल हाईकोर्ट डीडीए द्वारा निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें नई सब्जी मंडी दुकान को लेकर डिक्री होल्डर ने कोर्ट के फैसले के अाधार पर कार्रवाई शुरू की थी। इस कार्रवाई के दौरान कोर्ट ने पाया था कि डिक्री पर अब डीडीए सवाल नहीं उठा सकता और ये अंतिम है।

डीडीए द्वारा तुच्छ आपत्ति जताने पर जस्टिस मेहता ने कहा कि पहले डीडीए का मतलब दिल्ली विकास प्राधिकरण था लेकिन अब इसे

 ' डोंट डू एनीथिंग' कहा जाना चाहिए। डीडीए ने देश के आम नागरिकों के लिए जरूरी संवेदनशीलता और सभ्यता को पार कर दिया है। इस मामले में डीडीए ने सूझबूझ का परिचय नहीं दिया और वो नागरिकों को परेशान करने के लिए अवैध पक्ष पर अडा रहा क्योंकि  ' डोंट डू एनीथिंग'/ डीडीए को आम आदमी को परेशान करने के अलावा कोई काम नहीं है। कोर्ट ने कहा कम शायद डीडीए के कुछ अफसरें के दिमाग में कुछ और चल रहा है और उनकी मंशा डिक्री होल्डर को याचिका के जरिए उसके हक से वंचित रखना है क्योंकि ये केस 1979 में शुरु हुआ और अब 2017 चल रहा है। यानी 39 साल बाद।

हाईकोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए डिक्री होल्डर को एक लाख का जुर्माना देने के आदेश दिए। कोर्ट ने कहा है कि ये राशि उन सभी अफसरों/ कर्मियों से बराबर बराबर वसूले जाएं जिन्होंने इस केस में आपत्ति और अपील दाखिल करने का फैसला लिया।

हाईकोर्ट ने दो हफ्ते के भीतर डीडीए के उपाध्यक्ष को वरिष्ठ अफसरों की दो सदस्यीय जांच समिति गठित करने के आदेश भी दिए हैं। ये समिति उन अफसरों की जिम्मेदारी तय करेगी और कडी विभागीय कार्रवाई करेगी जिन्होंने इस मामले में अपील करने का फैसला लिया था।

हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि अगर समिति पाती है कि इसके अलावा भी ये अफसर/ कर्मचारी देश के किसी अन्य कानून के तहत दोषी हो सकते हैं तो ये जरूरी सिफारिश भी की जा सकती है। हाईकोर्ट ने समिति तीन महीने के भीतर उपाध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी और 21 दिसंबर को कोर्ट आदेश के पालन पर सुनवाई करेगा। हाईकोर्ट ने आदेश में ये भी कहा कि कोर्ट को ये आदेश जारी करने करने पडे क्योंकि डीडीए के कुछ अफसर कानून के शासन और जंगल के नियम में संगठित तानाशाह के कानून में अंतर नहीं समझते।


   
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